बृहत्त्रयी में महाकवि माघ प्रणीत शिशुपालवध महाकाव्य मध्यमणि के रूप में विद्यमान है। यह माघ की एकमात्र कृति है, पाण्डित्य के क्षेत्र में माघ का अपना विशिष्ट स्थान है। इसी के प्ररिप्रेक्ष्य में किसी विद्वान् समीक्षक ने कहा है- नवसर्गगते माघे नवशब्दो न विद्यते। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रदत्त SAP की बृहत्त्रयी बृहत्कोषपरियोजना के अन्तर्गत राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में विशिष्ट विद्वानों एवं शोधच्छात्रों के द्वारा हिन्दी भाषा में पठित 42 उत्कृष्ट शोधनिबन्धों का संग्रहित ग्रन्थ है, जिसमें प्रो. जयप्रकाश नारायण, प्रो. अनुला मौर्य, डॉ. उमाकान्त राय, डॉ. सौम्या कृष्ण, श्री अखिलेश कुमार आदि विद्वानों के लेख प्रकाशित किये जा रहे हैं। इसका प्रथम भाग संस्कृत भाषा के निबन्धों का संग्रह रूप शिशुपालवध- महाकाव्यानुशीलनम् प्रकाशित हो चुका है।
पितृनाम : श्री बन्धु भोई
मातृनाम : श्रीमती पुष्पलता देवी
जन्म तिथि : 18.09.1967
जन्म स्थान : कलन्तिरा, कटक, ओडिशा
कार्य स्थल : आसाम केन्द्रीय विश्वविद्यालय, सिलचर में सहायकाचार्य, वर्ष 1996- 1998 तक। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के संस्कृत विभाग में सहाचार्य, 1998-2007 तक। वर्ष 2007 से श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के साहित्य विभाग में आचार्य, विभागाध्यक्ष एवं संकाय प्रमुख तथा श्री विनोद बिहारी मेहता कोयलाञ्चल विश्वविद्यालय, धनवाद, झारखण्ड में कुलपति पद को सुशोभित किया। सम्प्रति श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के साहित्य विभाग में वरिष्ठाचार्य के रूप में सेवारत हैं। संस्कृत साहित्य की सेवा को देखते हुए भारत सरकार द्वारा वादरायणव्यास पुरस्कार से सम्मानित किया है।
संस्कृत साहित्य में पञ्चमहाकाव्य के अन्तर्गत बृहत्त्रयी पद से महाकवि भारवि, माघ, श्रीहर्ष के द्वारा विरचित यथाक्रम किरातार्जुनीयम्, शिशुपालवधम् एवं नैषधीयचरितम् ये तीन महाकाव्य प्रतिष्ठित हैं। बृहत्त्रयी में महाकवि माघ प्रणीत शिशुपालवध मध्यमणि के रूप में विद्यमान है। माघ की एकमात्र कृति है यह महाकाव्य, इसीलिए माघ अथवा माघकाव्य इसके पर्याय रूप में प्रचलित हैं। पाण्डित्य के क्षेत्र में माघ का अपना विशिष्ट स्थान है। इसी के प्ररिप्रेक्ष्य में किसी विद्वान् समीक्षक ने कहा है- नवसर्गगते माघे नवशब्दो न विद्यते। यह महाकाव्य न केवल रसिकों के हृदय को आह्लादित करने वाला है, अपितु लोकमर्मज्ञों के विचारों के हृदय को भी समृद्ध करने वाला तथा उनका पथ-प्रदर्शन करने वाला है। काव्येषु माघः, मेघे माघे गतं वयः प्रभृति सहृदयोक्तियाँ इस काव्य की श्रेष्ठता का उद्घोष कर रही हैं।
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के साहित्य विभाग द्वारा 'शिशुपालधव महाकाव्य' पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रतिभाग के रूप में देश के भिन्न-भिन्न संस्थाओं और विश्वविद्यालयों से आये विशेषज्ञ विद्वानों एवं शोधच्छात्रों के द्वारा प्रस्तुत उत्कृष्ट शोधपत्रों का संकलन शिशुपालवध : एक परिशीलन नामक ग्रन्थ के रूप में विश्वविद्यालय के शोध-प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है, जिसमें कुल 42 विद्वानों के शोध निबन्ध समाविष्ट हैं। विश्वविद्यालय के यशस्वी कुलपति प्रो. मुरलीमनोहर पाठक जी का हृदय से धन्यवाद करता हूँ, जिनके कुशल नेतृत्व में विश्वविद्यालय प्रगति पथ पर अग्रसर है।
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