भाषा मनुष्य की परम उपलब्धि है, क्योंकि भावाभिव्यक्ति का प्रमुख आधार है। भाव आदान-प्रदान से ही समाज का स्वरूप सामने आया है। भाषा और समाज अन्योन्याश्रित हैं। भाषा का उद्भव और विकास समाज में ही हुआ है। मनुष्य की उन्नति और प्रगति का सर्वोत्तम माध्यम भाषा है। सामाजिक स्तर के आधार पर भाषा का स्वरूप विकसित होना स्वाभाविक है। भाषा के व्यवस्थित और मानक आधार पर मनुष्य को विकास पथ मिल जाता है। इस प्रकार मनुष्य को भाषा के स्वरूप, उपयोग और महत्त्व को गंभीरता से हृदयंगम करना चाहिए।
साहित्य ही नहीं ज्ञान विज्ञान से संबंधित समस्त चिंतन, मनन, लेखन और शोध भाषा के ही आधार पर संभव है। आदि काल से लेकर वर्तमान वैज्ञानिक तथा तकनीकी युग में भी व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गति-प्रगति की आधार भूमि भाषा ही है। इस प्रकार भाषा अध्ययन का महत्त्व स्वतः सिद्ध है।
भाषा-चिंतन, मनन और अध्ययन के लिए क्रमबद्ध, व्यवस्थित और प्रयोगात्मक पद्धति अपनाना अनिवार्य होता है। इसीलिए भाषा-अध्ययन को भाषाविज्ञान की संज्ञा दी जाती है। जीवन में भाषा के गुरुतर महत्त्व को दृष्टिगत कर अध्ययन के लिए एकाग्र मन और गंभीर मानसिकता की आवश्यकता होती है। सामान्यतः लोगों की धारणा बन गई है कि भाषा अध्ययन अन्य विषयों के अध्ययन से कहीं अधिक जटिल है। वास्तव में यह मातृभाषा के सैद्धांतिक पद्धति के विशेष अध्ययन से जुड़ा विचार है। आवश्यकता है भाषा को जीवन से जोड़कर व्यावहारिक अध्ययन और शोध करने की। इससे अपनेपन की अनुभूति होगी और रसात्मक बोध भी होगा।
भाषा भावाभिव्यक्ति का प्रमुख आधार है और भाषा मनुष्य की प्रमुख उपलब्धि है। यह ही मनुष्य की प्रगति का सर्वोत्तम साधन है। भाषा और समाज अन्योन्याश्रित हैं। भाषा का उद्भव और विकास समाज में हुआ है, तो समाज का स्वरूप भाषा के आधार पर विकसित हुआ है। साहित्य ही नहीं ज्ञान-विज्ञान से संबंधित समस्त चिंतन, मनन और लेखन भाषा के ही आधार पर संभव है। आदि काल से लेकर वर्तमान वैज्ञानिक और तकनीकी युग में भी व्यक्तिगत सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गति-प्रगति की आधारभूमि भाषा ही है। इसलिए भाषा अध्ययन का महत्त्व स्वतः सिद्ध है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा भाषाविज्ञान के महत्त्व को दृष्टिगत कर देश के सभी विश्वविद्यालयों की स्नातकोत्तर हिंदी कक्षाओं में अध्ययन-अध्यापन के लिए राष्ट्रीय स्तर का पाठ्यक्रम निर्धारित किया गया है। इसमें भाषा-अध्ययन की प्राचीन और नवीन पद्धतियों का सुंदर समन्वय करते हुए कंप्यूटर अध्ययन को भी सम्मिलित कर उपयोगी दिशा प्रदान की गई है।
'भाषाविज्ञान और हिंदी भाषा' की रचना विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा निर्धारित भाषाविज्ञान के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम को समग्रता से प्रस्तुत करने की दृष्टि से की गई है। जटिल विषय कहे जाने वाले भाषाविज्ञान के सभी संदर्भों को सरल तथा बोधगम्य भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। भाषा के विभिन्न पक्षों को सरल तथा बोधगम्य बनाने के लिए यथासंभव रेखाचित्रों का उपयोग किया गया है। भाषा के सिद्धांतों की चर्चा को आद्योपांत व्यावहारिक बनाने का भी प्रयास किया गया है। मैंने पुस्तक में केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा निर्धारित हिंदी के मानक रूप को अपनाने का प्रयास किया है। हिंदी भाषा अध्ययन करने वालों को इसी मानक रूप को अपनाना चाहिए।
मेरा विश्वास है कि पुस्तक विद्यार्थियों, हिंदी भाषा अध्ययनकर्ताओं और अनुसंधित्सुओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
पुस्तक प्रकाशन में प्रेरक तत्परता के लिए स्नेही प्रवीण कुमार, संजय प्रकाशन को हार्दिक बधाई।
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