पुस्तक के विषय में
डॉ. वृन्दावनलाल वर्मा (1889-1968) हिंदी के एक सफल और ख्यातिप्राप्त उपन्यासकार है। आपने अपने ऐतिहासिक उपन्यासों और छोटी कहानियों के द्वारा हिंदी साहित्य का संवर्धन किया है। आपकी रचनाओं के पात्र सजीव हैं और उनके आचार-विचार व अंतवृतित्यों में आज हमारे ग्रामीण समाज के बदलते हुए रूप का आभास मिलता है। वर्माजी को उनकी साहित्य सेवाओं के लिए पद्मभूषण एवं सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित् किया जा चुका है।
इस पुस्तक में हम उनके कृतित्व के जरिये 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की उज्ज्वल मणि लक्ष्मीबाई को प्रत्यक्ष कर सकते हैं। यह लक्ष्मीबाई का वह भव्य चित्र है जिसने स्वतंत्रता संग्राम के सैनिकों को दशकों तक अनुप्रेरित किया है।
डॉ. वर्मा की रचनाओं का अनुवाद रूसी, मराठी, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, ओड़िसा, सिंधी, पंजाबी, डोगरी और उर्दू भाषाओं में भी हो चुका है।
भूमिका
''रानी लक्ष्मीबाई’' एक ऐतिहासिक उपन्यास है । ऐतिहासिक उपन्यास की रचना इतिहास के आ धार पर की जाती है । किसी देश या प्रदेश के इतिहास के किसी एक काल की घटना और पात्रों को लेकर उपन्यास का रूप दिया जाता है । उपन्यास की रचना में ऐतिहासिक घटनाओं और चरित्रों के साथ काल्पनिक घटनाओं और पात्रों को भी स्थान दिया जाता है । इतिहास में किसी देश, जाति अथवा व्यक्ति आदि की गतिविधियों का कालक्रमानुसार वर्णन किया जाता है परंतु उपन्यासकार प्राप्त तथ्यों से अपनी रुचि और दृष्टिकोण के अनुरूप निष्कर्ष निकालते है । यही कारण है कि .ऐतिहासिक उपन्यास की रचना में लेखक का अपना दृष्टिकोण अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है ।
''रानी लक्ष्मीबाई" उपन्यास में वृन्दावनलाल वर्मा ने प्रथम स्वाधीनता संग्राम के सत्य को उद्घाटित किया है जिसे कई अंग्रेज और अंग्रेज भक्त इतिहासकारों ने झुठला दिया था । उसी सत्य को रोचक, आकर्षक और मनोरंजक बनाने के लिए कल्पना और कला की सहायता भी ली है । लेकिन कल्पना और कला का प्रयोग इतिहास की पूर्ण सुरक्षा में हुआ है । वर्माजी की उपन्यास कला केवल कथा का अनुसरण ही नहीं है । जागरूक विचारक होने के कारण इतिहास की प्रस्तुति में उनका दृष्टिकोण विशिष्ट बना रहा है । दृष्टिकोण का यही अनूठापन उनकी कला की विशेषता है । टूटी हुई इतिहास की कडियों को वर्माजी कल्पना के कलात्मक प्रयोग से ऐसा जोडते हैं कि न तो जोड़ का निशान दिखाई देता है और न ही इतिहास पर आंच आती है ।
वृन्दावनलाल वर्मा की कर्मस्थली बुंदेलखंड रही है और यहीं का इतिहास एवं संस्कृति उनके उपन्यासों का आधार बनी है । यही कारण है कि इनके ऐतिहासिक उपन्यासों में वातावरण की सृष्टि अत्यन्त संतुलित, स्वाभाविक और प्रभावी बन पड़ी है । ''रानी लक्ष्मीबाई'' उपन्यास में बुंदेलखंड का जन-जीवन और. प्राकृतिक सुषमा अपने पूर्ण और स्वाभाविक रूप में मुखर हुई है । वातावरण अंकन वर्माजी की प्रमुख विशेषता है अत: ''रानी लक्ष्मीबाई'' उपन्यास में वातावरण-अंकन के अंशों को ध्यान से पढ़ने की अपेक्षा की जाती है ।
'रानी लक्ष्मीबाई' उपन्यास की मूल कथा को इतिहास के गौरवशाली पृष्ठो से लिया गया है परंतु कल्पना के रंग ने उसे अत्यंत सजीव, सरस और आकर्षक बना दिया है । कल्पना तत्व ने तत्कालीन वातावरण को पाठक के समक्ष जीवत रूप में चित्रित कर दिया है । ऐतिहासिक पात्रों के साथ ही साथ अपने कल्पित पात्रों के माध्यम से वर्माजी ने राजनीतिक हलचल के साथ तात्कालिक सामाजिक-जीवन के ऐसे सशक्त और प्रभावी चित्र अंकित किए हैं कि जहां एक ओर सामाजिक स्थिति सच्चाई से उभरती है वहीं जनमानस की अपराजेय जीवन-शक्ति रेखांकित हो जाती है । राजनैतिक समस्या के साथ उपन्यास में उन सामाजिक समस्याओं का भी समावेश हुआ है जो आज भी उचित समाधान की प्रतीक्षा में हैं । उपन्यास की इस विशेषता के आधार पर ही कहा जाता है कि वर्माजी ने अपने ऐतिहासिक उपन्यासों में वर्तमान सामाजिक समस्याओं को भी अत्यंत कुशलता से अंकित किया है । निश्चय ही वर्मा जी यथार्थ और कल्पना का सुंदर समन्वय करने में सिद्धहस्त है । इस विशेषता में ही उनकी उपन्यास-कला संपूर्णता को प्राप्त करती है । उपन्यासों में पृष्ठभूमि का अंकन कथावस्तु का गठन् पात्र-चयन एवं चरित्रचित्रण; सजीव वामावरण की सृष्टि; प्रासांगिक एवं पात्रानुकूल सुगठित संवाद योजना 'सरल, सरस और पात्रानुकूल भाषा-शैली के साथ-साथ ही आंचलिक प्रभाव एवं स्वाभाविक प्रकृति-चित्रण ने वृन्दावनलाल वर्मा को निश्चय ही कोटि का कथा-शिल्पी बना दिया है । ''रानी लक्ष्मीबाई'' उपन्यास इस तथ्य का परिचायक है ।
विषय-सूची
1
सात
2
वृन्दावनलाल वर्मा संक्षिप्त परिचय
नौ
3
उपन्यास के प्रमुख तत्वो के आधार पर
''रानी लक्ष्मीबाई'' पर एक दृष्टि
बारह
4
रानी लक्ष्मीबाई (उपन्यास)
5
प्रश्न-अभ्यास
83
6
शब्दार्थ-टिप्पणी
87
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