लेखक के बारे में
नाम : सुरेश शर्मा
शिक्षा : बी.एस.सी. एल.एल.बी.,
कुंडली में कुल बारह भाव होते हैं। सूर्य, चन्द्रमा आदि नौ ग्रहों को ले तो हर हाल में, हर कुण्डली में कुछ भाव हमेशा ही खाली होने हैं। जिनमें कोई भी ग्रह स्थित नहीं होता। कुंडली पर आधारित फलित ज्योतिष की लगभग हर पुस्तक में इस बात पर ही ज्यादा जोर दिया जाता है कि कुंडली के अमुल भाव में अमुक ग्रह या ग्रहों के होने से क्या-क्या प्रभाव व फलित होंगे। कुंडली के खाली भावों का स्वयं खाली भावों से और कुंडली में स्थित ग्रहों के प्रभाव व फलित से भी बहुत गहरा संबंध है।
कुंडली के खाली भावों के संबंध में प्रमुख रूप से लिखी यह पुस्तक संभंवत: विश्व-ज्योतिष साहित्य में पहली पुस्तक है, जिसमें कुंडली (जन्म कुंडली व वर्षफल कुंडली) के खाली भावों का पर तथा खाली भावों का कुंडली में स्थित ग्रहों पर क्या प्रभाव व फलित होता है, इनका उपायों सहित वर्णन किया गया है।
अपनी बात
लाल-किताब पुस्तक के बारे में कहा जाता है कि इसमें समाहित विषयों से संबंधित सामग्री एक स्थान पर न हो कर अलग-अलग जगहों पर 'बिखरी' पड़ी है, अत: इसे शुरू से लेकर आखिर तक पढ़ने की हिदायत दी गई है। मेरे विचार से लाल-किताब पुस्तक की सामग्री अलग-अलग जगहों पर बिखरी हुई न होकर पूरी तरह से तर्क संगत रूप में पुस्तक के रूप में प्रस्तुत है । लाल किताब की ज्योतिषीय पद्धति में प्रत्येक भाव व ग्रह के प्रभाव व फलित का वर्णन उससे संबंधित दूसरे भावों और ग्रहों के संदर्भ में किया गया है । उदाहरण के तौर पर यदि पहले भाव के संबंध में निर्णय करना है, तो इस भाव में स्थित ग्रह के इलावा इसके स्वामी और कारक का विचार करने के साथ-साथ, भाव नं. 7 (जोकि पहले भाव के सामने पड़ता है) का भी विचार आवश्यक है। इसी तरह, यदि भाव नं. 2 के संबंध में विचार करना है, तो भाव नं. 6,8,10 व 12 का भी विचार करना जरूरी है, क्योंकि इस पद्धति के 'दृष्टियों' के नियमों के अनुसार भाव नं. 2 का संबंध भाव नं. 6,8 व 12 से होता है । इसी प्रकार ग्रहों के संदर्भ में एक उदाहरण यदि जन्म कुंडली या वर्षकुंडली में शनि ग्रह के प्रभाव का निर्णय करना है, तो कुंडली में राहु, केतु व बुध ग्रह की स्थितियों को भी देखना जरूरी है, जिनका वर्णन. पुस्तक में शनि से संबंधित अध्याय में उपलब्ध न होकर, अलग ही किन्हीं अध्यायों में उपलब्ध होगा । इस प्रकार भावों या ग्रहों के इस दृष्टिकोण से प्रस्तुत वर्णन को लाल किताब में पढ़ते हुए यह लगता भले ही हो, कि किसी विषय से संबंधित सामग्री जगह-जगह बिखरी हुई है, परन्तु वास्तव में जब इस पद्धति के मूल सिद्धांतों को ध्यान में रख कर पढ़ेंने तो पुस्तक की विषय-वस्तु का प्रस्तुतिकरण एकदम पूरी तरह से तर्कसंगत ही लगेगा। यूँ तो 'लाल किताब' ज्योतिष की पद्धति में अधिकांश विषय अनूठे और मौलिक है, परन्तु कुंडली (जन्म कुंडली या वर्षफल कुंडली) के भावों के संबंध में इनके खाली होने, यानी उनमें किसी भी ग्रह के नहीं होने से उस भाव व कुंडली के किन्हीं दूसरे विशेष भावों में स्थित ग्रहों के प्रभाव व फलित का वर्णन ज्योतिष विषय का एक नया व महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं, जो ज्योतिष की अन्य पद्धतियों में लगभग देखने को नहीं मिलता । प्राचीन भारतीय ज्योतिष में ग्रहों के योगों का भी विशेष रूप से वर्णन किया गया है। अधिसंख्य योगों में केवल दो प्रकार के योगों 'केमद्रुम योग' और 'पर्वत योग' के वर्णन में जन्म कुंडली के खाली भावों का जिक्र है । 