राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में पाँच वर्षों का पहला खंड फाउंडेशन स्टेज की बात करता है और इसमें कथा-कहानी पर बल है। आलोच्य पुस्तक इसी को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। अभी-अभी प्रकाशित राष्ट्रीय पाठ्यचर्या-2023 में भी इसी का अनुकरण किया गया है। आलोच्य पुस्तक इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।
बचपन और कहानियों का एक अलग ही नाता है। यह कहानियां ही तो हैं, जो जिंदगी की छोटी से छोटी सीख बड़े ही सहज और सरल तरीके से दे जाती हैं और इसी सीख पर निर्भर करता है बच्चों का व्यक्तित्व। आज भले ही दिल बहलाने वाली बच्चों की नैतिक कहानियां हमारे जहन से धुंधली हो गई हों, लेकिन उनसे मिली सीख यकीनन आज भी आप सभी के दिलों में जिंदा होगी। वहीं आज के दौर की बात करें, तो हम बच्चों को बहलाने के लिए उनके हाथ में टीवी का रिमोट या मोबाइल थमा देते हैं और इस बात को भूल जाते हैं कि बच्चों को बहलाने से कहीं ज्यादा जरूरी है, उन्हें नैतिकता का पाठ पढ़ाना है। अगर याद हो, तो हमारे बुजुर्गों ने हमे नैतिकता का पाठ नैतिक कहानी के माध्यम से सिखाया था। अब सवाल यह उठता है कि वो नैतिक कहानियां आज भी महत्व रखती हैं, तो इसका जवाब हां है। यही कारण है कि हम कहानियों के इस भाग में कुछ ऐसी ही नैतिक कहानियां आपके बच्चों के लिए संजोकर लाए हैं। ये इन कहानियों का जादू ही है, जो बच्चों को जीवन भर भूलने नहीं देगा कि जिंदगी में नैतिक मूल्यों का होना कितना जरूरी है।
विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में एक हमारी भी संस्कृति है। भारत की सांस्कृतिक विरासत की कहानी का निर्माता एक जीवंत इतिहास है। सामान्य काल से पूर्व ही यहाँ पश्चिम दिशा से अनेक आक्रमण हुए यथाः इण्डो-ग्रीक, शक-पहलव, कुषाण, अफगानिस्तान, मुगल आदि। सभी भारत आए और यहाँ के होकर रह गए। यहाँ की संस्कृति से बहुत कुछ सीखा और अपनी बातें भी रखीं। इसका सीधा परिणाम निकला कि भारतीय संस्कृति खूब खूब समृद्ध हुई। आज हमारी सांस्कृतिक विविधता पूरे विश्व में यूनिक है। हाँ, हमारी उदारता, आपसी कलह और फूट का लाभ उठाकर एक फिरंगी ने हमें गुलाम बना लिया। उसके एक सिरफिरे अधिकारी मैकाले ने हमारी समझ को जाहिल करार दिया और हमारी साहित्यिक संपदा की खिल्ली उड़ाई। लेकिन उसने भी खुले हृदय से स्वीकारा कि भारत के लोग नैतिक और आध्यात्मिक रुप से यूरोप के समकक्ष है। भला हो उसका कि उसने इतना भी तो कहा है। अब यहीं से एक परिचर्चा की शुरुआत करने जा रहा हूँ, भारत के घर-घर में नैतिकता की फसलें उगाई जाती हैं। प्रत्येक दादी और नानी इसकी आदि स्रोत हैं। हमारे सभी उपनिषदें, पुराणों, बौद्ध-जैन कथाएँ, भक्ति व सूफी का व्यापक संसार आदि नैतिकता के प्रहरी हैं। अकेले रामचरित मानस नैतिकता के सबसे बड़ा प्रहरी हैं। अकेले रामचरित मनास पूरे उत्तर भारत का संविधान है। इसकी बातें नित्य लोग पालन करते हैं।
इसके अतिरिक्त हमारे पास तेलानीरामा, बीरबल, गोनू ओझा गोपाल भर (बंगाल) आदि जैसे महान् हाजिर जवाबी और लोककथा के हीरों हैं। इन सभी के योगदान से हमारे समाज में नैतिक चेतना की अक्षुण्ण ऊर्जा की आपूर्ति होती रहती है। धर्म की अवधारणा भारतीय नैतिकता का केन्द्र है। यह किसी के कर्तव्य, धार्मिकता और नैतिक दायित्वों को संदर्भित करता है। धर्म उम्र, जाति, लिंग और सामाजिक स्थिति जैसे कारकों के आधार पर भिन्न होता है। इसका विचार अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को इस तरह से पूरा करना है, जो समाज में सकारात्मक योगदान दे। भारतीय समाज में नैतिकता का अद्भुत स्रोत जैन व बौद्ध धर्मों का सिद्धांत है। इसके सबसे मुखर समर्थक स्वयं गाँधीजी हैं। इन सभी ने अहिंसा की सामूहिक वकालत की है|
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