वर्तमान में कलाएँ शिक्षा जगत से जुड़ चुकी है। मात्र आनन्द वा मनोरंजन का संवाहक होना ही इन कलाओं का उद्देश्य अब नहीं रहा, यद्यपि इनमें ज्ञान का भण्डार निहित है. इसे चरितार्थ करना भी इसका लक्ष्य है। ऐसी शिक्षा को धरातल पर लाने का कार्य शिक्षा जगत और शिक्षालयों में प्रतिपादित हो रहा है, यथा-विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय व अन्य शिक्षण संस्थाएँ। इसने कलाओं को निरन्तर गम्भीरतापूर्वक सीखने-समझने-परखने का सुअवसर प्रदान किया है।
शिक्षालयों के संसाधनों में अध्ययन-लेखन की महत्ता बढ़ गई। शिक्षा और शिक्षण, दोनों को उत्कृष्ट बनाने हेतु अनेकानेक उत्कृष्ट गतिविधियों आरम्भ हुईं और इसकी आवश्यकता को सिद्ध करते हुए इस लेखन-कला पर बल भी दिया गया। तदनुकूल अध्ययन-मनन-चिन्तन की अपेक्षाएँ भी पनपने लगीं। आज कलाओं के प्रदर्शन के साथ-साथ संबंधित विभिन्न विषयों पर अबाध लेखन आवश्यक है। एतदर्थ शिक्षा-जगत से जुड़े होने के कारण प्रस्तुतियों के साथ-साथ शोधपरक सोदाहरण-व्याख्यान, संवाद और लेखन में रूचि की प्रगाढ़ता होने लगी। इसी क्रम में अनेक अवसरों पर आवश्यकतानुसार अनेक शोधालेखों को लिखने का अवसर प्राप्त हुआ। ये शोध-पत्र सम्मानित पत्र-पत्रिकाओं में सम्मिलित भी हुए हैं। निर्धारित समय-सीमा में उपलब्ध शोध-सामग्रियों को इनमें सन्निहित किया गया। पुनरपि, लेखन-निरन्तरता के कारण यथासमय अभिरुचिपूर्ण तथ्य निरन्तर प्राप्त होते रहे, उन्हें एकत्र कर, उनका पुनर्लेखन कर, नवीन तत्त्वों, तथ्यों के साथ पुनर्सम्पादन यहाँ किया गया है। लेखकीय निरन्तरता बनी रहे, ऐसी अपेक्षा के साथ !
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