पुस्तक परिचय
होश आत्मा का दीया है। वही ध्यान है, उसी को मैं मेडिटेशन कहता हूं। होश ध्यान है। निरंतर अपने जीवन के प्रति, सारे तथ्यों के प्रति जागे हुए होना ध्यान है। वही दीया है,वही ज्योति है। उसको जगा लें और फिर देखें,पाएंगे, अंधेरा क्रमश विलीन होता चला जा रहा है। एक दिन आप पाएंगे, अंधेरा है ही नहीं।एक दिन आप पाएंगे, आपके सारे प्राण प्रकाश से भर गए। और एक ऐसे प्रकाश से, जो अलौकिक है। एक ऐसे प्रकाश से, जो परमात्मा का है। एक ऐसे प्रकाश से, जो इस लोक का नहीं, इस समय का नहीं, इस काल का नहीं, जो कहीं दूरगामी, किसी बहुत केंद्रीय तत्व से आता है। और उसके ही आलोक में जीवन नृत्य से भर जाता है, संगीत से भर जाता है। तभी शांति है, तभी सत्य है।
पुस्तक के विषय बिंदु
· ब्रह्मचर्य परम भोग है
· मनुष्य विक्षिप्त क्यों है?
· जागना ही एकमात्र तपश्चर्यां है
· ज्ञान भीख नहीं है
· अहंकार से मुक्ति का उपाय क्या है?
प्रवेश से पूर्व
मनुष्य कैसे द्वद्व मे, कैसे विरोध में, कैसी जड़ता मे ग्रस्त है । किन कारणो से मन की, मनुष्य की पूरी सस्कृति की यह दुविधा है
पहली बात हम जब तक जीवन की समस्याओ को सीधा देखने में समर्थ नहीं होगे और निरंतर पुराने समाधानों से, पुराने सिद्धांतो से अपने मन को जकडे रहेगे, तब तक कोई हल, कोई शांति, कोई आनंद या कोई साक्षात्कार असंभव है । आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति इसके पहले कि जीवन सत्य की खोज मे निकले, अपने मन को समाधानों और शास्त्रो से मुक्त कर ले । उनका भार मनुष्य के चित्त को ऊर्ध्वगामी होने से रोकता है । इन समाधानों से अटके रहने के कारण दुविधा पैदा होती है ।
और दूसरी बात हम अत्यधिक आदर्शवाद से भरे हो, तो जीवन मे पाखंड को जन्म मिलता है । हम वैसे दिखना और होना चाहते हे, जैसे हम नहीं है । हम दूसरे लोगो का अनुसरण, दूसरे लोगो की अनुकृति बनना चाहते है । और तब जीवन स्वयं की सृजनात्मकता, क्रिएटिविटी खो देता है । तब हम नकल होकर, कापिया होकर रह जाते है ।
स्वाभाविक रूप से कोई आत्मा किसी दूसरी आत्मा की नकल या अनुकृति नहीं हो सकती है । प्रत्येक आत्मा के भीतर अपना अद्वितीय जीवन है । अपनी यूनीक, अपनी बेजोड़ प्रतिभा और शक्ति है, वह विकसित होनी चाहिए जब तक हम अनुसरण करते है, दूसरी के ज्ञान को, उधार ज्ञान को अपने मस्तिष्क पर लादते है, तब तक हमारा मन द्वद्व शून्य नहीं होगा ।
और इसलिए दुनिया में द्वंद्व है । क्योकि कोई आदमी अपने जैसा होने को राजी नही है, तैयार नही है । इसके लिए बहुत करेज की, बहुत साहस की जरूरत है । राम होने की कोशिश बहुत आसान है, क्योकि राम के नाम के साथ प्रतिष्ठा है, रिस्पेक्टेबिलिटी है, खुद के नाम के साथ प्रतिष्ठा नही है । बुद्ध होने की कोशिश आसान है । बुद्ध को हजारो लोग, लाखो लोग भगवान मानते आपका मन भी भगवान मान कर पूजे जाने को उत्सुक होता होगा । महावीर होने की कोशिश आसान है, क्योकि महावीर को तीर्थकर मानने वाले लाखों लोग है 1 उनके पैरो मे सिर रखते हैं, उनकी मूर्तिया और मदिर बनाते है । आपके अहंकार को भी इससे तृप्ति मिलेगी कि आप भी महावीर और बुद्ध जैसे हो जाए । लेकिन अपने जेसे होने का साहस बहुत कम लोगो मे होता है । क्योंकि अपने जैसे होने के साहस का अर्थ है नो बड़ी होने का साहस । ना कुछ होने का साहस ।
अनुक्रम
1
ब्रह्मचर्य और समाधि
2
मनुष्य विक्षिप्त क्यों है?
19
3
होश से क्रांति
43
4
स्वयं का साक्षात
63
5
अहंकार का भ्रम
85
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