भारतीय ज्ञान परम्परा एवं संस्कृति में योग का स्थान अत्यन्त समृद्ध और प्राचीन है। महाभारत, रामायण, चाणक्य नीति, मनुस्मृति आदि अन्य प्राचीन ग्रन्थों में युद्ध और योग के बीच के अंतर्सम्बन्धों का उल्लेख प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है, जहाँ योद्धाओं ने न केवल शारीरिक बल का, बल्कि मानसिक शांति, स्थिरता, दृढ़ता, आत्मबल और आत्म-नियंत्रण का भी विकास किया। इसी दृष्टिकोण से, यह पुस्तक "सैन्य योग" को एक व्यापक दृष्टि से प्रस्तुत करती है, ताकि सैन्य प्रशिक्षण और व्यक्तिगत विकास में योग का प्रभावी उपयोग किया जा सके।
इस पुस्तक की मुख्य विशेषताएँ:
1. योग एवं युद्ध कौशल का संगम।
2. मानसिक शक्ति का विकास ।
3. आधुनिक सैन्य जीवन में योग की उपयोगिता।
4. प्रशिक्षण के लिए प्रयोग एवं व्यवहारिक मार्गदर्शन ।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस पुस्तक की आवश्यकता इसलिए हुई क्यों की वर्तमान समय में, सैन्य जीवन में शारीरिक शक्ति के साथ-साथ मानसिक संतुलन की भी अत्यधिक आवश्यकता होती है। योग न केवल सैनिकों को शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने में सहायक है, बल्कि उनकी मानसिक दृढ़ता और आत्म-नियंत्रण को भी बढ़ाता है।
"सैन्य योग" पुस्तक का उद्देश्य इस प्राचीन कला को आधुनिक समय के सैन्य जीवन और उसके अनुशासन के अनुरूप ढालना है, ताकि सैनिकों और सामान्य व्यक्तियों दोनों को शारीरिक और मानसिक रूप से सशक्त बनाया जा सके। यह पुस्तक हर उस व्यक्ति के लिए है, जो युद्धकला, अनुशासन, और आत्म-नियंत्रण के माध्यम से स्वयं को विकसित करना चाहता है।
जन्मस्थान- कानपुर, उत्तर प्रदेश
जन्मतिथि- 20 अगस्त 1990
पिता का नाम- श्री सूर्यपाल सिंह
माता का नाम- स्वर्गीय ऊषा चौहान
शिक्षा- पी.एच.डी.
सेवा- भारतीय वायुसेना (रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार)
सम्मान- वैश्विक मानवीय पुरस्कार, प्रशंसा प्रशस्ति-एयर आफिसर कमांडिंग इन चीफ, प्रशंसा पत्र-मुख्य वायु कमान अधिकारी, वायु सेना
पता- इंजी. डी के सिंह (एम इ एस), प्लॉट न. 95, संघर्ष नगर, कर्रही बर्रा, कानपुर (उत्तर प्रदेश)-208027
भारतीय सेना जहाँ अपनी बृहत्ता के लिए जानी जाती है, वहीं वह अपने कौशल और नियन्त्रित जीवन शैली के लिए भी प्रसिद्ध है, किन्तु वर्तमान में बढ़ती समस्याओं और परिस्थितियों के कारण भारतीय सैन्यबल के कर्मी भी मानसिक परेशानियों से ग्रसित होते जा रहे हैं। जिसके अनेक कारण हो सकते हैं यथा- विभिन्न जलवायु तथा भौगोलिक जटिल परिस्थितियों में निरन्तर जीवन यापन करना तथा परिवार से दूरी एवं शारीरिक जटिलता आदि । इसी प्रकार की समस्या के कारण वर्तमान युग में एक सैनिक का जीवन संघर्ष तीव्र, अस्वाभाविक, उत्तेजक व दुर्धर्ष होता जा रहा है। जिससे सैनिक तनावग्रस्त होता जा रहा है। इस तनाव को दूर करने के लिए अनावश्यक उपायों का सेवन करता है, लेकिन यह सभी साधन भी सैनिक को तनाव रहित नहीं करते, केवल अस्वस्थ मनोरंजन प्रदान करते हैं, जिससे मन शान्त होना तो दूर नाडियों में और अधिक उत्तेजना लाकर बेचैनी व दुर्बलता को बढ़ाता है। फलतः सैन्यकर्मियों में भी मानसिक रोग हो रहे हैं।
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