आज की तेजी से भागती दुनिया और कठिन प्रतिस्पर्धात्मक दैनिक जीवन में, युवाओं को हमारी समृद्ध विरासत और अतीत को याद करने के लिए मुश्किल से ही समय मिलता है। यह सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है जब राष्ट्र आज़ादी का अमृत महोत्सव (भारतीय स्वतंत्रता के 77 वर्ष का स्मरणोत्सव) मना रहा है। भारत में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ाई एक अनूठी कहानी है, जो हिंसा से प्रभावित नहीं है। बल्कि एक कहानी जो इस लम्बे-चौड़े उपमहाद्वीप में वीरता, बहादुरी, सत्याग्रह, समर्पण और बलिदान की विविध कहानियों से भरी है। ये कहानियाँ समृद्ध भारतीय सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं की रचना करती हैं। इस प्रकार, गुमनाम नायकों को कम-ज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में परिभाषित करने की जरूरत नहीं है। वे कभी-कभी ऐसे नेता हो सकते हैं जिनके आदर्श भारतीय मूल्य प्रणाली को चित्रित करते हैं।
संचिता सिंह (जन्म 4 जून 1974) हिन्दी की जानी मानी लेखिका हैं। मध्य-प्रदेश के भिंड जिले में जन्मी प्रारंभिक शिक्षा मध्य-प्रदेश के भिंड में हुई। उन्होंने भिंड के एमजेस महाविध्यालय से स्नातक और इतिहास और समाजशास्त्र में एम.ए. किया । ग्वालियर वि.वि., से बी एड और एम. एड. की उपाधि प्राप्त की। कुछ दिनों तक एमजेस महाविध्यालय में अध्यापन के बाद भोपाल के सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में पोस्ट-डॉक्टरल रिसर्च के लिए गईं। वहीं रहते हुए उन्होंने लेखन कार्य शुरू किया। उनका परिवार मूल रूप से भिंड जिले के महुआ गाँव का रहने वाला है। आप का विवाह जाने माने लेखक विचारक डॉ. वीरेंद्र सिंह बघेल से भोपाल मे 2003 मे हुआ। उनकी पहली पुस्तक 2011 में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद उनकी से अब तक 35 से अधिक पुस्तकें विभिन्न प्रकाशको से प्रकाशित हो चुकी है। अपने लेखन में वैचारिक रूप से स्पष्ट और प्रौढ़ अभिव्यिक्ति के जरिए उन्होंने एक विशिष्ट स्थान बनाया है।
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