ओशो की यह पुस्तक उनके ही कथन परिभाषित करने में सर्वाधिक सक्षम हैं, 'पहली बात यह समझ लेनी जरूरी है कि नारी अब तक अपने अस्तित्व को भी, अपने अस्तित्त्व को स्थापित नहीं कर पाई है। उसका अस्तित्व पुरुष के अस्तित्व में लीन है। पुरुष का एक हिस्सा है उसका अस्तित्व ।
और उसे अस्तित्व अगर घोषणा करनी हो तो उसे कहना चाहिए कि मैं में हूं-किसी की पत्नी नहीं; वह पत्नी होना गौण है। मैं मैं हूं-किसी की मां नहीं; मां होना गौण है। मैं मैं हूं-किसी की बहन नहीं; बहन होना गौण है। वह मेरा अस्तित्व नहीं, मेरे अस्तित्व के अनंत संबंधों में से एक संबंध। वह संबंध है, रिलेशनशिप है, वह मैं नहीं हूं।
और यह भी ध्यान रहे, जब तक स्त्री अपने अस्तित्व की स्पष्ट घोषणा नहीं करती है तब तक उसे आत्मा उपलब्ध नहीं हो सकती है, तब तक वह छाया ही रहेगी।'
नारी-मुक्ति के आंदोलन ने सतही रूप में नारी को उसकी परतंत्रता से मुक्त करने का दावा तो भरा लेकिन यह एक रिएक्शन बन कर रह गया। छह प्रवचनों की यह छोटी सा संग्रह, नारी के वास्तविक अस्तित्व का आईना है-यह नारी को बस एक रिश्ते के रूप में नहीं, बस नारी के रूप में प्रस्तुती है। तब वह कोई भी संबधों के किसी रूप में क्यों न हो-मां, बहन, प्रेमिका या बेटी। नारी की क्षमता अतुलनीय है, वह अपना प्रेम, अपनी ऊर्जा को सभी में सम्प्रेषित करने की क्षमता रखती है। ओशो ने नारी को उसकी जंजीरों से, उसकी बैसाखियों से इस प्रकार मुक्त किया है कि वह अपने पैरों पर चलने का अर्थ यह नहीं निकालती कि अब उसे पुरुष की आवश्यकता नहीं बल्कि पुरुष के साथ-साथ चलने की उसकी गति भी छंदबद्ध हो जाती है।
यह पुस्तक सबके लिए पठनीय और मननीय है, विशेष कर साधकों के लिए यह एक आत्मसात करने वाली पस्तक है।
आशो की जीवन रूपान्तरकारी पुस्तकें आत्मअन्वेषण की मार्गदर्शीका तो है ही, एक लाईब्रेरी की शोभा भी है। ओशो तपोवन द्वारा अब तक 199 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 199 पुस्तकों में 95 पुस्तकें अंग्रेजी में और 104 पुस्तकें हिन्दी में है। इन 199 पुस्तकों के सेट में स्वामी आनन्द अरुण की बहुप्रतिक्षित पुस्तक Lone Seeker Many Master, In Wonder With Osho, Mystics and Miracles, पंचशील, संतो के संग और संत और उनका रहस्यलोक भी सम्मिलित है।
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