महाभारत कथा: Mahabharat Katha by C.Rajagopalachari

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Item Code: NZA987
Author: CHAKRAVARTI RAJGOPALACHARYA
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Prakashan
Language: Hindi
Edition: 2024
ISBN: 9788173091810
Pages: 376
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 390 gm
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Book Description

प्रकाशकीय

हिन्दी के पाठक प्रस्तुत पुस्तक के विद्वान लेखक से भली- भांति परिचित हैं। उन्होंने जहां हमारी आजादी की लड़ाई में अपनी महान देन दी है, वहां अपनी। शक्तिशाली लेखनी तथा प्रभावशाली लेखन-शैली से साहित्य की भी उल्लेखनीय सेवा की है। 'मण्डल' से प्रकाशित उनकी 'दशरथनंदन श्रीराम', 'राजाजी की लघु कथाएं', 'कुना सुन्दरी' तथा 'शिशु-पालन' आदि का हिन्दी जगत में बड़ा अच्छा स्वागत हुआ है।

इस पुस्तक में राजाजी ने कथाओं के माध्यम से महाभारत का परिचय कराया है । उनके वर्णन इतने रोचक और सजीव-हैं कि एक बार हाथ में उठा लेने पर पूरी पुस्तक समाप्त किए बिना पाठकों को संतोष नहीं होता। सबसे बड़ी बात यह है कि ये कथाएं केवल मनोरंजन के लिए नहीं कही गई हैं, उनके पीछे कल्याणकारी हेतु है और वह यह कि महाभारत में जो हुआ, उससे हम शिक्षा ग्रहण करें।

इस पुस्तक का अनुवाद भी अपनी विशेषता रखता है। उसके पढ़ने में मूल का- सा रस मिलता है। भारत सरकार की ओर से उस पर दो हजार रुपये का पुरस्कार प्रदान किया गया था।

प्रस्तुत पुस्तक का यह नया संस्करण है। पुस्तक की उपयोगिता को देखते हुए विचार किया गया है कि इसका व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार होना चाहिए। यही कारण है कि कागज, छपाई के मूल्य में असाधारण वृद्धि हो जाने पर भी इस संस्करण का मूल्य हमने कम-से-कम रखा है। हमें पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक सभी क्षेत्रों और सभी वर्गो में चाव से पढ़ी जायेगी।

दो शब्द

मैं समझता हूं कि अपने जीवन में मुझसे जो सबसे बड़ी सेवा बन सकी है, वह है महाभारत को तमिल- भाषियों के लिए कथाओं के रूप में लिख देना । मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि 'सस्ता साहित्य मंडल' ने 'दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार-सभा' के एक दक्षिण भारतीय द्वारा किये हुए हिन्दी रूपान्तर को बढ़िया मानकर उत्तर भारत के पाठकों के समझ उपस्थित करने के लिए स्वीकार कर लिया।

हमारे देश में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा, जो महाभारत और रामायण से परिचित न हो, लेकिन ऐसे बहुत थोड़े लोग होंगे, जिन्होंने कथावाचकों और भाष्यकारों की नवीन कल्पनाओं से अछूते रहकर उनका अध्ययन किया हो। इसका कारण संभवत: यह हो कि ये नई कल्पनाएं बड़ी रोचक हों। पर महामुनि व्यास की रचना में जो गांभीर्य और अर्थ-गढ़ता है, उसे उपस्थित करना और किसी के लिए संभव नहीं । यदि लोग व्यास के महाभारत को, जिसकी गणना हमारे देश के प्राचीन महाकाव्यों में की जाती है और जो अपने ढंग का अनूठा ग्रंथ है, अच्छे वाचकों से सुनकर उसका मनन करें तो मेरा विश्वास है कि वे ज्ञान, क्षमता और आत्म-शक्ति प्राप्त करेंगे। महाभारत से बढ़कर और कहीं भी इस बात की शिक्षा नहीं मिल सकती कि जीवन में विरोध- भाव, विद्वेष और क्रोध से सफलता प्राप्त नहीं होती। प्राचीन काल में बच्चों को पुराणों की कहानियां दादियां सुनाया करती थीं, लेकिन अब तो बेटे-पोतेवाली महिलाओं को भी ये कहानियांज्ञात नहीं हैं। इसलिए अगर इन कहानियों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाये तो उससे भारतीय परिवारों को लाभ ही होगा।

महाभारत की इन कथाओं को केवल एक बार पढ़ लेने से काम नहीं चलेगा। इन्हें बार-बार पढ़ना चाहिए। गांवों में बे-पढे-लिखे स्त्री-पुरुषों को इकट्ठा करके दीपक के उजाले में इन्हें पढ़कर सुनाना चाहिए। ऐसा करने से देश में ज्ञान, प्रेम और धर्म-भावनाओं का प्रसार होगा, सबका भला होगा।मेरा विश्वास है कि महाभारत की ये संक्षिप्त कथाएं पाठकों को पहले की अपेक्षा अच्छा आदमी, अच्छा चिन्तक और अच्छा हिन्दू बनावेंगी।

