कुंभ में जाति-पांति, ऊंच-नीच का भेदभाव भुलाकर सभी एक ही रंग में रंगे दिखाई देते हैं, जो वास्तव में भारतीय संस्कृति का परिचायक है। भारतवासी, राजा-प्रजा, धनी-दरिद्र, भद्र-अभद्र, पंडित-मूर्ख, गृहस्थ-वनवासी आदि सभी अपने धर्म के नाम पर भेदभाव और द्वंद्व भूल जाते हैं। बिना बुलावे के करोड़ों लोग इस उत्सव में सम्मिलित होते हैं।
समग्र राष्ट्र की शिराओं में इस आयोजन की ऊर्जा स्पंदित होती है। जबरदस्त ज्वार उफनाता है कि उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम सब मिलकर एक हो जाते हैं, सब एक-दूसरे को प्रेरणा देते हैं, एक दूसरे से प्रेरणा लेते हैं। अपनी आध्यात्मिक तृषा बुझाते हैं, एक नया आत्मविश्वास, आत्मसम्मान के साथ जिंदा रहने की, शक्ति पाते है।
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