पुस्तक के विषय में
1975-77 का आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय था । जे.पी. आदोलन इसका मुख्य कारण था । इस आदोलन के नेता जयप्रकाश नारायण थे । इसीलिए इसका नाम जे.पी. आदोलन पड़ा । इस आदोलन ने अधिकांश उत्तरी भारत को पंगु बना दिया और केंद्र में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सीधी चुनौती दी । पूर्ववर्ती अध्ययनों के विपरीत वह पुस्तक सिलसिलेवार ढंग से इन घटनाओं पर दृष्टि डालती है और टस चुनौती के चरित्र और प्रकृति को समझने का प्रयास करती है जो हमारे लोकतंत्र के लिए खतरा बन गई थी । उस युग की घटनाओं पर नजर डालते हुए बिपन चंद्र यह महसूस करते हैं कि श्रीमती गाधी को त्यागपत्र देने को बाध्य करने के बजाय जे.पी. कानून को अपना रास्ता अख्तियार करने की प्रतीक्षा कर सकते थे अथवा शीघ्र चुनाव कराने को कह सकते थे । इंदिरा गांधी राजनीतिक अस्थिरता के आधार पर समय से पूर्व चुनाव करा सकती थीं और आंतरिक आपातकाल थोपने के बजाय लोकप्रिय जनादेश प्राप्त करने का प्रयास कर सकती थीं । ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों पक्ष तात्कालिक परिस्थितियों की गिरफ्त में आ गए थे । इन परिस्थितियों में भारत को सर्वसत्तावादी तानाशाही की ओर ले जाने की संभावना मौजूद थी, हालांकि ऐसा नहीं हुआ । फिर भी आपातकाल में अंतर्निहित सत्तावाद के बावजूद, विशेषकर संजय गांधी और उनकी युवा कांग्रेस वाहिनी के सत्ता में उदय के साथ ही, इंदिरा गांधी ने आपातकाल समाप्त कर दिया और चुनावों की घोषणा कर दी । इसी प्रकार, जे.पी. आदोलन की भी हवा निकल गई, हालांकि संपूर्ण क्रांति की अस्पष्ट विचारधारा, नेतृत्व और संगठन के लिए आर.एस.एस. पर निर्भरता के कारण उसके फासीवाद होने का खतरा भी सही था ।
अकाट्य और मौलिक तर्को पर आधारित इस पुस्तक का उन अंशात वर्षो को समझने में एक मूल्यवान योगदान है । इसके अतिरिक्त, लोकतंत्र में जन-विरोध की सीमाओं का मामला उठाकर यह समकालीन प्रासंगिकता की गहन अंतर्दृष्टि भी प्रस्तुत करती है । बिपन चंद्र का जन्म कांगड़ा (हिमालच प्रदेश) में हुआ । उनकी शिक्षा-दीक्षा फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज (लाहौर) और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय (कैलीफोर्निया) में हुई । वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आधुनिक भारतीय इतिहास के प्रोफेसर रहे हैं । वर्तमान में आप नेशनल बुक ट्रस्ट के चेयरमैन हैं । आपके अन्य प्रकाशनों में उल्लेखनीय हैं- आघुनिक भारत समकालीन भारत आघुनिक भारत में उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद? आधुनिक भारत में विचारधारा और राजनीति भारत में आर्थिक राष्ट्रवाद का उद्भव और विकास और सांप्रदायिकता एक अध्ययन ।
अनुक्रम
आभार
7
शब्दावली
9
1
भूमिका
11
2
मोहभंग के वर्ष
22
3
जन आदोलन और राजनीतिक तंत्र का संकट
44
4
आपातकाल का आरोपण
77
5
प्रजातांत्रिक विकल्प
101
6
जे.पी. एक नेता और चिंतक के रूप में
आपातकाल-आरंभिक वर्ष
185
8
आपातकाल के बाद का चरण
227
आपातकाल की समाप्ति
289
10
निष्कर्ष
307
परिशिष्ट रोम की और कूच
346
सदंर्भ ग्रथ-सूची
355
अनुक्रमणिका
363
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