पुस्तक के विषय में
पहले से बसी हुई किन्हीं जातियों के साथ, और आपस में एक-दूसरे के साथ भी, तथा बाद में आने वाले हमलावर कबीलों के साथ यहाँ कई बार संघर्ष हुए । एक-दूसरे के विचारों व रहन-सहन में तब काफी बड़ा अंतर रहा होगा । लेकिन यहाँ की जलवायु में अवश्य कोई ऐसी बात रही, कि कालांतर में सहिष्णुता और समन्वय की नीति को अपना लिया गया । कितने ही यवन (ग्रीसवासी) स्वेच्छा से बौद्ध बन गए और कइयों ने वैष्णव धर्म स्वीकार कर लिया । शक बन गए शाकद्वीपी ब्राह्मण । सीमांत पर बसी हुई कितनी ही जातियों यहाँ दूध और पानी की तरह घुल-मिल गईं । द्राविड़ों और आर्यों में धार्मिक और सांस्कृतिक आदान- प्रदान इतना अधिक हुआ कि जिसका हिसाब नहीं । उत्तर भारत ने दक्षिण के देवी-देवताओं, पूजा-विधियों तथा धर्माचार्यों को स्वीकार कर लिया । इसी प्रकार दक्षिण भारत ने उत्तर के अवतारों और तीर्थों पर अपनी पूरी श्रद्धा- भक्ति प्रकट की । इस धार्मिक और सांस्कृतिक एकता को कौन भंग कर सकता था?
स्पष्ट है कि हमारी परंपरा ने 'समन्वय' की दृष्टि का सदा आदर किया है । अनेकता में एकता देखने का उसका स्वभाव रहा है । 'अविभक्त विभक्तेषु' को ही उसने सच्चा ज्ञान माना। फूल रंग-रंग के, मगर गुलदस्ता एक । मत अनेक, पर लक्ष्य सबका एकही कि सत्य को खोजा जाए।
प्रकाशकीय
भारतीय संस्कृति की पहचान उसकी बहुरैखिकता में है, जहाँ लोक और वेद, दोनों एक-दूसरे से उर्जस्वित और संपुष्टित होकर आगे बढ़ते हैं । वियोगी हरि के संपादन में सस्ता साहित्य मंडल से प्रकाशित यह पुस्तक भारतीय परंपरा की उस अविच्छिन्न धारा को समग्रता में प्रस्तुत करती है, जिसके कारण तमाम बाहरी हमलों के बीच हमारी संस्कृति और सभ्यता कायम रही । पूर्ववैदिककाल से लेकर रामायण तथा महाभारत होते हुए नवजागरणकालीन ब्रह्म समाज और आर्य समाज तक की हमारी सांस्कृतिक परंपरा के सूत्र इस पुस्तक में पिरोए गए हैं । इसके अतिरिक्त हमारे प्रमुख दर्शन चार्वाक् से लेकर शाक्त तक तथा जैन दर्शन से लेकर महावीर की वाणी तक यहाँ समाहित हैं । समग्रता में यह पुस्तक हमारी विशाल परंपरा-सागर की एक झाँकी प्रस्तुत करती है जिसमें अनेक दर्शन, मत और धर्म की नदियाँ मिलकर ऐक्य हो जाती हैं । आशा है पाठक नए कलेवर में सुसज्जित इस पुस्तक का स्वागत करेंगे ।
क्रम-सूची
हेतु
11
प्रस्तावना
13
अध्याय-1
भारतीय संस्कृति : प्राग्वैदिक तथा वैदिक
29-50
अध्याय-2
द्रविड़ जाति और द्रविड़ भाषाएँ
51-136
अध्याय-3
वेद और वैदिक वाङ्मय
137-177
अध्याय-4
उपनिषद्
178-209
अध्याय-5
रामायणी कथा
210-246
अध्याय-6
महाभारत
249-308
अध्याय-7
पुराण
309-323
अध्याय-8
स्मृतियाँ : धर्मशास्त्र
324-345
अध्याय-9
दर्शन-शास्त्र
346-501
अध्याय-10
दक्षिण भारत में भक्ति-मार्ग
502-515
अध्याय-11
ब्राह्मासमाज
516-521
अध्याय-12
आर्य समाज
522-539
अध्याय-13
नीति-शास्त्र
540-565
परिशिष्ट : क
566-574
परिशिष्ट : ख
575-580
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