शंकराचार्य के बारे में यह प्रसिद्ध है कि मात्र आठ वर्ष की आयु में उन्होंने चारों वेदों का अध्ययन कर लिया। बारह वर्ष तक सर्व शास्त्रवेत्ता बन गए। सोलह वर्ष में उन्होंने भाष्य रचना कर डाली और बत्तीस वर्ष की आयु में उनका महाप्रयाण हुआ। उनके अनेक अनुयायी उन्हें शिव का अवतार भी मानते हैं। यह उपन्यास तथ्यों के साथ रेखांकित करता है कि शंकराचार्य के सबसे प्रबल विरोधी प्रायः बौद्ध थे जो वैदिक धर्म के समस्त रूपों का विरोध करते थे। जबकि बौद्धधर्म का सार तत्त्वतः वेदान्त दर्शन से भिन्न नहीं है। ऐसे में आचार्य शंकर ने अपनी दिव्य वाग्मिता से बौद्धों और अन्य वेद-विरोधी
सम्प्रदायों के लोगों को जिस तरह पराभूत किया, वह एक मिसाल है।
अद्वैत वेदान्त की महिमा और श्रेष्ठता प्रतिष्ठापित कर देने के बाद आचार्य शंकर ने भारत की चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित किए। उत्तर में हिमालय बदरिकाश्रम में ज्योतिर्मठ, दक्षिण में कर्नाटक राज्य के अन्तर्गत श्रृंगेरी मठ, पश्चिम में द्वारका में शारदा मठ और पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्धन मठ। आज भी उनके स्थापित ये मठ वैदिक विद्या के केन्द्र हैं जिनका मनोरम वर्णन इस उपन्यास में किया गया है।
आचार्य शंकर के काल-निर्धारण में काफ़ी मतभेद है। अधिकांश इतिहासकार उन्हें सातवीं या आठवीं शताब्दी का व्यक्तित्व मानते हैं लेकिन लेखक ने अपने अन्वेषण के आधार पर प्रस्तावित किया है कि आद्य शंकराचार्य का जन्म आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व हुआ था।
यह उपन्यास जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के जीवन के तमाम आयामों से गुज़रते उनकी धर्म-दिग्विजय यात्रा को जिस तरह विस्तार एवं रोचकता के साथ प्रस्तुत करता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
उनके चार काव्य-संग्रह, चार कहानी-संग्रह तथा आठ उपन्यास क्रमशः-'अथ मूषक उवाच', 'चींटे के पर', 'हमारा क्षितिज', 'मम अरण्य', 'शाने तारीख', 'रंग राची', 'कथा विराट', 'बर्फ और अंगारे' प्रकाशित हैं।
उन्हें हिन्दी-कश्मीरी संगम, श्रीनगर द्वारा शैव संत स्वामी लक्ष्मण जू मनीषी साहित्य सम्मान, भारतीय पत्रकारिता संस्थान एवं मानव सेवा क्लब, बरेली द्वारा विष्णु प्रभाकर साहित्य सम्मान, लोक संस्कृति शोध संस्थान, लखनऊ द्वारा 'मीराबाई लोक साहित्य सृजन सम्मान', उ.प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, भारतीय वांग्मय पीठ, कोलकाता द्वारा साहित्य शिरोमणि सारस्वत सम्मान, साहित्य अकादेमी मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल द्वारा वीर सिंह देव पुरस्कार, नागरी प्रचारणी सभा सम्मान, उ.प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा अमृतलाल नागर सर्जना पुरस्कार, कथा, यू.के. लंदन द्वारा इंदु शर्मा कथा सम्मान तथा साहित्य समर्था पत्रिका, जयपुर द्वारा अखिल भारतीय शिक्षाविद् पृथ्वीनाथ भान साहित्य सम्मान समेत कई सम्मानों से सम्मानित किया गया है।
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