प्रश्न हो सकता है कि पुस्तक में चित्र क्यों नहीं दिए गए? इसका कारण है। मेरी धारणा है कि हमारे चित्रकारों के चित्र सुन्दर होने पर भी यथार्थ और कल्पना के बीच जो सामंजस्य होना चाहिए वह स्थापित नहीं कर पाते। भीम को साधारण पहलवान, अर्जुन को नट और कृष्ण को छोटी लड़की की तरह चित्रित करके दिखाना ठीक नहीं है। पात्रों के रूप की कल्पना पाठकों की भावना पर छोड़ देना ही अच्छा है।

 

विषय-सूची

1

गणेशजी की शर्त

9

2

देवव्रत

12

3

भीष्म-प्रतिज्ञा

15

4

अम्बा और भीष्म

18

5

कच और देवयानी

23

6

देवयानी का विवाह

28

7

ययाति

33

8

विदुर

35

9

कुन्ती

38

10

पाण्डु का देहावसान

40

11

भीम

42

12

कर्ण

44

13

द्रोणाचार्य

47

14

लाख का घर

51

15

पांडवों की रक्षा

54

16

बकासुर-वध

59

17

द्रौपदी स्वयंवर

66

18

इन्द्रप्रस्थ

71

19

सारंग के बच्चे

77

20

जरासंध

80

21

जरासंध वध

83

22

अग्र-पूजा

87

23

शकुनि का प्रवेश

90

24

खेलने के लिए बुलावा

93

25

बाजी

97

26

द्रौपदी की व्यथा

101

27

धृतराष्ट्र की चिन्ता

106

28

श्रीकृष्ण की प्रतिज्ञा

111

29

पाशुपत

114

30

विपदा किस पर नहीं पड़ती?

118

31

अगस्त्य मुनि

122

32

ऋष्यशृंग

126

33

यवक्रीत की तपस्या

131

34

यवक्रीत की मृत्यु

133

35

विद्या और विनय

136

36

अष्टावक्र

138

37

भीम और हनुमान

141

38

'मैं बगुला नहीं हूं'

146

39

द्वेष करनेवाले का जी कभी नहीं भरता

149

40

दुर्योधन अपमानित होता है

152

41

कृष्ण की भूख

155

42

मायावी सरोवर

159

43

यक्ष-प्रश्न

162

44

अनुचर का काम

166

45

अज्ञातवास

171

46

विराट की रक्षा

176

47

राजकुमार उत्तर

181

48

प्रतिज्ञा-पूर्ति

184

49

विराट का भ्रम

189

50

मंत्रणा

193

51

पार्थ-सारथी

199

52

मामा विपक्ष में

201

53

देवराज की भूल

203

54

नहुष

206

55

राजदूत संजय

211

56

सुई की नोंक जितनी भूमि भी नहीं

215

57

शांतिदूत श्रीकृष्ण

218

58

ममता एवं कर्त्तव्य

224

59

पांडवों ओर कौरवों के सेनापति

226

60

बलराम

229

61

रुक्मिणी

230

62

असहयोग

233

63

गीता की उत्पत्ति

236

64

आशीर्वाद-प्राप्ति

238

65

पहला दिन

241

66

दूसरा दिन

243

67

तीसरा दिन

246

68

चौथा दिन

250

69

पांचवां दिन

255

70

छठा दिन

256

71

सातवां दिन

259

72

आठवां दिन

263

73

नवां दिन

265

74

भीष्म का अंत

268

75

पितामह और कर्ण

270

76

सेनापति द्रोण

272

77

दुर्योधन का कुचक्र

274

78

बारहवां दिन

277

79

शूर भगदत्त

281

80

अभिमन्यु

285

81

अभिमन्यु का वध

290

82

पुत्र-शोक

293

83

सिंधु राज

297

84

अभिमंत्रित कवच

301

85

युधिष्ठिर की चिंता

305

86

युधिष्ठिर की कामना

309

87

कर्ण और भीम

311

88

कुंती को दिया वचन

315

89

भूरिश्रवा का वध

319

90

जयद्रथ-वध

323

91

आचार्य द्रोण का अंत

326

92

कर्ण भी मारा गया

329

93

दुर्योधन का अंत

333

94

पांडवों का शर्मिन्दा होना अश्वत्थामा

337

95

अब विलाप करने से क्या लाभ

341

96

सांत्वना कौन दे?

344

97

युधिष्ठिर की वेदना

346

98

शोक और सांत्वना

349

99

ईर्ष्या

352

100

उत्तक मुनि

354

101

सेर भर आटा

357

102

पांडवों का धृतराष्ट्र के प्रति बर्ताव

360

103

धृतराष्ट्र

366

104

तीनों वृद्धों का अवसान

369

105

श्रीकृष्ण का लीला-संवरण

370

106

धर्मपुत्र युधिष्ठिर

372

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