भगवान कृष्ण का उनसे बड़े उम्र का मित्र अपने ससुराल से अपनी पत्नी को विदा करवाकर ला रहा था। उस समय भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ ब्रज में गायों को चरा रहे थे। उन्होंने देखा कि मेरा मित्र अपनी ससुराल से अपनी पत्नी को विदा कराके ला रहा है। मेरा मित्र मेरी उम्र से बड़ा है। अतः इनकी पत्नी मेरी भाभी लगेगी। मित्र और भाभी से मिलने के लिए भगवान उनके करीब पहुँचे। भगवान कृष्ण ने डोली में बैठी भाभी का मुख देखने की कोशिश की, पर भाभी ने अपनी माँ की कही हुई बात को मानकर, अपना मुख नहीं देखने दिया, क्योंकि उसकी माँ ने कहा था कि बेटी जिस गाँव में तेरा विवाह हुआ है, उस गाँव में कृष्ण रहता है, वह बड़ा ही नटखट है। तुम कभी भी उसे नहीं देखना। भगवान के कोशिश करने पर भी जब भाभी ने अपना मुख नहीं दिखाया तो भगवान वापस अपनी गायों के पास आ गये।
जब इन्द्र की पूजा के स्थान पर गोवर्धन की पूजा भगवान ने करवाई तो इन्द्र कुपित होकर भयानक आँधी के साथ घनघोर बारिस शुरू कर दी। इससे पीड़ित होकर सब गोप, कृष्ण के पास अपनी सुरक्षा की गुहार लिए पहुँचे। कृष्ण ने कहा कि अब गोवर्धन ही हमारी रक्षा करेगा। अतः सब गोवर्धन पर्वत के पास चलो। भगवान ने अपने हाथों से गांवर्धन को उठाकर बाएँ हाथ की कनिष्ठका अंगुली पर धारण कर लिया। गोवर्धन पर्वत रूपी छतरी के नीचे सब गोप-गोपियों सहित गऊएँ भी इन्द्र के कोप से सुरिक्षत हो गयीं। इन गोपियों के समूह में वह गोपी भी थी, जिसने भगवान द्वारा मुख देखने के प्रयत्न करने पर भी अपना मुख नहीं दिखाया था। इस गोपी की नजर भूल से श्रीकृष्ण की ओर चली गई और भगवान के सगुण स्वरूप को अपने नेत्रों से अपलक देखती अपने भाग्य की सराहना करने लगी। जिस रूप का दर्शन करने के लिए मुनि-जन ध्यान-समाधि लगाते हैं, जिसके चरणों की वंदना भगवान शंकर करते हैं। शेष, शारदा जिसकी महिमा गाते हुए नहीं थकते। बड़े-बड़े राजा-महाराजा जिनके चरणों में अपना शीश रखकर प्रणाम करते हैं। उनके दर्शन से अब तक मैं वञ्चित रही। फिर वह अपने को धिक्कारने लगी कि हमारा दुर्भाग्य है, जो मेरी माँ ने कृष्ण को नहीं देखने की सख्त सीख दी थी। भगवान स्वयं हमारे पास आये थे, पर मैंने उनका अपमान किया। भगवान के चरणों में गिरकर वह अपने से हुए अपराध की क्षमा माँगने लगी। भगवान ने उसके पश्चाताप को देखते हुए कहा- इस जन्म में तुमने मेरी अवहेलना की है, इसलिए इस जन्म में तो नहीं, पर अगले जन्म में तुझे मेरी भक्ति प्राप्त होगी। गोपी ने भगवान के गिर अर्थात् पर्वत धारण किए रूप (गिरधर) को अपने हृदय में धारण कर लिया। इसी संस्कार के कारण मीराबाई के सभी भजनों के अंत में गिरधर गोपाल शब्द आया है। भगवान के आशीर्वाद से वही गोपी लगभग 5 हजार वर्ष बाद मेड़ता (राजस्थान) के राजपरिवार में जन्म लिया, जो मीराबाई के नाम से विख्यात हुई।
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