कविकुलचूडामणि-कविकुलगुरु कालिदास धरती का एक विशेष विलोभनीय स्वप्न ! कालिदास की प्रत्येक रचना के आस्वाद में रसिक वाचक तन-मन की सुध खो जाता है। इतना ही नहीं उनकी अलौकिक रचनाओं के आगे नतमस्तक भी हो जाता है। जर्मन कवि गेटे जैसा दार्शनिक कालिदास की रचनाओं को अपने सर पर रख कर घंटों अत्यानंद की अनुभूति में नाचता रहता है। योगी अरविंद जैसा तत्वचिंतक भी भाव-विभोर हो जाता है। ऐसे महाकवि की रचनाएँ हर युग में प्रासंगिक हो जाती हैं।
कालिदास संस्कृत वाङ्गमय के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि-नाटककार रहे हैं। उन्होंने ऋतुसंहारम् (खण्डकाव्य), मेघदूतम् (सन्देश-काव्य), कुमारसम्भवम् (महाकाव्य), रघुवंशम् (महाकाव्य), मालविकाग्निमित्रम् (नाटक), विक्रमोर्वशीयम् (नाटक) एवं अभिज्ञानशाकुन्तलम् (नाटक) जैसी महान रचनाओं के रूप में सारस्वत योगदान किया है।
उपर्युक्त रचनाओं में से दूसरी रचना मेघदूतम् सर्वाधिक चर्चित है। इस संदेश-काव्य का अनन्य साधारण महत्व है, क्योंकि इसी रचना से कालिदास को वैश्विक कीर्ति प्राप्त हुई है। दक्षिणावर्तनाथ और मल्लिनाथ ने मेघदूतम् का स्रोत श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम्, पूर्णसरस्वती ने महाभारतम् को माना है। इस सन्देश-काव्य में मानवीय भावनाओं का अथाह सागर है।
कविता-कामिनी के कमनीय नगर में कालिदास का मेघदूत ऐसे भव्य भवन के सदृश है, जिसमें पद्यरूपी अनमोल रत्न जड़े हैं। ऐसे रत्न, जिनका मोल ताजमहल में लगे हुए रत्नों से भी कहीं अधिक है। ईंट और पत्थर की इमारत पर जल-वृष्टि का असर पड़ता है, आँधी-तूफान से उसे हानि पहुँचती है, बिजली गिरने से वह नष्ट-भ्रष्ट भी हो सकती है। पर इस अलौकिक भवन पर इनमें से किसी का कुछ भी ज़ोर नहीं चलता। न वह गिर सकता है, न घिस सकता है, न उसका कोई अंश टूट ही सकता है। काल पाकर और इमारतें जीर्ण होकर भूमिसात् हो जाती हैं; पर यह अद्भुत भवन न कभी जीर्ण होगा और न कभी इसका विध्वंस होगा। प्रत्युत इसकी रमणीयता-वृद्धि की ही आशा है।
अलकाधिपति कुबेर के कर्मचारी एक यक्ष ने कुछ अपराध किया था। उसे कुबेर ने एक वर्ष तक, अपनी प्रियतमा पत्नी से दूर जाकर रहने का दण्ड दिया। यक्ष ने इस दण्ड को चुपचाप स्वीकार कर लिया। अलका छोड़ कर वह रामगिरि नामक पर्वत पर गया वहीं उसने एक वर्ष बिताने का निश्चय किया। आषाढ़ का महीना आने पर बादल आकाश में छा गए। उन्हें देख कर यक्ष का पत्नी-वियोग-दुःख दूना हो गया। वह अपने को भूल-सा गया। इसी दशा में उस विरही यक्ष ने मेघ को दूत कल्पना करके, अपनी कुशल वार्ता अपनी पत्नी के पास पहुँचानी चाही। पहले कुछ थोड़ी-सी भूमिका बांध कर उसने मेघ से अलका जाने का मार्ग बताया; फिर संदेशा कहा। कालिदास ने मेघदूत में इन्हीं बातों का वर्णन किया है।
मेघदूत की कविता सर्वोत्तम कविता का बहुत ही अच्छा नमूना है। उसे वही अच्छी तरह समझ सकता है और उससे पूरा-पूरा आनन्द भी वहीं उठा सकता है, जो स्वयं कवि है।
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