स्वामी चिन्मयानन्द जी द्वारा की गई केनोपनिषद् की विस्तृत व्याख्या हास्य-विनोद तथा सटीक उपमाओं व दृष्टान्तों के कारण बहुत रोचक एवं सरल है। यह पूर्वकाल के बहुमूल्य ज्ञान की वर्तमान संदर्भ में अत्यन्त उपयोगी प्रस्तुति है।
हमारे अन्तरतम् में विद्यमान आत्मानन्द की प्यास उसी साधक को अनुभव होती है जो विवेकवान है और जिसका मन अन्तर्मुख होकर अपेक्षाकृत शान्त हो गया है। आत्मसुख की जिज्ञासा विकासशील मनुष्य में ही उठती है वरना जगत् में हमें दो पैर वाले जानवर ही मनुष्य के रूप में देखने को मिलते हैं।
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