'केमद्रुम योग' में चन्द्रमा से आगे और पीछे के दो भावों के खाली होने का जिक्र है, तो 'पर्वत योग' में कुंडली के सभी ग्रहों के केन्द्र में होने के समय भाव नं.7 और 8 के खाली होने या उनमें शुभ ग्रह स्थित होने का जिक्र है। ज्योतिष की प्राचीन पद्धति में कुंडली के किसी खाली भाव के संबंध में निर्णय करने के लिए उस भाव में स्थित राशि, उसके स्वामी, भाव के कारक ग्रह, व उस भाव पर पड़ने वाली किसी दूसरे ग्रह की दृष्टि का विचार आदि करना बताया गया है। परन्तु लाल किताब पद्धति में उपरोक्त बातों के अतिरिक्त बहुत ही अधिक समृद्ध सामग्री उपलब्ध है, जो सन् 1952 के लगभग 1200 पृष्ठों के अंतिम संस्करण में एक जगह उपलब्ध न हो कर अलग-अलग अध्यायों में वर्णित है ।
प्रस्तुत पुस्तक के लेखन में मुख्यत: लाल किताब के सन् 1952 के संस्करण को आधार बनाया गया है, परन्तु इसके पिछले दो संस्करणों-सन् 1941 और 1942 से भी कुछ सामग्री ली गयी है जो कि सन् 1952 के संस्करण में उपलब्ध नहीं है । यह पुस्तक भले ही कुंडली के खाली भावों के संबंध मै लिखी गई है, परन्तु इसके शुरू के दो अध्याय जन्म कुंडली या वर्षफल कुंडली के उन भावों की भी व्याख्या करने में सहायक हैं, जो खाली न हो कर भरे हुए हैं, यानी उनमें कोई-न-कोई ग्रह मौजूद है-क्योंकि ये दोनों अध्याय लाल किताब पद्धति के मूल सिद्धांतों पर आधारित हैं जो खाली और भरे- दोनों हो प्रकार के भावों के संबंध में महत्त्वपूर्ण हैं । प्रस्तुत पुस्तक की सामग्री थोड़ी जटिल जरूर है, परन्तु ग्रह व भावों के फलित व उपायों के लिए है बहुत महत्वपूर्ण। जहाँ कहीं भी संभव हुआ है पुस्तक की विषय वस्तु को संदर्भित कुंडलियों के अलग-अलग नक्शों के साथ प्रस्तुत किया गया है जिससे कि पास्को को सुगमता रहे।
पुस्तक के संबंध में गंभीर विचार-विमर्श के लिए मैं अपने मित्र एडवोकेट टुमेश भारद्वाज का हृदय से आभारी हूँ।
विषय-क्रम
(iii)
अध्याय-1
जन्म कुंडली और लाल-किताब पद्धति
13-44
अध्याय-2
खाली भावों से संबंधित सामग्री
45-66
अध्याय-3
पहला भाव जब खाली हो
67-78
अध्याय-4
दूसरा भाव जब खाली हो
79-105
अध्याय-5
तीसरा भाव जब खाली हो
106-118
अध्याय-6
चौथा भाव जब खाली हो
119-125
अध्याय-7
पांचवां भाव जब खाली हो
126-130
अध्याय-8
छठा भाव जब खाली हो
131-137
अध्याय-9
सातवां भाव जब खाली हो
138-150
अध्याय-10
आठवां भाव जब खाली हो
151-161
अध्याय-11
नौवां भाव जब खाली हो
162-171
अध्याय-12
दसवां भाव जब खाली हो
172-181
अध्याय-13
ग्यारहवां भाव जब खाली हो
182-193
अध्याय-14
बारहवां भाव जब खाली हो
194-203
अध्याय-15
खाली भावों की व्याख्या सहित उदाहरण कुंडलियां
204-209
अध्याय-16
वर्षफल कुंडली बनाने की विधि तथा वर्षफल चार्ट
210-216
जन्म कुंडली के खाली भावों और वर्ष-कुंडली के ग्रहों का संबंध
212
वर्षफल चार्ट
213
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