रामपुर रज़ा लाइब्रेरी विश्व की महत्वपूर्ण लाइब्रेरियों में से एक है। यह विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के वर्णन के अतिरिक्त भारतीय इस्लामिक शिक्षा एवं कला का महत्वपूर्ण खजाना है। रामपुर रज़ा लाइब्रेरी नवाबीन रामपुर का राष्ट्र के लिये एक अमूल्य उपहार है। इसकी स्थापना रामपुर के नवाब फैजुल्लाह खां द्वारा 1774 ई0 में की गयी। इसके पश्चात रामपुर के अन्य शासकों ने भी इस लाइब्रेरी से सम्बन्धित सग्रह में रूचि ली, इसी कारण यह लाइब्रेरी उसी समय से बहुत प्रसिद्ध हो गयी। रामपुर के नवाब विद्वानों, कवियों, चित्रकारों, कैलीग्राफरों तथा संगीतकारों के बहुत बड़े संरक्षक रहे हैं। इसी कारण उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किये।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् रामपुर की रियासत भारतीय संघ में सम्मिलित कर दी गयी, इसके बाद 6 अगस्त 1951 से एक ट्रस्ट के अन्तर्गत आ गयी। पूर्व केन्द्रीय शिक्षामंत्री प्रो० सय्यद नूरूल हसन के प्रयासों से भारत सरकार ने 1 जुलाई 1975 ई० को रामपुर रज़ा लाइब्रेरी को पार्लियामेण्ट एक्ट 1975 के अधीन राष्ट्रीय महत्व की संस्था घोषित किया। इसके बोर्ड के अध्यक्ष उत्तर प्रदेश के माननीय श्री राज्यपाल हैं।
इस लाइब्रेरी में लगभग 17000 पाण्डुलिपियां मौजूद हैं जो अरबी, फारसी, संस्कृत, तुर्की, पश्तो, उर्दू तथा हिन्दी आदि में हैं। इसके अतिरिक्त यहां पर विभिन्न भाषाओं के चित्रों और ताड़पत्रों का उत्तम संग्रह है। इस संग्रह में लगभग 60,000 मुद्रित पुस्तकें और विभिन्न भारतीय एवं विदेशी भाषाओं की पुस्तकें हैं। रामपुर दिल्ली से लगभग 200 किमी की दूरी पर स्थित है जो रेल और सड़क मार्ग द्वारा सुविधापूर्वक जुड़ा हुआ है।
जब मैने 3 अप्रैल 2012 को रामपुर रज़ा लाइब्रेरी के निदेशक का पदभार ग्रहण किया तो रज़ा लाइब्रेरी में मौजूद दुलर्भ पाण्डुलिपियों और उनके कैटलाग के प्रकाशन पर विशेष ध्यान दिया। इसी कम मे हज़रत अली की 'नेहजुल बलागा', जियाउद्दीन बरनी की 'नात-ए-मुहम्मदी' और 'तारीख़-ए-फिरोजशाही', सै. मुहम्मद कमाल वास्ती की 'असरारिया कशफ-ए-सूफिया', मुग़ल सम्राट बाबर का 'दीवान-ए-बाबर', 'दीवान-ए-हाफ़िज़ शीराज़ी, जौहर आफ्ताब्ची की 'तज़किरातुल वाक्यिात', मोहतशिम काशानी की 'दवाज़ देह बन्द' और फ्तहुल्लाह अन्ताकी की 'अलहिन्द कमा रएइताह' आदि महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियों का प्रकाशन करवाया। अरबी पाण्डुलिपियों के कैटलाग के दो खण्ड, फारसी पाण्डुलिपियों के कैटलाग के तीन खण्ड, संस्कृत पाण्डुलिपियों के कैटलाग के दो खण्ड, तुर्की पाण्डुलिपियों के कैटलॉग का एक खण्ड, पश्तो पाण्डुलिपियों के कैटलाग का एक खण्ड, उर्दू पाण्डुलिपियों के कैटलाग का एक खण्ड भी प्रकाशित करवाया। भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के स्रोत विषय पर 2012 में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सेमीनार का विवरण दो खण्डों उर्दू, अंग्रेज़ी जरनल के रूप में 2014 में प्रकाशित किया गया।
यह बड़े हर्ष का विषय है कि नवाब सैयद रज़ा अली खां के निर्देश पर सैयद मुईन उद्दीन नदवी द्वारा तैयार मुहम्मद आरिफ कन्धारी की लिखी "तारीख़-ए-अकबरी" जिस लेख पर बाद में डॉ. सैयद अजहर अली द्वारा कार्य किया गया व अन्त में मौलाना इम्तियाज़ अली ख़ां अर्शी, पूर्व मुदीर, किताब खाना-ए-रज़ा द्वारा संकलित एवं सम्पादित तारीख़-ए-अकबरी 1962 में प्रकाशित हुई थी जो कि अब समाप्त हो गई थी, का री-प्रिन्ट कराया गया है ताकि शोधकर्ता 'तारीख़-ए-अकबरी' के फारसी लेख से लाभ उठा सकें।
मैं माननीय श्री राम नाइक, राज्यपाल उ.प्र. एवं अध्यक्ष रामपुर रज़ा लाइब्रेरी बोर्ड का धन्यवाद व्यक्त करता हूं जिनके मार्ग दर्शन में लाइब्रेरी के कार्य चल रहे हैं। डॉ. महेश शर्मा, माननीय संस्कृति मंत्री, भारत सरकार, श्री रविन्द्र सिंह, सचिव संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार का भी आभारी हूं जिन्होंने लाइब्रेरी के कार्यों के लिये वित्तीय सहायता उपलब्ध की। मैं धन्यवाद व्यक्त करता हूं श्रीमती जूथिका पाटंकर, प्रमुख सचिव श्री राज्यपाल उ.प्र. का जिनका सहयोग एवं सहायता हर समय हमें प्राप्त होती है। श्रीमती श्रेया गुहा, संयुक्त सचिव, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार का भी उनके सहयोग व सहायता के लिये आभार व्यक्त करता हूं।
मैं अपने सहकर्मियों डॉ. अबूसाद इस्लाही, लाइब्रेरी एवं सूचना अधिकारी, डॉ. मुहम्मद इरशाद नदवी, सुश्री आलिया शब्बीर, श्रीमती नाज़मा बी, श्री इस्बाह खान, श्री ए.के. सक्सेना, सुश्री मोहिनी रानी, श्रीमती बिल्कीस फारूकी, श्री ज़फ़ ख़ान, श्री फैसल खान और इं० शुजाउद्दीन खान का भी उनके सहयोग के लिये कृतज्ञ हूं जिनके बगैर यह महत्वपूर्ण कार्य संभव नहीं थे।
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