इस ग्रन्थ में मालवा से उपलब्ध प्राचीन आहत एवं जनपद मुद्राओं (सर्वेक्षण, उत्खनन और व्यक्तिगत शासकीय संग्रह से प्राप्त) से सम्बन्धित विकीर्ण तथा अप्रकाशित समस्त प्रकार की नवीन सामग्री का समावेश किया गया है। शोध का प्रमुख उद्देश्य मालवा की तत्कालीन यत्र-तत्र संग्रहीत प्राचीनतम मुद्राओं का सुव्यवस्थित अध्ययन कर उनकी प्राचीनता, आविर्भाव, उन पर अंकित चिह्नों की प्रागैतिहासिक काल से निरन्तरता, चिह्नों का वर्गीकरण, विभिन्न आकार-प्रकार, धातु व तौल ज्ञात करना है। मुद्राओं की आहत विधि दीर्घ काल तक प्रचलित रही। इसका प्रमाण स्वतंत्र शासकों की लेख युक्त मुद्राओं पर उनके नामांकन के आहत किये जाने से प्रकट है। यद्यपि मुद्रा निर्माण पद्धति पूर्ण रूप से परिवर्तित हो गई थी, परन्तु क्वचित ढली व ठप्पांकित मुद्राओं पर चिह्न व लेख आहत किये जाते रहे। विद्वानों का मत है कि मुद्रा आलेखन प्रक्रिया हिन्द-यूनानी मुद्राओं के प्रभाव के कारण प्रारम्भ हुई, परन्तु एरण से प्राप्त ठप्पांकित ताम्र मुद्रा, जिस पर तीसरी शती ईसा पूर्व की अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि में 'धमपालस' नाम अंकित है, भारत की प्रारंभिक लेख युक्त मुद्रा है, जो हिन्द-यूनानी मुद्राओं से भी पूर्वकालीन है। इस पर ठप्पे से अंकित ब्राह्मी लिपि दायें से बायें लिखी गई है। अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि में बड़े अक्षरों का अंकन और केवल एक ही ठप्पे द्वारा मुद्रांकन यह दर्शाता है कि यह ठप्पांकित मुद्रा भारत की सर्वातिप्राचीन लेखांकित शासक नामांकित मुद्रा है। मुद्राओं के आधार पर मालवा की राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक व कला सम्बन्धी नवीन तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है।
मुद्राशास्त्र पर लेखन का सर्व प्रथम प्रयास कॅर्नल टॉड ने सन् 1824 में ट्रांजेक्शन ऑफ रायल एशियाटिक सोसायटी में मथुरा एवं भारत के अन्यतम स्थलों से संग्रहीत मुद्राओं का प्रकाशन करके किया। कनिंघम ने सर्वेक्षण (संन 1874-76) के मध्य मालवा के क्वचित् कुछ स्थलों उज्जैन, बेसनगर एवं सारंगपुर की मुद्राओं का प्रकाशन आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया रिपोर्ट्स व क्वायन्स आफ एन्शिएट इंडिया नामक ग्रन्थ में (सन् 1891) किया है। थियोबॉल्ड ने उज्जैन-एरण मुद्राओं पर अंकित चिह्नों का विवरण जॅर्नल एशियाटिक सोसायटी आफ बंगाल में सन् 1890 में दिया। ई. जे. रेप्सन ने 1897 ई. में इंडियन क्वायन्स नामक ग्रन्थ में एरण मुद्राओं पर प्रकाश डाला है। जेम्स प्रिंसेप ने उज्जयिनी से प्राप्त उज्जयिनी चिह्नांकित तीस मुद्राएँ/मुद्राओं, जिनमें दो उजयिन नामक मुद्राएँ हैं, एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल नामक जर्नल में प्रकाशित किया। व्हाइट किंग ने (1903-1904 ई.) मालवा की मुद्राओं व इतिहास पर प्रकाश डाला है। विन्सेन्ट स्मिथ के ग्रन्थ (सन् 1906) दि कॉटलाग आफ एन्शिएट इंडियन क्वायन्स इन दि इंडियन म्यूजियम में उज्जयिनी की ढली अथवा ठप्पांकित मुद्राएँ वर्णित हैं। देवदत्त रामकृष्ण भंडारकर ने बेसनगर उत्खनन सन् 1913-14 व 1914-15 के मध्य उपलब्ध मुद्राओं का विवरण आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, एन्यूअल रिपोर्ट में प्रकाशित किया। सन् 1921 में कार्माइकेल लेक्चर्स आन न्यूमिस्मेटिक नामक ग्रन्थ (1921 ई.) मे भी बेसनगर की मुद्राओं पर प्रकाश डाला है। मुद्रा शास्त्रियों द्वारा सौ वर्षों के मध्य मालवा की मुद्राओं पर यह लेखन का प्रयास किया गया।
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