"कृष्ण की वृष्टि में धर्म क्या है, वह मैं कहूं। कृष्ण की दृष्टि में, जीवन को जो विकसित करे, जीवन को जो खिलाए, जीवन को जो नचाए, जीवन को जो आनंदित करे, वह धर्म है। जीवन के आनंद में जो बाधा बने, जीवन की प्रफुल्लता में जो रुकावट डाले, जीवन को जो तोड़े, मरोड़े, जीवन को जो खिलने न दे, फूलने न वे, फलने न दे, वह अधर्म है। जीवन में जो बाध् ॥एं बन जाएं, वे अधर्म हैं; और जीवन में जो सीढ़ियां बन जाए, वह धर्म है।"
हम सब चुन सकते हैं, सिर्फ एक स्वतंत्रता को नहीं चुन सकते, वह हमें मिली ही हुई है। कोई आदमी यह नहीं कह सकता कि मैं परतंत्रता चुन सकता हूं, क्योंकि वह चुनना भी उसकी स्वतंत्रता ही है। इसलिए सार्ज कहता है कंडेम्ड टु बी फ्री। कभी भी स्वतंत्रता के साथ किसी ने कंडेम्ड शब्द का प्रयोग नहीं किया होगा। मनुष्य स्वतंत्र है। और परमात्मा के होने की यह घोषणा है। और मनुष्य जो चुनना चाहे, चुन सकता है। यदि मनुष्य ने दुख चुना, तो चुन सकता है। जिंदगी उसके लिए दुख बन जाएगी। हम जो चुनते हैं, जिंदगी वही हो जाती है। हम जो देखने जाते हैं, वह दिखाई पड़ जाता है। हम जो खोजने जाते हैं, वह मिल जाता है। हम जो मांगते हैं, वह फुलफिल हो जाता है, उसकी पूर्ति हो जाती है।
जीवन वैसा ही हो जाता है, जैसे हम हैं। जन्म वैसा ही हो जाता है, जैसे हम हैं। मृत्यु वैसी ही हो जाती है, जैसे हम हैं। यदि हम मुक्त हैं, तो जन्म मुक्ति है, जीवन मुक्ति है, मृत्यु मुक्ति है। यदि हम बंधे हैं पाश में, पशु हैं, तो जन्म बंधन है, जीवन बंधन है, प्रेम बंधन है, मृत्यु बंधन है, सब बंधन है। परमात्मा भी तब एक बंधन की तरह ही दिखाई पड़ता है।
जो व्यक्ति क्षण में जीता, वर्तमान में जीता, फलाकांक्षा से मुक्त जीता, अनासक्त जीता, जो व्यक्ति जीवन को अभिनय की तरह जीता, जो करता हुआ न करता है, जो न करता हुआ करता है, ऐसा व्यक्ति जिंदगी में जो भी है उस सबको मुक्ति बना लेता है। उसके लिए बंधन भी मुक्ति हो जाते हैं, हमारे लिए मुक्ति भी बंधन है। यह हमारे होने के ढंग पर निर्भर करता है ।
ऐसे ही महामना भगवान श्रीकृष्ण के बहुआयामी व्यक्तित्व पर प्रश्नोत्तर सहित मुंबई एवं मनाली में ओशो द्वारा दी गई वार्ताओं एवं नव-संन्यास पर दिए गए एक विशेष प्रवचन का अप्रतिम संकलन है यह पुस्तक। यही वह प्रवचनमाला है जिसके दौरान ओशो द्वारा नव-संन्यास दीक्षा का सूत्रपात हुआ। ओशो के अनुसार कृष्ण का महत्व अतीत के लिए कम और भविष्य के लिए अधिक समकालिन है। सभी महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने समय से पहले पैदा होते है और गैर-महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने समय के बाद तथा सभी साधारण व्यक्ति अपने समय के साथ पैदा होते है।अगर यह कहा जाय कि कृष्ण के जन्म हुए हजारों साल बीत चुके हैं लेकिन उनकी देशना का उचित समय अभी भी नहीं आया है तो कोई अतिशयोक्ति होगी। अभी भी मनुष्यता उतनी परिपक्व नहीं हुई की श्रीकृष्ण जैसी चेतना को समझ सके।'कृष्ण का व्यक्तित्व बहुत अनूठा है।अनूठेपन की पहली बात तो यह है कि कृष्ण हुए तो अतीत में हैं, लेकिन हैं भविष्य के। मनुष्य अभी भी इस योग्य नहीं हो पाया कि कृष्ण का समसामयिक बन सके। भविष्य में ही यह संभव हो पाएगा कि कृष्ण को हम समझ पाएं।यह पुस्तक सबके लिए पठनीय और मननीय है, विशेष कर साधकों के लिए यह एक आत्मसात करने वाली पस्तक है।
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