हम भारत के लोग राम को कैसे देखते हैं? राम का क्या अर्थ होता है? राम-नाम की कैसे व्याख्या कर सकते हैं? राम शब्द की महत्ता आप कैसे सिद्ध करेंगे? क्या रामराज्य की परिकल्पना में आप विश्वास करते हैं? राम किस तरह से राजनीति, अध्यात्म और मोक्ष का हिस्सा हैं? महात्मा गांधी का रामराज्य क्या था और आम आदमी का रामराज्य क्या है? कहते हैं कि राम भारत की संस्कृति के प्रतीक हैं, लेकिन कैसे ? आप अपने राम को कैसे देखते हैं? क्या राम सिर्फ हिंदुओं के लिए ही हैं या बाकी सभी के लिए भी ? अगर कोई राम के नाम पर गलत काम करे, तो आप उसे क्या कहेंगे? राम के जीवन को आदर्श मानते हुए क्या आप भी उसका अनुसरण करेंगे? क्या राजनीति के जरिए देश में रामराज्य की स्थापना संभव है? देश में रामराज्य लाने के लिए राम के किन आदर्शों का ईमानदारी से पालन करना होगा? क्या धर्म या अध्यात्म के जरिए देश में रामराज्य लाया जा सकता है या कोई और विकल्प है?
सबके राम को जानने-समझने के लिए हमें राम के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में जानना होगा। इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही इस पुस्तक की परिकल्पना की गई और फिर शोध के लिए ढेर सारी पुस्तकों से होकर गुजरने की हिम्मत जुटाई गई। श्रीराम के अनुकरणीय आदर्शों, जीवन-मूल्यों, सिद्धांतों और सत्यनिष्ठा की गंगोत्तरी में अवगाहन करवाती भावपूर्ण पुस्तक ।
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक फजले गुफरान एक दशक से भी लंबे समय तक हिंदुस्तान अखबार, नई दिल्ली से जुड़े रहे। फिल्म एवं एंटरटेनमेंट बीट पर वर्षों काम करते हुए सिनेमा को नई नजर से देखने वाले फजले ने बीएजी (BAG) ग्रुप के चैनल न्यूज-24 में भी बतौर प्रोड्यूसर अपनी सेवाएँ दीं।
फिल्म पत्रकारिता शुरू से ही फजले गुफरान का पसंदीदा क्षेत्र रहा है। पत्रकारिता के शुरुआती दिनों में उन्होंने रेडियो पर भी कई फिल्म-कार्यक्रम लिखे। फिल्में देखना और उनका विश्लेषण करना इनका शौक है। यही वजह है कि उन्होंने बॉलीवुड के खलनायकों पर अपनी पहली चर्चित पुस्तक 'मैं हूँ खलनायक' लिखी। उनका मानना है कि नायकों की बात तो हर कोई करता है, लेकिन खलनायक भी दमदार एक्टर होते हैं, इसलिए उनके बारे में सबको जानना चाहिए। उनकी दूसरी पुस्तक 'बायोपिक फिल्में : आधी हकीकत, पूरा फसाना' भी फिल्म के क्षेत्र से ही संबंधित है। फजले अब अपनी तीसरी पुस्तक 'मेरे राम सबके राम' के साथ हाजिर हैं, जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन और उनके आदर्शों पर आधारित है।
फजले गुफरान ने कॉलेज ऑफ कॉमर्स, पटना से राजनीति शास्त्र में स्नातक, मास कम्युनिकेशन में पीजी डिप्लोमा और पीजी डिप्लोमा इन हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट में भी डिग्री प्राप्त की है। संप्रति 'ली प्लानर' नामक जनसंपर्क कंपनी के निदेशक हैं।
हमारे देश भारतवर्ष के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार कहा था- ६" आप मेरा सब कुछ ले लीजिए, तब भी मैं जीवित रह सकता हूँ। लेकिन अगर आपने मुझसे मेरे राम को दूर कर दिया, तब मैं जीवित नहीं रह सकता।" गांधीजी राम को बहुत प्रेम करते थे। यही वजह है कि उन्होंने मृत्यु से पूर्व अंतिम शब्द 'हे राम !' कहा था। गांधीजी के लिए तो राम सब कुछ थे। इसी तरह से हर किसी के लिए राम कुछ-न-कुछ जरूर हैं। यानी राम सबके हैं- चाहे थोड़े, चाहे ज्यादा।।
सदियों से भगवान राम इस देश के आदर्श रहे हैं। हमारे जीवन के हर सदियों चरण में भगवान राम ने एक आदर्श की पराकाष्ठा को प्रतिस्थापित किया है। चाहे वह आदर्श पुत्र के रूप में हो या आदर्श शिष्य के रूप में। चाहे वह आदर्श पति के रूप में हो या फिर आदर्श राजा के रूप में। यही कारण है कि भगवान राम को मर्यादा का पर्यायवाची माना गया है और उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम की संज्ञा भी दी गई है। ऐसे में उन्हें समग्रता में समझना कितना जरूरी हो जाता है, इस पर विचार होना चाहिए। मंदिर बनाकर सिर्फ उनकी पूजा करने भर से उनके आदर्श स्थापित नहीं होंगे। वे तो तभी स्थापित होंगे जब भारत का हर नागरिक उनके आदर्शों पर ईमानदारी से चलने लगेगा। यानी सिर्फ राम को नहीं, राम की भी मानने की अवधारणा को देश-दुनिया में फैलाना होगा और एक सच्ची मानवता का उदाहरण प्रस्तुत करना होगा, तभी यह संभव है कि उनके आदर्श साकार रूप में इस पृथ्वी पर उतर आए।
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