केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं में प्रकृति और नारी का सौन्दर्य क्षत चित्रित है । वे जीवन रस का छककर पान करनेवाले कवि हैं । सुख, सौन्दर्य,श्रम- ये केदारनाथ अग्रवाल के जीवन एवं काव्य-मूल्य के ढाँचे के विभिन्न अवयव हैं। निस्सन्देह इनका स्रोत समाजवादी विचारधारा है। यह सुखसामाजिकता से अलग या उसका विरोधी नहीं । बस, इसका अनुभव निजीहै । वह अनावश्यक संचय से, निष्क्रियता से, दूसरों का हक मार लेने से नहीं मिलता । सुख केदारनाथ अग्रवाल के लिए मानवता का स्वाद है, अस्तित्व का रस है । उनका जीवन-आचरण और कविता भी उसी प्राप्ति के लिए अनुशासित और अनुकूलित थी । प्रेम हो तो साधना भी सिद्धि का आनन्द छु देती है । केदारनाथ अग्रवाल प्रकृति और मनुष्य को श्रम संस्कृति की दृष्टि और विचारधारा से चित्रित करते हैं। उनके यहाँ प्रकृति और मनुष्य का तादात्म्य है। केदारनाथ अग्रवाल की कविता ने नई प्रकृति, नया समुद्र, नये हू धन-जन, नया नारी सौन्दर्य गढ़ा है । वे श्रम संस्कृति के सौन्दर्य निर्माता कवि हैं। उन्होंने प्रगतिशील कविता-हिन्दी कविता को कालजयी गरिमा दी है केदारनाथ अग्रवाल बुन्देलखंड की प्रकृति, वहाँ के जन-जीवन से ही नहीं, वहाँ के लोकगान, वहाँ की लय, वहाँ की भाषा और तान से जुड़े हैं। उनकी रचना-धर्मिता में बुन्देलखंड अपनी समग्रता में रचा-बसा है । यह सारा रचाव-बसाव कवि के हृदय में है और अभिव्यक्ति में भी ।
प्रतिनिधि कविताएँ
केदारनाथ अग्रवाल
जन्म: 1 अप्रैल, 1911; पिता : श्री हनुमानप्रसाद अग्रवाल जो 'प्रेमयोगी मान' उपनाम से कविताऍ लिखते थे; 'मधुरिमा' शीर्षक से उनका एक संकलन भी प्रकाशित हुआ है;
माँ : श्रीमती घसिट्टो देवी;
जन्म-स्थान: कमासिन, बाँदा (उत्तरप्रदेश);
शिक्षा: बी.ए. इलाहाबाद विश्वविद्यालय, एल .एल .बी., डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर।
कृतियाँ: अनुवाद सहित 29 कृतियाँ प्रकाशित ।
काव्य-संग्रह: 1 युग की गंगा (1947), 2. नींद के बादल (1947), 3. लोक और आलोक (1957), 4. फूल नहीं रंग बोलते हैं (1965), 5. आग का आईना (1970), 6.गुलमेंहदी (1978), 7. आधुनिक कवि- 16 (1978), 8. पंख और पतवार ( 1980), 9. हे मेरी तुम (1981), 10.मार प्यार की थापें (1981), 11 बम्बई का रक्त-स्नान (1981), 12. कहें केदार खरी-खरी (1983 सम्पादक- अशोक त्रिपाठी), 13. जमुन जल तुम (1984: सम्पादक-अशोक त्रिपाठी), 14.अपूर्वा (1984), 15. बोले बोल अबोल (1985) 16. जो शिलाएँ तोड़ते हैं (1986: सम्पादक-अशोक त्रिपाठी), 17. आत्म-गंध (1988), 18. अनहारी हरियाली ( 1990), 19. खुलीं आँखें खुले डैने (1993), 20. पुष्प दीप (1984), 21 वसन्त में प्रसन्न हुई पृथ्वी (1996 सम्पादक - अशोक त्रिपाठी), 22. कहुकी कोयल खड़े पेड़ की देह (1997 सम्पादक-अशोक त्रिपाठी), अनुवाद- 23. देश-देश की कविताएँ (1970), निबन्ध-संग्रह : 24. समय-समय पर ( 1970), 25.विचार-बोध (1980), 26. विवेक-विवेचन (1981), उपन्यास : 27. पतिया ( 1985), यात्रा-वृतान्त : 28. बस्ती खिले गुलाबों की (रूस की यात्रा का वृतान्त 1975), पत्र-साहित्य : 29. मित्र-संवाद ( 1991 सम्पादक-रामविलास शर्मा, अशोक त्रिपाठी) ।
पुरस्कार : 1. सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ( 1973) 2. उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ 'द्रूारा सेवाओं के लिए 1979-80 का विशिष्ट पुरस्कार 3. 'अपूर्वा' पर 1986 का "साहित्य" अकादमी' सम्मान 4. म.प्र. साहित्य परिषद, भोपाल का तुलसी सम्मान (1986)' 5. म.प्र. साहित्य परिषद, भोपाल का मैथिलीशरण गुप्त सम्मान ( 1990) मानद उपाधियाँ : 1. हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा 'साहित्य वाचस्पति' उपाधि (1989) 2.बुन्देलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी द्वारा डी. लिट्. उपाधि (1995) ।
निधन: 22 जून, 2000
आवरण: राजकमल स्टूडियो
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