जीवनमें नया प्रकाश
याद रखिये, पूर्वजन्मोंके अनेक पुण्यों तथा सत्कार्योंके फलस्वरूप यह बहुमूल्य मानव-जीवन आपको ईश्वरकी धरोहरके रूपमें प्राप्त हुआ है । इसे पाकर दुःखी, निराश या भयभीत रहना-एक प्रकारका पाप है । इसके भागी मत बनिये ।
आप तनिक-सी विपत्ति या दुःखसे अनायास ही डर जाते हैं । थोड़ी-सी परेशानीसे घबड़ा जाते हैं, यह एक मानसिक कमजोरी है । सुख-दुःखका कारण बाह्य परिस्थितियाँ नहीं, प्रत्युत मनुष्यकी मनःस्थिति ही है । उस कायर मनःस्थितिको दूर कीजिये ।
जिसका मन बलवान् है, जिसकी विवेक-बुद्धि संतुलित रहती है और जिसकी संवेदनशीलता छुई-मुईकी तरह सुकुमार नहीं है, वह मनुष्य दुःखको आसानीसे झेल लेता है । आप ऐसे ही बनें ।
जिस धैर्यवान्ने दुःखके अस्तित्वमें विश्वास नहीं किया, जो कष्टों और आपत्तियोंको उद्बोधन, सतर्कता, सावधानी और कर्मठताका हेतु मानता है, वह सुखोंसे अधिक दुःखोंसे लाभ उठाता है ।
शत्रु यदि सब मिलकर आक्रमण कर देते हैं तो हमें हरा देते हैं, किंतु यदि हम उन्हें अलग- अलग कर उनसे संघर्ष करें तो हम उन्हें अनायास ही हरा सकते हैं । कठिनाइयोंका जमघट हमें परेशान करता है । उन्हें चुन-चुनकर पृथक् कीजिये और एक-एकसे निपटिये । आप परेशानीको अवश्य परास्त करके रहेंगे । याद रखिये-
जीवनं त्विदं मुधेति पामरा जना वदन्ति ।
नैव तत्तथा ततोऽत्र संयतस्व जीवनाय ।। १ ।।
यह जीवन मिथ्या है, ऐसा मूर्ख और पामर लोग ही कहते हैं । यह जीवन मिथ्या नहीं है । उच्च कार्योंके लिये बना है । यश, प्रतिष्ठा, सेवा, नेतृत्व, धर्म, अर्थ, मोक्ष इत्यादि सब श्रेष्ठ कर्म आपको करने हैं । इसीलिये इस संसारमें जीनेका यत्न कीजिये ।
मानव-जीवन सत्य है । चट्टानकी तरह सुदृढ़ है । लगभग सौ वर्षोंतक निर्विघ्न चलनेवाला है । यदि आप व्यर्थकी काल्पनिक परेशानियोंमें न फँसें तो धीरे- धीरे सब जटिल समस्याएँ स्वयं सुलझनेवाली हैं।आप व्यर्थ ही डर रहे हैं । इस कायरताका त्याग कीजिये ।
प्राप्य मानवीयजन्म पुण्यकर्मसंचयेन ।
दीनदुःखिरक्षणेन संयतस्व जीवनाय ।। २ ।।
इस सुरदुर्लभ मानव-जन्मको पाकर पवित्र कर्मोंका संचय और दीन-दुखियोंकी सेवा-रक्षा करते हुए जीनेका यत्न कीजिये ।
मनुष्य-जीवन शुद्ध अर्थोंमें ' मनुष्य ' ही बननेके लिये है । उन देवोपम गुणोंका अर्जन करें, जिनसे मनुष्य देवपद प्राप्त करता है ।
सत्पथानुवर्तनेन भव्यभावभावनेन ।
लोकसम्प्रसारणेन संयतस्व जीवनाय ।। ३ ।।
मित्रो! सदाचारके मार्गपर चलते हुए, सुन्दर समुन्नत विचारोंको रखते हुए और लोक-कल्याणका प्रसार करते हुए जीनेका यत्न करो । आप हाड़-मांसके पिण्ड नहीं हैं, अनेक दैवी शक्तियोंसे सम्पन्न साक्षात् इन्द्र हैं । अनेक वज्रोंके स्वामी हैं । आप साहसहीन कदापि न हों । अपनी विशेषताएँ मालूम करें और सतत उनका विकास करें ।
दैन्यभावभञ्जनेन धैर्यधर्मधारणेन ।
वीरतासमाश्रयेण संयतस्व जीवनाय ।। ४ ।।
आप दीनताके डरपोक भावको दूर करते हुए, धैर्यरूपी धर्मको धारण करते हुए, वीरता और आत्मविश्वासके साथ इन पृष्ठोंमें बतायेहुए मार्गपर चलनेका प्रयत्न करें ।
यह जीवन ही आपका समस्त संसार है । बहुमूल्य है । बार-बार इस पृथ्वीके स्वर्गका आनन्द प्राप्त नहीं होता । पता नहीं, भविष्यमें मिले अथवा न मिले । इसलिये संकट या विपत्ति कुछ भी हो, कैसी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो, जीवनकी रक्षा, विकास, विस्तार और उन्नतिका बराबर यत्न करते चलिये ।
विषय
1
वे गिरे, गिरकर उठे, उठकर चले!
