पिछले कुछ सदी में लोकरूचि मीडिया और साहित्य का केन्द्र बन गए हैं। मनोरंजन के केन्द्र में नैतिकता, भावनाओं का हास हो गया है। अब केवल महत्वपूर्ण हो गया है TRP और लोकप्रियता। लोकप्रियता के इस दौर और होड़ में आज एक विशेष किस्म के फॉर्मूलाबद्ध फिलमांकन हो रहा है जिसका आधार वही कथानक है जो किसी दौर में फूटपाथी या घासलेटी साहित्य का रहा था। धीरे-धीरे उस पूरे फॉमूले को टी. वी. पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों ने लील लिया। तो प्रकाशकों की एक पूरी जमात जो इस प्रकार के साहित्य को प्रकाशित कर रहा था वही या तो फूटपाथ पर आ गए या वही उस वर्ग में शामिल हो गए जो Classsic Litrature को प्रकाशित करने के बाद मशहूर थे।
पिछले कुछ दिनों में यह अवधारणा बदली खुशवंत और कई ऐसे लेखकों जिसमें चेतन भगत भी शुमार है कि Best selling उपन्यासों ने उस पूरी परम्परा को बदला तो अंग्रेजों की अक्ल तो खुल गयी है और उन्होंने अंग्रेजी में Popular Literature के तौर पर इनको परोसा पर हिन्दी में इस प्रकार के साहित्य और साहित्यकार अभी तक मुँह जोह रहे हैं।
जब प्रेमचन्द जी उन तिलिस्म को तोड़ दिया और जादुई किले को ढहा दिया तो इस प्रकार के संहिता वाले उपन्यास को घासलेटी साहित्य और फूटपाथी साहित्य की श्रेणी में रख दिया गया।
इससे इस प्रकार के साहित्य का पाठक वर्ग सीमित हो गया और तथाकथित शास्त्रीय साहित्य के पाठक ने इस प्रकार के साहित्य को हेय दृष्टि से देखना ही नहीं शुरू किया बल्कि उस पूरे पाठक वर्ग को ही हेय बना दिया। इसने Classical और लोकप्रिय साहित्य को बीच विभेदक रेखा खींच दी। बाद में सिनेमा ने इसको जड़ से खत्म कर दिया। और सीरियल ने तो पूरी तरह इसको समाप्त कर दिया है। दिल्ली विश्वविद्यालय में इस तरह के पाठ्यक्रम को लगाये जाने से कम कम खुद उच्च स्तरीय जीवन शैली वाले लोग उस जनाभिरूचि से परिचित हो सकेंगे तथा उस पूरी मानसिकता को भी समझ सकेंगे। जो उस पाठक वर्ग की है जिन्हें छिछला पाठक मानकर छोड़ दिया जाता है।
इस पाठ्य पुस्तक को तैयार करने में जिन लेखकों और कवियों के लेखन का अंश मात्र भी लिया गया है उनके प्रति हम अपना साभार प्रकट करते हैं। इस पुस्तक के माध्यम से हमारा उद्देश्य केवल विद्यार्थियों के लिए पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराना भर है। सुझाव और सलाह के लिए सदैव आमंत्रित ।
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