पुस्तक के विषय में
भारतीय त्रिस्कन्धात्मक ज्यौतिषशास्त्र के पौरुष ग्रन्यों के आचार्यो में प्रथम आचार्य 'वराहमिहिर' विरचित 'बृहत्संहिता', जो आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व रचा गया था, अपने नव कलेवर के साथ आपकी सेवा में प्रस्तुत है यह ग्रन्थ अपने आदिकाल से ही ज्यौतिषशास्त्र के अनुरागिजनों का सदा प्रेम-प्यार प्राप्त करता रहा है । इस ग्रन्थ की यह विशेषता ही है । इसके सम्पूर्ण स्वरूप दर्शन से यह भी समझ आता है कि इस एक ही ग्रन्थ में ज्यौतिषशास्त्र के तीनों स्कन्धों अर्थात् सिद्धान्त, सहिता और होरा का समावेश-सा कर दिया गया है ऐसे इसमें तात्कालिक ग्रहचारवंश सुभिक्ष, दुर्भिक्ष आदि के कारणों का सम्यक् प्रतिपादन तो हुआ ही है, सार्वभौम शुभाशुभ फलों को प्रस्तुत करने में पूर्णतया सक्षम ग्रन्थ भी है, साथ-ही स्वर, मुहूर्त, शकुन, पुरुष, सी, गज, तुरग, रत्न, प्रतिमा, वास्तु, प्रासाद के लक्षणों आदि अनेक विषयों का प्रतिपादक ग्रन्थ भी है। कालभेदत्रयीगत तथा इह लौकिक और पारलौकिक समस्त समस्याओं से निजात दिलाने वाला और मुक्तिमार्ग प्रदर्शक ग्रन्थ है। अत. इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह ग्रन्थ अपने अनुरागिजनों के लिए आगे भी उतना ही उपादेयी रहेगा, जितना यह अपने आदि काल से अब तक रहा है।
यह ग्रन्थ प्राचीनतम भारतीय ज्यौतिष से सम्बन्धित विषयों पर समसामयिक अपेक्षाओं के अनुकूल तो यह ग्रन्थ है ही, सभी वर्ग या सभी स्तर के जन के दैनन्दिनी में अभिन्न सहायक के रूप में भी अधिकतर उपादेयी सिद्ध हो, इसका ध्यान अनिवार्य रूप में रखा गया है। यह ग्रन्थ ज्यौतिषशास्त्र की आलोचनाओं को अपना धर्म मानने वाले महानुभावों के ज्ञान चक्षु को भी समुद्वेलित सतेज कर सके इसका भरसक प्रयत्न किया गया है इस ग्रन्थ से पाठक निश्चय ही अपने प्राचीनतम ज्योतिर्विज्ञान और उसके प्रमुख लोक जीवन गत विशिष्ट व आवश्यक विषयों से आद्यन्त परिचित होने में सफल तो होंगे ही, उनकी भारतीय होने की गर्वोक्ति पूर्ण भावना और भी समुष्ट होती हुई काल भेदत्रयी (भूत-वर्तमान-भविष्यत्) के अनुभूत व अकाटय सिद्धान्तों को भी वे अधिगत कर लाभान्वित हो सकेंगे इस तरह सर्वतोभावेन आपकी सेवा में यह ग्रन्थरत्न वृहत्संहिता आपको उपलब्ध हो रहा है।
पुरोवाक्
जन्म के पूर्व ही संस्कारों के द्वारा मनुष्य के जन्म, उसकी, प्रकृति, लिग्ङ आदि की जिज्ञासा बालक के माता-पिता, स्वजन, स्नेही आदि को सताती रहती है। मनुष्य अपने तथा सम्बन्धियों के भविष्य ज्ञान हेतु उतावला रहता है। उसके भविष्य शान हेतु 'ज्योतिष वेदांग' तथा सामुद्रि शाल ये दो साधन उसके पास है। अगर जन्म समय का सही ज्ञान न हो तो अनुमान के आधार पर भूत-भविष्य तथा वर्तमान का कथन असत्य हो सकता है। एक ही समय उत्पन्न दो जुड़वा भाई-बहनो स्वरूप, लिग्ङ भाग्य, आकृति, व्यवहारादि में अन्तर प्राप्त होता है यद्यपि उनकी जन्म कुण्डली एक ही जैसी बनती है। फिर हमारे मन मे इस विद्या की वैज्ञानिकता पर फलित ज्योतिष प्रामाणिकता पर संदेह करने को बाध्य होना पडता है। लेकिन हस्तलक्षण में देखा जाय तो जुड़वा बच्चों के भी हाथ की रेखाएँ भिन्न होती हैं। हस्त-रेखा ईश्वर की संकेतलिपि में भाग्य (जीवन) का दर्पण है। अब उस दर्पण में आप अपनी या दूसरे की तस्वीर कितनी साफ देख सकते है यह देखने वाले की योग्यता, विद्वता, उसकी साधना तथा यथार्थपरक विश्लेषण पर निर्भर है। अत: मैने मानव जीवन के मूल 'स्वास्थ्य' को ध्यान मे रखकर 'हस्तरेखा द्वारा रोगज्ञान एव निदान' नामक पुस्तक में अपने