आनुवंशिकी के नियम एक आगस्टाइन संत ग्रेगर मेडल ने निष्पादित किए थे जिन्होंने गार्डन पी पर प्रयोग किए। उन्होंने लक्षणों का अमूर्त वंशानुक्रमण दिखाया और इन्हें 'कारक' कहा। उनका 1865 में मूल प्रकाशित पत्र इस शताब्दी के अंत तक विस्मृत ही रहा। जिन्हें मेंडल ने कारक कहा था उन्हें बाद में जीन कहा गया। डी एन ए की रचना के स्पष्टीकरण और आनुवंशिक कोड के कूटवाचन ने आण्विक जीवविज्ञान की नींव रखी। इस ज्ञान के प्रयोग ने जैवप्रौद्योगिकी में वर्तमान उत्तेजना भर दी। जीनों के विषय में हमारी जानकारी और उनमें हेराफेरी करने की क्षमता ही आधुनिक जैवप्रौद्योगिकी का आधार है। रिकम्बिनेन्ट डी एन ए तकनीकों ने, सूक्ष्मजीवों, पौधों और पशुओं से वांछित जीन लेकर किसी अन्य जीव में लगाना और अभिव्यक्त करना संभव बना दिया है। इस प्रकार जीनों ने कम कीमत पर बेहतर उत्पाद प्राप्त करने का साधन उपलब्ध करा दिया है। बल्कि रिकम्बिनेन्ट डी एन ए तकनीकों के अभ्युदय से पहले कुछ विशिष्ट जीनों जैसे कि वे जो अर्धवामन धान और गेहूं के पौधों के लिए उत्तरदायी होती हैं, ने हमारे देश सहित अनेक देशों में खाद्य उत्पादन और ग्रामीण सम्पन्नता बढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। देश में गेहूं और चावल का उत्पादन मुख्य रूप से दो जीनों के कारण बढ़ा है जिनमें से एक गेहूं के पौधे की सीमित लम्बाई के लिए उत्तरदायी होती है और दूसरी धान में अर्धवामन पादप प्रकार के लिए उत्तरदायी होती है। यद्यपि अभी तक इन जीनों को विलगित या क्लोनीकृत नहीं किया गया है, इनका आर्थिक योगदान बहुत अधिक है।
जीवन के अणु की रासायनिक संरचना की अंतिम व्याख्या, आण्विक जीवविज्ञान और जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रभावशाली प्रगति ने मानव के हाथों में महान शक्ति सौंप दी है। मानव अब भगवान की भूमिका अदा कर सकता है निर्माण, जैविक प्ररूपों में फेर बदल और रोगों का उपचार, कल तक उसके पास जिनका जबाव नहीं था। यह स्वाभाविक है कि इतनी समर्थ शक्तियों का संचालन हर्ष और अंतर्दर्शन, दोनों ही लाएगा। इससे बाद डर और उत्तरदायित्व की भावना आएगी। यद्यपि, विज्ञान में हो रहे तीव्र विकास से, यह भी संभव है कि जन सामान्य पीछे छूट जाए। वैज्ञानिक आगे बढ़ने की दौड़ में इस कदर व्यस्त हैं कि कोई भी रुकने और मूल हिताधिकारों को बताने के लिए तैयार नहीं हैं कि यह सारी उत्तेजना किस विषय में है। यह पुस्तक आनुवंशिकता की जटिलताओं को सरल भाषा में बताने का विनम्र प्रयास है कि क्यों और कैसे जीवन के ब्लूप्रिंट गलत हो जाते हैं। यह बताती है के क्यों कुछ आनुवंशिक रोग अभी तक लाइलाज हैं और किस प्रकार जीन थिरैपी, दर्द, अस्वस्थता और असमय मृत्यु से छुटकारा दिलाने की संभावना जगाती है। यह उस दोराहे के विषय में भी बताएगी आज मानवता जहां खड़ी है और प्रज्ञान जो उसे सही मार्ग ढूंढने में सहायक होगा।
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