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महोबा- आल्हा ऊदल की महागाथा: Mahoba- Aalha Udal Ki Mahagatha

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Item Code: HBC755
Author: Sudha Chauhan ''Raj''
Publisher: REDGRAB BOOKS PVT. LTD, PRAYAG
Language: Hindi
Edition: 2017
ISBN: 9789387390188
Pages: 456
Cover: PAPERBACK
Other Details 8.00x5.00 inch
Weight 460 gm
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100% Made in India
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Book Description
भूमिका भविष्य पुराण से

भविष्य पुराण के तृतीय सर्ग में लिखा है कि द्वापरयुग के अंत में कुरुक्षेत्र का प्रसिद्ध महायुद्ध हुआ। हम इसे महाभारत के नाम से जानते हैं। इस युद्ध में सभी कौरवों का अंत हो गया और पांडव विजयी हुए। अठारहवें दिन जब दुर्योधन मारा गया तो युद्ध समाप्त हो गया। तभी भीम ने कहा ..... हे केशव, हमारी और युद्ध करने इच्छा है, अभी हमारा मन नहीं भरा।

भीम की बात सुनकर सभी पांडव एक साथ बोले..... हां हां, हम भी युद्ध करना चाहते हैं। केवल युधिष्ठिर चुप रहे।

तब भगवान श्री कृष्ण को बहुत दुख हुआ कि इतना बड़ा नरसंहार होने के बाद भी इनका मन नहीं भरा है। अब कौरवों के द्वारा हराकर मैं इन सभी का घण्मड मिटाऊंगा। यही सोच कर वह बोले.... कलियुग में तुम्हारी यह इच्छा पूर्ण होगी। तुम्हारा सारा जीवन युद्ध करते हुए ही बीतेगा। युद्ध के समय सभी पांडव सरस्वती नदी के किनारे शिविर में रह रहे थे। युद्ध के अंतिम दिन श्रीकृष्ण को कुन्ती और धृतराष्ट्र से मिलने हस्तिनापुर जाना था, पर वह पांडवों की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। भगवान शिव से प्रार्थना कर कहा.... भगवन आप मेरे भक्त पांडवों की रक्षा कीजिए। भगवान शिव शिविर की रक्षा करने लगे। मध्य रात्रि के समय अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य छुपकर पांडवों के शिविर के पास आये। शिविर की रक्षा में शिवजी को खड़ा देख तीनों उनकी स्तुति करने लगे। अश्वत्थामा तो शिव भक्त था, भगवान शंकर ने उनकी प्रार्थना पर प्रसन्न होकर शिविर में जाने की अनुमति दे दी। बलवान अश्वत्थामा ने प्रथम कक्ष में देखा कि पांच लोग सोये हुए हैं। उसने उन्हें पांडव समझा और शिवजी की दी हुई तलवार से पांचों की हत्या कर दी। कृपाचार्य ने धृष्टघुम्न को मार डाला। इस नरसंहार की सूचना मिलने पर पांडव अपने कक्ष से बाहर आये और अपने पांचों पुत्रों को मरा हुआ देखकर, मोहवश उन्होंने सोचा कि यह सब शिव ने ही किया है। वह अपना आपा खोकर शिवजी से युद्ध करने लगे। पांडवों के द्वारा चलाये गये सभी अस्त्र शस्त्र शिवजी के शरीर में समा गए, जो शिवजी ने ही उन्हें प्रदान किए थे। इससे कुपित होकर शिवजी ने उन्हें शाप दे दिया। तभी श्रीकृष्ण ने बीच बचाव कर शिवजी का क्रोध शांत किया। असली अपराधी का नाम जानकर पांडव शिवजी के चरणों में गिरकर अपने अपराध की क्षमा मांगने लगे।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे महादेव, पांडवों के जो अस्त्र शस्त्र आपके शरीर में समा गए हैं। उन्हें पांडवों को वापस कर दीजिए और अपने शाप से मुक्ति भी दीजिए।

भगवान शिव ने कहा-हे केशव, मेरा वचन मिथ्या नहीं होगा। ये सभी पांडव तथा कौरव कलियुग में पुनः जन्म लेकर अपने-अपने पापों का फल भोगकर पाप मुक्त हो जायेंगे। इन सभी अस्त्रों शस्त्रों की शक्ति उनको कलियुग में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त रहेगी। इसके अलावा इनके पास जादू की शक्ति भी होगी। हालांकि इन सभी का सौ साल के भीतर ही जीवन समाप्त हो जायेगा। उनके जन्म इस प्रकार होंगे। धृतराष्ट्र और पांडु अपने श्राप को भोगने के लिए कलियुग में दस्सराज और बच्छराज के नाम से जन्म लेंगे। इनकी भी लड़ने की इच्छा कलयुग में पूरी होगी। यह बहुत ही बलशाली और महावीर होंगे।

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