मीणा लोग सिंधु सभ्यता के प्रोटो द्रविड़ लोग माने जाते हैं जिनका गणचिन्ह मीन (मछली) था। ये लोग आर्यों से पहले ही भारत में बसे हुए थे और उनकी संस्कृति-सभ्यता काफी बढ़ी चढ़ी थी। धीरे-धीरे आर्यों तथा बाद की अन्य जातियों से खदेड़े जाने पर ये सिंधु घाटी से हटकर 'आडावळा' पर्वत शृंखलाओं में जा बसे जहां इनके थोक आज भी हैं।
संस्कृत में 'मीन' शब्द की व्युत्पत्ति संदिग्ध होने कारण इन्हें मीन के पर्याय 'मत्सय' से संवोधित किया जाने लगा जबकि ये स्वयं अपने आपको 'मीना' ही कहते रहे। मत्स्यों का जो प्रदेश वेदों, ब्राह्मणों तथा अन्य भारतीय ग्रंथों में बताया गया है वहीं आज भी मीणा जाति का प्रमुख स्थान होने के कारण आधुनिक मीणे ही प्राचीन मत्स्य रहे होंगे। सीथियन, शक, क्षत्रय, हूण आदि के वंशज न होकर ये लोग आदिवासी ही है जो भले ही कभी बाहर से आकर बसे से ठीक उसी तरह जिस तरह आर्य बाहर से आकर बसे हुए बताये जाते है।
स्वभाव से भी युद्धप्रिय होने और दुर्गम स्थलों में निवास करने के कारण यह जाति भूमि का स्वामित्व भोगने वाले शासक वर्ग में ही रही है। राजस्थान में 'मीना' जाति 'मीणा' के नाम से जानी जाती है। विभिन्न निष्कर्षों के आधार पर लेखक ने मीणा इतिहास की कड़ियों को जोड़ने का प्रयास किया है उससे मीणा जाति के ऐतिहासिक इतिवृत को समझने में निश्चित ही सहायता मिलेगी।
नाम : डॉ. राजेश कुमार मीणा, स. क्षेत्रीय निदेशक (इग्नू) एवं समन्वयक-शैक्षणिक परामर्शदाता मंडल, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
पता : ग्रा. पो. नॉदरी तह. सिकराय, जि. दौसा (राजस्थान)
शैक्षणिक योग्यता :
NET, SET, JRF, SRF, M.Phil, Ph.D. (History).
NET; SET: JRF (Political Science)
L.L.B., University of Rajasthan Ph.D. प्राचीन राजस्थान समाज एवं संस्कृति का ऐतिहासिक अध्ययन (राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर)
मानद सदस्य :
अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली (ICHR)
प्रकाशित पुस्तके : प्राचीन राजस्थान समाज एवं संस्कृति का ऐतिहासिक अध्ययन अतुल्य भारत
सृजन : विगत लगभग 10 वर्षों से अधिक समय में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में नियमित व अबोध लेखन, अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों में रचनाएँ संकलित, 50 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों में सक्रिय भागीदारी, लगभग 20 शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं, साथ ही विभिन्न गैर-सरकारी संस्थाओं (N.G.O.) में सक्रिय भागीदारी।
(M) 9549800438, 9664397219; E-mail: rajeshnandri88@gmail.com
सर्वप्रथम माता-पिता, गुरु एवं भगवान के चरणों में शत-शत नमन प्रस्तुत 'मीणा इतिहास' लेखन का कार्य माननीय गुरुजनों की सहृदयता एवं असीम अनुकम्पा की छाया में पल्लवित एवं पुष्पित हुआ।
सर्वप्रथम गुरुजनों प्रोफेसर विजय कुमारी, प्रोफेसर विभा उपाध्याय, प्रोफेसर अभिलाषा, प्रोफेसर मनरुप सिंह मीणा, प्रोफेसर धर्मचंद्र चौवे, श्री रघुवीर प्रसाद, श्री घनश्याम मीणा जी के कुशल नेतृत्व, वात्सल्यसम-प्रेम, गरिमामय व्यक्तित्व, विद्धतापूर्ण मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन ने मुझे जिंदगी के उच्च शिखर पर पहुँचाया।
मीणा लोग सिंधु सभ्यता के प्रोटो द्रविड़ लोग माने जाते हैं जिनका गणचिन्ह मीन (मछली) था। ये लोग आर्यों से पहले ही भारत में बसे हुए थे और उनकी संस्कृति-सभ्यता काफी बढ़ी चढ़ी थी। धीरे-धीरे आर्यों तथा बाद की अन्य जातियों से खदेड़े जाने पर ये सिंधु घाटी से हटकर 'आडावळा' पर्वत श्रृंखलाओं में जा बसे जहां इनके थोक आज भी हैं।
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