पुस्तक के विषय में
भारतीय सस्कृति के अनन्य उपासक देशप्रेमी तथा हिन्दी के शिखर कवि मैथिलीशरण गुप्त (1886-1964) का जन्म झाँसी जनपद के चिरगाँव करबे में हुआ था । उनके पिता वैष्णव भक्त थे तथा रामकथा में उनकी विशेष रुचि थी । इसी भागवत परिवेश में गुप्त जी की कारयित्री प्रतिभा का विकास हुआ । उनकी प्रारम्भिक कविताएँ वैश्योपकारक पत्र में तथा बाद में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में आने के बाद सरस्वतीमें प्रकाशित होने लगीं । वर्ष 1909 में उनका पहला खण्ड काव्य रंग में भंग प्रकाशित हुआ और भारत भारती (1912) के प्रकाशन के साथ ही जनमानस ने गुप्त जी को एक्? स्वर से राष्ट्र कवि की उपाधि से अलंकृत कर दिया।
अपनी आरंभिक रचना जयद्रथ वध से लेकर साकेत पंचवटी यशोधरा उर्मिला पृथ्वी पुत्र: विष्णु-प्रिया : आदि कृतियों के द्वारा भारतीय संस्कृति की उदान्तता तथा तेजस्विता का जैसे बखान मैथिलीशरण जी ने किया है-वह अपने आप में श्लाघनीय प्रतिमान है और जातीय स्वाभिमान का जय-गान भी । पंचवटी में जहाँ भाव-छंद-भाषा और न्यास की श्रेष्ठता अपने प्रकर्ष पर है, वहाँ साकेत में युगधर्म की प्रखर अभिव्यक्ति देखी जा सकती है । गुप्त जी ने तिलोत्तमा चन्द्रहास तथा अवध नामक तीन नाटक भी लिखे ।
कविवर गुप्त ने अपने साठ वर्ष के अनवरत एवं अबाध लेखन काल में प्रबन्ध काव्य, खण्ड काव्य, मुक्तक काव्य तथा अनुवाद कार्य द्वारा प्रभूत यश अर्जित किया । राष्ट्रीय भावना से परिपूर्ण इनकी रचनाएँ जातीय अस्मिता का ओजस्वी चित्र प्रस्तुत करती हैं । वे केवल अतीत का गौरवगान ही नहीं करतीं बल्कि युगबोध की प्रेरणास्पद चेतना रमे भी दीप्त है ।
रेवती रमण (जन्म 1955) बी.आर आम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के हिंदी विभाग में आचार्य । आलोचना पर एक दर्जन से अधिक पुस्तकें । चर्चित पुस्तकें हैं-'हिन्दी आलोचना : 'बीसवीं शताब्दी: जातीय मनोभूमि की तलाश' एवं सर्जक की अंतर्दृष्टि' ।
भूमिका
कुछ कवि ऐसे होते हैं जो अपने सहज ज्ञान पर आधारित कविता लिखकर समय को इतिहास की धारा में गौरवशाली बना देते हैं । उनसे भिन्न कुछ कवि ऐसे भी होते हैं जो अपनी कालानुसरण की क्षमता से जातीय संवेदना को ही नयी भंगिमा में पुनर्प्रस्तुत कर देते हैं । मैथिलीशरण गुप्त दूसरे प्रकार के ही कवि प्रतीत होते हैं । उन्हें मध्यकालीन सगुणमार्गी कवियों की परम्परा में आधुनिक काल का एक समर्थ वैष्णव कवि होने का गौरव प्राप्त है । उनमें राम काव्य और कृष्ण काव्य की धाराएँ नए युग सन्दर्भ के उद्घाटन में सहायक बनी हैं । गुप्त जी की निश्चल भक्ति-भावना संप्रदायवादी संकीर्णता को चुनौती देती प्रतीत होती है । मध्यकालीन भक्तों की भाति उनके भी काव्य में भावनात्मक ऐक्य का उद्देश्य निहित है । गुप्त जी के लिए मातृभूमि सर्वेश की सगुण मूर्ति है, जो शताब्दियों की दासता से मुक्ति के लिए भारत पुत्रों का आवाह्न कर रही है । गुप्त जी दासता को पशुतुल्य मानते हैं । उनकी धार्मिकता स्वभावत: परदुःखकातर होने से देश और जाति के उद्धार के दायित्व निर्वाह में तत्पर लक्षित होती है ।
गुप्त जी का कवि कर्म पराधीन भारतवासियों को पूर्वजों के शील की शिक्षा से परिचित कराने का एक प्रभावशाली माध्यम है । उनका स्वर अधिकांश में उद्बोधनात्मक है । प्राचीन आर्य गौरव का स्मरण कराते हुए निशिवासर चिन्ता निमग्न वर्तमान को गुप्त जी आत्महीनता से बन्नाने का सा थक प्रयास करते हैं । उनकी किसानी चेतना इकहरी है और उपदेश को कवित्व विरोधी नहीं मानती । उनके बाद वाले दौर में उपदेश को कविता की कमज़ोरी माना गया और बिम्बविधान पर बल दिया गया । परन्तु गुप्त जी की कविता लम्बे समय तक उचित उपदेश का मर्म समझाती रही ।
