सृष्टि के आरम्भ के साथ ही कथायात्रा का भी श्रीगणेश हुआ है। 'हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता' की भांति कथा का अक्षुण्ण प्रवाह विभिन्न रूपों में निरन्तर गतिशील रहा है। हमारा समचा भारतीय वांगमय इसका स्पष्ट पमाण है। चाहे आप प्राण देखिये, वेद और शास्त्र पढ़िये, उपनिषद्, पहा भारत और रामायण उठाइये सभी में कथा या कहानी पक्ष ही आधार रहा है। इस तरह कथा किसी एक या अनेक घटनाओं का श्रृंखलाबद्ध रूप है जिसे उपाख्यान, आख्यान या कहानी नाम दिया गया है। 'कथा सरित्सागर' तो कथाओं का सागर ही है जिसमें कछ विशेष प्रकार की कहानियाँ संग्रहीत है। आप दूर क्यों जायें, सत्यनारायण की कथा तो प्रायः सभी हिन्दू सदैव सुनते ही रहते हैं।
जैसे-जैसे मनष्य शिक्षित होता गया, कथाओं के रूपों में परिवर्तन आने लगा और आज बीसवीं शताब्दी में इसका विस्तार बढ़ गया है। इस तरह हम कहानियों के युग में जी रहे हैं जिसमें देश-काल ही नहीं मनुष्य के जीवन के विभिन्न पहलुओं का समावेश हो गया है।
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