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मैं हिजड़ा...मैं लक्ष्मी- Main Hijra... Main Lakshmi

$29
Specifications
HBD111
Author: Laxmi Narayan Tripathi
Publisher: Vani Prakashan
Language: Hindi
Edition: 2015
ISBN: 9789352293223
Pages: 176 (B/W Illustrations)
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
320 gm
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Book Description
पुस्तक का पिछला भाग
हिजड़ा' मूल उर्दू शब्द है। वो भी 'हिजर' इस अरेविक शब्द से आया हुआ। 'हिजर' यानी अपना समुदाय छोड़ा हुआ, उस समुदाय से वाहर निकला हुआ। मतलब स्त्री-पुरुषों के हमेशा के समाज से बाहर निकलकर स्वतन्त्र समाज बना के रहनेवाला। ये अर्थ इस शब्द में ही समाया हुआ है। हमारे पूरे देश में हिजड़ा समाज है और अलग-अलग भाषाओं में उसके लिए अलग-अलग शब्द हैं। अलग-अलग राज्यों के हिसाव से उनका इतिहास, संस्कृति भी जरा जरा अलग है।

उर्दू और हिन्दी में 'हिजड़ा' शब्द है। इसके साथ ही उर्दू में 'ख्वाजासरा' भी कहा जाता है हिजड़ों को। अपने प्राचीन ग्रन्थों में 'किन्नर' शब्द की संकल्पना है। इस वजह से हिजड़ों को हिन्दी में 'किन्नर' भी कहते हैं। मराठी में 'हिजड़ा' और 'छक्का' ये दो शब्द प्रचलित हैं। गुजराती में उन्हें 'पावैया' कहते हैं तो पंजावी में 'खुस्रा' या 'जनखा'। तेलुगु में 'नपुंसकुडु', 'कोज्जा', 'मादा' कहा जाता है, तो तमिल में 'शिरूरनान गाई', 'अली', 'अरवन्नी', 'अरावनी', 'अरुवनी' शब्द इस्तेमाल किये जाते हैं।

किसी भी भाषा में चाहे जो कहके बुलाएँ, तो भी 'हिजड़ा' संकल्पना थोड़े-से फ़र्क से वही है। 'हिजड़ा' पुरुष के रूप में जन्म लेता है। वचपन से पुरुष के रूप में ही बड़ा होता है... लेकिन मूल रूप से ही उसकी लैंगिकता अलग होती है। बड़ा होते-होते वो स्त्री की भूमिका अपनाने लगता है। उसका दिखना, वर्ताव करना, चाल-ढाल, हाव-भाव सभी लड़कियों की तरह होने लगते हैं। उसे खुद भी उसका एहसास होने लगता है। लेकिन समाज की नजर में ये बातें खलने लगती हैं और लोग उसे चिढ़ाने लगते हैं। वो विल्कुल नासमझ होते हैं, ऐसा नहीं है; और बहुत कुछ समझ में आता है, ऐसा भी नहीं है। ऐसी कच्ची उम्र के ये लड़के फिर उलझन में आ जाते हैं। अकेले रहने लगते हैं। 'मैं कौन हूँ' इस सवाल का जवाब हर तरह से खोजते रहते हैं और फिर 'मैं औरत हूँ' ऐसा तय करके औरतों के जैसे ही, यानी हिजड़ा वनते हैं।...

पुस्तक परिचय
लोग जनम' की साड़ी ओढ़कर 'लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी उर्फ राजू' उस अंग समेत जिसे लेकर पुरुषप्रधान समाज अहंकार में डूबा अपनी जुबान से गालियों में दुनिया भर की औरतों को भोग चुका होता है, हिजड़ा समुदाय में शामिल हो गया। सदमा लिंग व लिंगविहीन दोनों समुदायों में था। क्यों यह बच्चा नर्क में गया। केवल एक शख्स था जिसके माथे से तनाव की लकीरें मिट गयी थीं, वह था लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी। लक्ष्मी कहती है, "में सोई मुद्दत बाद ऐसी गहरी नींद जिससे रश्क किया जा सके।" इसी दिशा में मैं अपनी पहचान और हैसियत बनाऊँगी। और मैं गलत नहीं थी डार्लिंग। वही किया, फिर भी कभी-कभी तड़प भरी उदासी भीतर भरती है। मेरी जान! मुझे लगता है जीवन की लय तो हाथ लगती नहीं वस नाटक किये जाओ जीने का। मैं चौंकती हूँ। स्मृति में सिंधुताई (माई) की आवाज़ कौंधती है, वेटा बस स्वांग किये जा रही हूँ। लक्ष्मी कहती है, कल शाम को घर में बैठे-बैठे रोने लगी। साथ सारे चेले भी रो पड़े। लक्ष्मी की आँखें भरी हैं। मैं मुँह खिड़की की ओर घुमा लेती हूँ। वैशाली लक्ष्मी का हाथ सहलाने लगती है। खिड़की पर 'कामसूत्र' से लेकर अनेक बड़े लेखकों की किताबें रखी हैं। लक्ष्मी खूव पढ़ती है। खूब सोचती है। उसमें चिन्तन की एक धार है। लक्ष्मी ने फिर अपने को दर्द में डुबो लिया। धीरे-धीरे बोलने लगी, जो लोग मुझे चिढ़ाते थे वे ही लोग मेरे शरीर को भोगने की इच्छा रखते थे। पुरुष को किसी भी चीज़ में यदि स्त्रीत्व का आभास मात्र हो जाय वह उसे अपने क़दमों तले लाने के लिए पूरी ताकत लगा देता है। लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी उर्फ राजू अव नयी दुनिया का वाशिन्दा था। इसी नयी दुनिया का अनदेखा-अनजाना चेहरा मौजूद है लक्ष्मी की आत्मकथा में। कई भ्रमों, पूर्वाग्रहों को ध्वस्त करती हुई यह आत्मकथा न केवल हमें उद्वेलित करती है वल्कि अनेक स्तरों पर मुख्य समाज की भूमिका को प्रश्नांकित करती है। इस आत्मकथा की महत्ता किसी प्रमाण की मोहताज नहीं है।

लेखक परिचय
लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी

जन्म : थाणे (महाराष्ट्र), सन् 1979 में ।

शिक्षा : बी.कॉम., मीठीबाई कॉलेज, मुम्बई ।

लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी अनेकानेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी होने के साथ-साथ कैंसर पीड़ित व एच.आई.वी. के लिए भी कार्यरत हैं। हिजड़ों व महिलाओं की समस्याओं को भी उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उठाया है। विश्व के अनेक देशों में उन्होंने भारतीय हिजड़ा समाज का प्रतिनिधित्व भी किया है। अनेकानेक पुरस्कार व सम्मान से सम्मानित लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी हिजड़ा समाज की शिक्षा और अधिकारों के लिए पूर्णतः समर्पित हैं।

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