किसी भी प्रदेश की सरकृति का अभिज्ञान वहां के लोक साहित्य में प्रतिबिम्बित होता है और लोक जीवन को पूरी तरह समझने के लिए वहाँ के लोक साहित्य का अध्ययन अनिवार्य है। पंचपरगनिया पूत्र होने के नाते विशेषकर मैं इस क्षेत्र के लोक साहित्य की विविधता और विपुलता के प्रति उत्कृष्ट हुआ पर अनुकूल परिस्थिति न पाकर इन्हें संग्रह न कर पाया। एम. ए. की पढ़ाई समाप्त करने के एक लम्बे अन्तराल के बाद मैंने देखा कि पश्चिमी सभ्यता औद्योगिकरण, वैज्ञानिक तकनीकि के विकास (रेडियो, टेप रिकॉर्ड, टेलीविजन) आदि अनेक कारणों से अब यहाँ के साहित्य के अमूल्य रत्न (लोकगीत, लोक कथा, मुहावरे, कहावतें, पहेलियों, मंत्र आदि) के लुप्त हो जाने के कगार पर है, इस भय ने मुझे पंचपरगनिया लोक साहित्य में काम करने को अग्रसर किया। पंचपरगनिया लोक साहित्य सागर में पहली बार डूबकी लगाई जो रत्न मुझे प्राप्त हो सके उन्हें एक सूत्र में गुंथने का प्रयास किया है।
राँची जिला के पूर्वी भाग सिल्ली, बुण्डू, बारेन्दा (सोनाहातु) राहे और तमाड़ को पांचपरगना क्षेत्र कहा जाता है। यह क्षेत्र विशाल भू खण्ड़ में पसरा हुआ है। यहाँ 10 लाख से भी अधिक की संख्या में लोग निवास करते है। पांचपरगना क्षेत्र की एक अलग ही भाषा है जो विभिन्न जातियों की संपर्क भाषा है और पंचपरगनिया के नाम से जानी जाती है। पंचपरगनिया की पावन भूमि में मानव निवास की कहानी बहुत प्रचीन है। पंचपरगनिया कि साहित्य विरासत उत्कृष्ट है। पंचपरगनिया लोक साहित्य का विपुल भंडार है। इसका साहित्य भावों का उमड़ता हुआ सागर है जिसमें गोता लगा कर साहित्य प्रेमी रत्नों की प्राप्ति कर सकते है।
लोक साहित्य वस्तुतः एक अक्षय भंडार है। लोक साहित्य में मानवता संबंधी सभी सामग्री हमें उपलब्ध होती है। इसमें अध्ययन से हमें नैतिक, मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक तथा भौतिक शास्त्र संबंधी तथ्य भी उपलब्ध हो सकते हैं।
अध्ययन की महत्ताः-
ऐतिहासिक महत्वः लोक साहित्य का अध्ययन एक अत्यन्त व्यापक विषय है। इसके अध्ययन से हम देश या प्रदेश विशेष के लुप्त ऐतिहासिक तथ्यों को प्रकाश में ला सकते है। जो विषय हमें ऐतिहासिक ग्रंथों में नहीं प्राप्त होते, वे सहज रूप में लोक साहित्य में मिल जाते हैं। अध्याय की महत्ता :- एतिहासिक महत्व लोक साहित्य का अध्ययन एक अत्यन्त व्यापक विषय है। इसके अध्ययन से हम देश या प्रदेश विशेष के लुप्त ऐतिहासिक तथ्यों को प्रकाश में ला सकते है जो विषय हमें एतिहासिक ग्रंथों में नहीं प्राप्त होते, वे सहज रुप में लोक साहित्य में मिल जाते है।
भौगोलिक महत्व- लोक साहित्य में भौगोलिक चित्र मी व्यापक रूप में हमें मिलता है।
आर्थिक महत्व- लोक साहित्य हमें समाज के आर्थिक स्तर का भी विधिवत ज्ञान कराता है। लोक साहित्य में साधारण ग्रामीण समाज का खान-पान, रहन-सहन तथा रीति-रिवाज इत्यादि का परिचय मिलता है। लोक गीतों की माता सोने के कटोरे में ही शिशुओं को दूध-भात खिलाती है। इससे स्पष्ट होता है कि लोक साहित्य के द्वारा समाज की आर्थिक अवस्था से हम भलि-भाँति परिचित हो सकते हैं।
जातीय महत्व- विभिन्न जातियों और उनके नियमादि का वर्णन लोक साहित्य में भलि-भाँति मिलता है। इस प्रदेश में धोवी, नाई, बादी, मुण्डा उरॉव, हो, खड़िया, महली, डीन, पांड आदि अनेक जातियाँ बसती है। इन जातियों के अध्ययन के लिए लोक साहित्य से बढ़कर कोई विषय नहीं होता।
धार्मिक महत्व लोकसाहित्य में धार्मिक जीवन का व्योरेवार चित्र- मिलता है। देवी-देवताओं की कहानियाँ, अनेक प्रकार के व्रत-उत्सव, पूजा-पाठ तथा तंत्र-मंत्र इत्यादि का सांगोपांग वर्णन लोक साहित्य में प्राप्त होता है। इससे प्राप्त कर सकते है। जटिल भावों को व्यक्त करने के लिए लोक साहित्य में सरल एवं सटीक शब्द भरे पड़े है। इससे हम अपने साहित्य का भण्डार भर सकते है।
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