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महीयषी मंजूषा: Mahiyashi Manjoosha

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Specifications
HBE169
Author: Jai Prakash Patel, Anju Singh Patel, Sangeeta Singh
Publisher: RAKA PRAKASHAN, ALLAHABAD
Language: Hindi
Edition: 2024
ISBN: 9789390964826
Pages: 203
Cover: HARDCOVER
9x6 inch
358 gm
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Book Description
पुस्तक परिचय

'महीयषी मंजूषा' पुस्तक आधुनिक भारत की वीरांगनाओं के कार्यों एवं विचारों पर आधारित है। इन महिलाओं ने न सिर्फ नारी सशक्तिकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है बल्कि देश व समाज की प्रगति में सराहनीय योगदान दिया है। विभिन्न विद्वान लेखकों ने अलग-अलग बहादुर एवं विदुषी महिलाओं पर तथ्यपरक एवं विश्लेषणात्मक विधि से लेख तैयार किया है, जो शिक्षार्थी, शोधार्थी, शिक्षक, आचार्य, चिंतक सहित समस्त पाठकों के लिए अत्यन्त उपयोगी है।

लेखक परिचय

डॉ० जय प्रकाश पटेल का जन्म 16 सितम्बर 1980 ई० को प्रयागराज के आलानगरी गाँव में एक कृषक परिवार में हुआ। आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय सहित अन्य केन्द्रीय, राज्यीय एवं मुक्त विश्वविद्यालयों से एम० ए० (हिन्दी, संस्कृत, दर्शन शास्त्र, इतिहास, शिक्षाशास्त्र) एम० एड्०, एम०जे०, एम० एस० डब्ल्यू०, पीएच० डी० (शिक्षा) और यू०जी०सी० (नेट) की परीक्षा शिक्षाशास्त्र एवं हिन्दी विषय से उत्तीर्ण की है। डॉ० पटेल की अब तक तीन पुस्तक 'शिक्षा संस्थाओं में नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्य "सुरंग में सुबह और सत्ता विमर्श' और 'अकाल सन्ध्या में ग्रामीण संस्कृति' प्रकाशित हुयी है और आपके द्वारा 14 पुस्तकों का सम्पादन किया गया है। आप विभिन्न शोध पत्रिकाओं में सम्पादक मण्डल के सदस्य हैं। इसके अतिरिक्त 125 शोध पत्र विभिन्न शोध पत्रिका एवं पुस्तक में प्रकाशित और 78 शोधपत्र विभिन्न संगोष्ठियों में प्रस्तुत किया गया है। डॉ० पटेल को न सिर्फ शान्ति, न्याय एवं मानवता के लिए पीएच०डी० और उत्कृष्ट शैक्षिक कार्य के लिए डी० लिट्० की मानद उपाधि प्राप्त है बल्कि विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा शैक्षिक एवं सामाजिक गतिविधियों के लिए 30 से अधिक बार पुरस्कृत किया गया है।

सम्पादकीय

प्राचीन काल से भारत में स्त्रियों को सम्मानजनक स्थान प्राप्त होता रहा है। सिन्धु घाटी सभ्यता को मातृसत्तात्मक होने का प्रमाण प्राप्त होता है तो वैदिक एवं उसके बाद की संस्कृतियों में स्त्रियों को देवी, माँ, सहचरी, प्राण आदि कहकर पुकारा जाता था। घोषा, गार्गी, आत्रेयी, शकुन्तला आदि महिलाओं ने अपने ज्ञान का लोहा मनवाया। मध्यकाल में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट मानी जा सकती है। पर्दा प्रथा और बाल विवाह जैसी कुप्रथाएं महिलाओं को घर की चहारदीवारी में कैद कर दिया। हालांकि मध्यकाल में भी रजिया सुल्ताना, चाँद बीबी, गुलबदन बेगम, रानी दुर्गावती, अहिल्याबाई, जीजाबाई सहित कई स्त्रियां भारत में स्मरणीय हैं किन्तु अपेक्षाकृत समस्त महिलाओं की स्थिति में अवनति हुयी। ब्रिटिश काल में महिलाओं की स्थिति में आंशिक सुधार हुआ। कम्पनी और ब्रिटिश शासन की कई योजनाओं में स्त्री शिक्षा को बढ़ावा दिया गया। इधर राष्ट्रीय आन्दोलनकारी भी स्त्रियों को आगे बढ़ने का अवसर दे रहे थे। इससे भारतीय नारी के उत्थान में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ। दूसरे शब्दों में आधुनिक भारत में स्त्रियों की स्थिति में निरन्तर परिवर्तन हो रहा है। के० नटराजन ने तो यहां तक कहा है- "यदि सौ वर्ष पूर्व मरने वाला व्यक्ति आज फिर जीवित हो जाय, तो उसे आश्चर्यचकित करने वाला सर्वप्रथम एवं सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन स्त्रियों की स्थिति में क्रान्तिकारी परिवर्तन होगा।" इसके लिए एक ओर हमारे देश की परिस्थितियां सहायक रही है तो दूसरी ओर अनेक महापुरुषों जैसे राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, दयानन्द सरस्वती आदि ने स्त्री शिक्षा की बढ़ोत्तरी और सामाजिक सुधार पर विशेष बल दिया है। यही नहीं, आधुनिक काल में कई क्रान्तिकारी एवं विदुषी नारियों ने स्त्रियों की स्थिति में बदलाव के लिए आगे आयीं तो कई नारियां अन्य महिलाओं के लिए उदाहरण बन गयीं।

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