झारखंड में तीन भाषा प्रचलित है। जिनमें आर्य, प्रोटो- ऑस्ट्रोलॉयड और द्रविड़ शामिल है। उराँव समुदाय के लोग द्रविड़ भाषा परिवार से संबंध रखते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या लगभग 40 लाख है। झारखंड में करीब 18 लाख उराँव भाषी हैं। इतनी अधिक जनसंख्या होने के बावजूद उराँव समुदाय के लोगों की स्थिति अच्छी नहीं है, न भाषिक दृष्टि और न ही आर्थिक व राजनीतिक दृष्टि से। यूनिसेफ के अनुसार यह भाषा अब विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी है। इधर कुछ वर्षों से कई संस्थाओं ने कुडुख भाषा के संरक्षण, संवर्द्धन और विकास के लिए काम करना प्रारंभ किया है। इनके अथक प्रयास से इस समुदाय के लोगों में अपनी भाषा, परंपरा और संस्कृति के प्रति जागरूकता आने लगी है। लोगों में कुडुख भाषा साहित्य, संस्कृति, परंपरा के प्रति सबसे अधिक जनजागरूकता लाने में आकाशवाणी राँची का सबसे बड़ा योगदान है।
आकाशवाणी राँची की स्थापना ने कुडुख भाषा बोलने वालों में नयी ऊर्जा का संचार किया है। मानो प्राणवायु ही फूंक दिया हो। आकाशवाणी राँची की स्थापना 27 जुलाई 1957 को हुई। स्थापना समारोह में कुडुख गीत और नृत्य प्रस्तुत किये गये थे। राँची जिला के पाली पंडरा निवासी कुडुख गायक जतरू उराँव ने रॉची के तत्कालीन सिनेमा घर वेलफेयर में आयोजित उदघाटन समारोह में अपनी गीतों की प्रस्तुति दी। इसके बाद वे आकाशवाणी राँची से जुड़ गये। उसके बाद आकाशवाणी राँची से कुडुख गीतों का प्रसारण होने लगा, जो अब भी जारी है।
आकाशवाणी राँची की स्थापना के पूर्व शहरों या गाँवों से बाहर इस क्षेत्र के लोग अपनी भाषा में बात करने में शर्माते थे। एक-दूसरे से बात नहीं करते थे। तुच्छ और नीच समझते थे लेकिन ऑल इंडिया रेडियो ने छोटानागपुर में अपनी भाषा के प्रति स्वाभिमान जगाने का काम किया। निष्क्रिय होती भाषा और गीतों में जान डालने का काम किया। इसमें कुडुख गायकों की महती भूमिका है। अपनी गायिकी के माध्यम से भाषा, साहित्य और गीत के प्रति लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। पटना आकाशवाणी से भी कुडुख गीतों का प्रसारण होता था। वहीं आकाशवाणी राँची से देहाती दुनिया, हमारी दुनिया और लोक गीत कार्यक्रमों में कुडुख गीतों का प्रसारण होता था। झारखंड राज्य गठन के बाद आदिवासी अखड़ा कार्यक्रम की शुरूआत की गयी। जिसमें प्रत्येक सोमवार को शाम 7.20 बजे कुडुख भाषा में कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं। इस कार्यक्रम में कुडुख प्रसारित किये जाते हैं। आकाशवाणी रांची से कुडुख गीत गाने वाले गायकों की संख्या 30 से अधिक है। अब तक 500 से अधिक कुडुख गीतों की रिकॉर्डिंग हो चुकी है।
इस पुस्तक में आकाशवाणी राँची के कुडुख लोक गायकों को समेटने की कोशिश की गयी है। वैसे तो आकाशवाणी के गायकों ने कुडुख समुदाय पर अपनी भाषा, संस्कृति, परंपरा और गीत, वाद्य यंत्रों की ओर आकर्षित किया है, इसमें कोई संदेह नहीं। इसके पहले लोग अपनी भाषा, गीत, न त्य, वाद्य-यंत्र को लेकर संकोच की भावना रखते थे, जिसे दूर करने का काम किया। आकाशवाणी राँची में 50 से अधिक कुडुख लोक अपनी मधुर आवाज से कुडुख गीतों का प्रचार-प्रसार किया है लेकिन बहुतों के बारे में जानकारी इकट्ठा करना बाकी है।
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