अध्ययन-मनन-विश्लेषण तथा अनेक वर्षो के प्रामाणिक अनुभवो के आधार पर रोगो के लक्षण तथा उनके ज्योतिषीय समाधान को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। अध्येता अगर इमानदारी से इस पुस्तक का अध्ययन करता है तो वह नीम-हकीमों के चक्कर से छुटकारा प्राप्त कर सकता है तथा अपने चिकित्सक द्वारा किये जा रहे सही गलत इलाज को भी समझ सकता है, क्योकि हस्तरेखा भाग्य सम्बन्धी अन्य विषयों पर कितनी मुखर है यह मैं दावे के साथ नही कह सकता लेकिन हस्तरेखा द्वारा रोग निर्णय शत प्रतिशत सत्य होता है ऐसा मेरा मानना है। अनेक चिकित्सको के हस्तपरीक्षा द्वारा उनके शरीर स्थित अनेक रोगो को मैं स्वय काशी हिन्दूविश्वविद्यालय में अपने अनुसन्धान के क्रम मे बता चुका हूँ। चिकित्सक भी रेखा द्वारा रोग ज्ञान से हतप्रभ रह जाते हैं। मैं उनसे हस्तरेखा शाख के अध्ययन का निवेदन भी कर देता हूँ जिससे रोग का मूल कारण ज्ञात करके वे रोगी के लक्षण तथा हस्त लक्षण मिलाकर रोगी की सही चिकित्सा कर यश के भागी बने तथा रोगी अतिशीघ्र निरोग हो जाय।
प्रस्तुत पुस्तक का प्रतिपाद्य यह है कि हस्तरेखा का अल्पज्ञ व्यक्ति भी इस पुस्तक के द्वारा अपने हाथ की रेखाओ, पर्वतो, पोरो, नखों, अंगुलियों पर उत्पन्न नए चिन्हों, रेखाओ, धब्बों तिलों तथा प्रतीक चिन्हों के विषय मे सचित्र ज्ञान प्राप्त कर स्वय को तो स्वस्थ रखे साथ ही अपने कुटुम्बियों, मित्रो तथा परिजनो का भी वर्तमान में स्थित तथा भविष्य में उत्पत्र होने वाले रोग सम्बन्धी खतरों से सावधान करके तथा उनकी चिकित्सा के रूप में प्राकृतिक तथा अध्यात्मिक विधि का प्रयोग बता कर स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण करने में सहयोग प्रदान कर सकता है।
विषयानुक्रमणिका
1
रेखा परिचय
2
हस्तरेखा और चिह्नों का परिचय
3
हस्तरेखा और अरिष्ट विचार
4
अवस्थानुसार बीमारी के लक्षण
5
रोग की पहचान
6
हथेली (हस्त रेखा पर स्थित) में स्थित अंग स्थिति और रोग एव निदान
7
हाथ की बनावट और रोग
8
बीमारी पर्वतों से
9
अंगुली की छाप और रोग
20
10
अंगुलियों का स्त्राव और रोग
22
11
अंगुलियों पर स्थित चिह्न और रोग
23
12
अंगुलियों के पोरों पर पाये जाने वाले चिह्न रिजपैटर्न और रोग
24
13
नख पर उत्पन्न धब्बों से रोग ज्ञान
28
14
नखों का वर्णमूलक वर्गीकरण
31
15
जीवन रेखा और रोग विचार
33
16
शरीर की ऊँचाई द्वारा आयु प्रमाण
35
17
अंगुली की माप द्वारा आयु प्रमाण
18
जीवन रेखा और कष्ट
19
आयु रेखा और रोग (क)
36
आयु रेखा और रोग (ख)
21
जीवन रेखा और रोग (ग)
37
रोग और आयुज्ञान
38
मस्तिष्क रेखा और रोग
41
मातृ रेखा (ख)
42
25
मस्तिष्क रेखा (ग)
43
26
मस्तिष्क रेखा और रोग (घ)
44
27
मस्तिष्क रेखा और रोग (च)
45
हृदय रेखा और रोग-1
46
29
हृदय रेखा और रोग-2
47
30
हृदय रेखा-3
48
हृदय रेखा और रोग-4
49
32
स्वास्थ्य रेखा और रोग विचार
50
स्वास्थ्य रेखा
51
34
स्वास्थ्य रेखा और रोग
52
भाग्य रेखा और रोग
53
भाग्य रेखा और रोग-2
55
भाग्य रेखा चित्र-3
सूर्य रेखा और रोग
56
39
विवाह रेखा और रोग
57
40
राहु रेखा और योग
58
मगल रेखा और रोग
59
त्वचा रेखा और रोग (क)
60
विलासकीय रेखाएँ मुद्रिकाएँ और रोग
62
स्टार (नक्षत्र) और रोग
64
हस्तरेखा में जाली से रोग ज्ञान या जाली और रोग
65
तिल और रोग
67
हथेली पर तिल और रोग (क)
68
हाथ पर तिल और रोग (ख)
तिल और रोग (ग)
69
प्रमुख रोग तथा उनके लक्षण (चिन्ह)
अग्निमांद्य
71
अर्बुद नाड़ी में (नाड़ी में सूजन या रसौली)
अम्लता
72
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