2
सब माननेकी बात है!
11
3
आप अमृत-संतान हैं!
14
4
आदमीका बड़प्पन इस प्रकार नापा जाय!
19
5
आशाकी जीवन-ज्योति
27
6
समय बीतने दीजिये, आपके दुःख स्वयं दूर होंगे
33
7
मौतके मुँहसे बचा और इस प्रकार नयी जिंदगी मिली!
42
8
आत्महत्या करनेवाले मूर्ख
55
9
दुनियामें ऐसे कितने व्यक्ति हैं जिनके सारे मनोरथ पूर्ण हो पाते हैं?
61
10
महान् पुरुषोंकी यह विशेषता अपने स्वभावमें विकसित करें
65
एक रहस्यकी बात
73
12
यह जादू भी अच्छा काम करता है
76
13
आगे यों बड़े
80
अपने परिश्रमसे शिक्षित बनिये
82
15
व्यवहारका उपहार
87
16
भगवान्से बातचीत करनेका समय व्यर्थ बरबाद न करें
96
17
वातावरणका भी विचित्र प्रभाव होता है
105
18
जिंदगी फिर नये सिरेसे शुरू कीजिये
113
शान्ताकांर भुजगशयनम्!
120
20
अपनी शक्तियोंके उपयोगसे शक्तिशाली बनिये
125
21
हमने मौतको टाला है!
129
22
हृदयमें मधुर गान रखकर आनन्दित होइये
139
23
मनको सदा कल्याणकारी विषयोंमें लगाइये
146
24
बुराईके विचारोंसे मुक्त रहिये
150
25
अकारण निन्दा, आलोचना और घृणा मिलने पर हम क्या करें?
153
26
आशीर्वचन सुख-शान्ति देनेवाले होते हैं
160
आपकी कल्पनाशक्ति साक्षात् कल्पलता है, उसका उचित प्रयोग किया करें
162
28
क्या करूँ, क्या न करूँ?
167
29
भले शब्दोंकी प्रचण्ड शक्ति
170
30
संसारमें दरिद्रता पाप है
182
31
आर्थिक मुसीबतोंसे यों बचिये
188
32
वायुमण्डलमें फैला हुआ गुप्त विचार-प्रवाह
भारतीय मूर्तियाँ और चित्र आपुको प्रेरक शान्ति संदेश देते हैं
192
34
शान्तभावका अभ्यास किया करें
198
35
एकान्तसेवनसे लाभ
202
36
धार्मिक कथाएँ कहने और सुननेका पुण्य
204
37
धर्मबुद्धिकी अवहेलनासे मानसिक क्लेश
207
38
इस जगत्में प्रभुशासन ही चलता है!
210
39
नाम तो एक भगवान्का!
223
40
कभी ऐसे थे हम!
232
41
दोनोंकी उपासना एक साथ सम्भव नहीं
238
वे सब हमें छोड़ जाते हैं, पर यह हमको नहीं छोड़ता
241
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