मुझे लगता है, कविता को मनोरंजन की रीतिवादी अवधारणा से मुक्त करने के प्रयास में हो गफ जी की वाग्मिता वर्णनात्मक हो गई । अवश्य, इसमे काव्य भाषा के रूप में खड़ी -बोली को शिशुता भी कम विचारणीय नहीं ठहरती । खडी बोली मेँ काव्य रचना का मार्ग आज प्रशस्त राज मार्ग के समान लगता हे, द्विदी युग में ऐसा नहीं था; अब आचाय द्विवेदी के सर्वाग पूर्ण अभिभावकत्व में मैथिलीशरण गुप्त सरीखे कवियों ने काव्य भाषा की उपलब्धि का 'जो संघर्ष किया, उसमें नए दौर के युवा कवियों के लिए पर्याप्त मार्गदर्शक निहितार्थ हैं । गुप्त जी अद्वितीय विनम्रता के साथ काव्य भाषा अर्जित करते हैं । ब्रजभाषा के व्यामोह से छूट कर, अपने युग के गतिशील यथार्थ की चुनौती को स्वीकार कर गुप्त जी एक सुदीर्घ और लक्ष्यनिष्ठ कवितायात्रा पूरी करते हैं । उनका स्वदेशानुराग अप्रतिम है और भारतीय नारी को नए सन्दर्भ में समझने और समुचित प्रतिष्ठा दिलाने का प्रयास स्पृहणीय है ।
गुप्त जी का काव्य अपनी व्यापकता में पाठकों का गम्भीर रूप में सांस्कृतिक प्रशिक्षण करता है। वह जातीय संवेदना की बनावट और बुनावट को समझने की अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है ।
गुप्त जी जिस युग के प्रतिनिधि कवि हैं, उसमें कई अन्य कवियों ने भी काव्य भाषा की उपलब्धि के संघर्ष में अपने ढंग से भाग लिया है । श्रीधर पाठक, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' , ठाकुर गोपालशरण सिंह, नाथू रामशंकर, रामनरेश त्रिपाठी जैसे महत्त्वपूर्ण कवियों की भूमिका, खड़ी बोली को बोलचाल की भाषा से उठाकर कविता की समर्थ भाषा में ढाल देने में कम महत्व की नही है । परन्तु गुप्त जी का संघर्ष इसलिए अलग से विवेचन विश्लेषण के योग्य है कि उन्होंने भारत- भारती की रचना की है । राष्ट्रकवि द्विवेदी जी के काव्यानुशासन को मानने के कारण तो विशिष्ट हैं ही, उनमें लोकमर्यादा और नैतिकता की भारतीय जीवन दृष्टि विवरण के विस्तार में जगह पा सकी है । उन्होंने नैसर्गिक स्वच्छन्दता के कवियों के बीच होने के लिए बहुत कम लिखा । यह एक दृष्टि से उनके कविकर्म, की सीमा है तो दूसरी दृष्टि से शक्ति की सूचना भी ।
डॉ. रामविलास शर्मा ने आचार्य द्विवेदी के रीतिवाद विरोधी अभियान में गुप्त जी के वैचारिक और रचनात्मक योगदान का गंभीर और सुविस्तृत मूल्यांकन किया है । डॉ. शर्मा की दृष्टि में, "गुप्त जी द्विवेदी युग के समर्थ गद्य लेखक और आलोचक भी थे ।''
गुप्त जी अपनी ज्ञानात्मक संवेदना को काव्य के विविध प्रारूपों में कलात्मक क्षमता के साथ व्यक्त करते हैं । उन्होंने समय समय पर अन्य भाषाओं के गौरव कन्धों का पूरे मनोयोग से अनुवाद भी किया । इन बातों से गुप्त जी का स्थान हिन्दी जाति के साहित्य में ऐतिहासिक महत्त्व के साथ सुरक्षित हो गया है ।
इस विनिबन्ध के लेखक की आधार सामग्री मेरे मित्र श्री सुरेन्द्र प्रसाद सिंह ने उपलब्ध करायी है। उन्होंने अपनी निजी पुस्तकालय से गुप्त जी का समग्र साहित्य देकर मेरा कार्य थोड़ा आसान कर दिया । उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन उनके स्नेह भाव को आहत करने जैसा प्रतीत होता हे । गुप्तजी के जीवन और साहित्य पर हिन्दी मे अनेक पुस्तकें मिलती हैं । परन्तु मेरी सहायता विशेष रूप से जिन पुस्तकों ने की, उनमें श्री प्रभाकर माचवे की 'मैथिलीशरण गुप्त' और डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय की अतीत का हंस : मैथिलीशरण गुप्त' का स्थान सबसे ऊपर है । कुछ महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं के मैथिलीशरण गुफा विशेषांक भी तथ्यों के संकलन में सहायक हुए ।
विषय-सूची
1
7
2
ऐतिहासिक एव सामाजिक पृष्ठभूमि
9
3
राष्ट्रकवि का जीवन वृत्त
16
4
रचना यात्रा की सक्षिप्त रूपरेखा
25
5
'साकेत' और 'जयभारत'
36
6
हिन्दी नवजागरण और गुफा जी का काव्य
47
किसानों की नियति से साक्षात्कार
55
8
जातीय संवेदना और प्रमुख नारी-चरित्र
66
काव्य भाषा की उपलब्धि का सघर्ष
80
10
रचनाएँ
89
11
उपसंहार
96
परिशिष्ट
98
(क) मैथिलीशरण गुज द्वारा रचित पुस्तकें
(ख) प्रमुख सहायक पुस्तकें एव पत्रिकाएँ
100
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