११ दिसंबर १६३१ : ओशो का जन्म मध्य प्रदेश, भारत के एक छोटे से गांव, कुचवाड़ा में हुआ ।
२१ मार्च १६५३ : जबलपुर के डी.एन. जैन कॉलेज में दर्शन की पढ़ाई करते हुए इक्कीस साल की उम्र में वे बुद्धत्व को उपलब्ध हुए ।
१६५६ : ओशो दर्शन में प्रथम श्रेणी में ऑनर के साथ सागर विश्वविद्यालय से एम.ए. में उत्तीर्न हुए ।
१६५७-१६६६ : विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बने और एक सार्वजनिक वक्ता के
रुप में प्रसिद्ध हुए ।
१६६६ : नौ साल के अध्यापन के बाद, विश्वविद्यालय को छोड़ उन्होंने मानव चेतना के उत्थान हेतु, पूरी तरह से स्वयं को समर्पित कर दिया। उन्हें आचार्य रजनीश के रूप में जाना जाने लगा ।
१६७०-१६७४ : वे वुडलैंड अपार्टमेंट, मुंबई में रहने लगे। अब उन्हें भगवान श्री रजनीश कहा जाने लगा और उन्होंने शिष्यत्व चाहने वालों के लिए नव-संन्यास नामक संन्यास की एक नवीन अवधरणा का आंदोलन शुरू किया ।
१६७४-१६८१ : पुणे आश्रम में स्थानांतरित । इन सात वर्षों के दौरान उन्होंने हर महीने हिंदी और अंग्रेजी में बारी-बारी प्रायः हर सुबह ६० मिनट के प्रवचन दिए ।
१६८१-१६८५ : अमेरिका प्रस्थान । ओरेगान के कठोर रेगिस्तान में एक मॉडल
कृषि कम्यून का निर्माण ।
जनवरी १६८६ में काठमांडू, नेपाल की यात्रा । ३ जनवरी से १४ फरवरी तक, पैंतालीस दिनों तक दिन में दो बार प्रवचन । नेपाल से प्रस्थान और पूरी दुनिया के दौरे पर । १६८७-१६८६ : पुणे, भारत के कम्यून में पुनर्जागमन ।
१६ जनवरी १६६० : ओशो ने शरीर छोड़ा ।
काठमांडू, नेपाल में बनी उनकी समाधि पर उनके ही शब्द अंकित है :
जीवन को चीजें देता है-एक प्रेजं. कुन्नसनी है मृत्यु। और दोनों ही नखतरनाक है क्योंकि प्रेम में मी तुम्हें अपने को मिठाना होगा, मृत्यु में भी तुम्हें अपने को मिटाना होगा। और तुम मृत्यु में इतने डने हुए हो. अपने को खोने से इतने भयभीत हो कि भीतर गहने में तुम प्रेम से भी डरे हुए हो। तुम प्रेम की बातें तो करते हो. लेकिन कोई भी प्रेम कनने को राजी नहीं है क्योंकि प्रेम मृत्यु जैसा है। प्रेम और मृत्यु ये प्राकृतिक घटनाएं हैं।
यदि मनुष्य प्राकृतिक ढंग नो जीये तो प्रेम भी होगा और मृत्यु नी घठित होगी, और दोनों ही शिनवन होंगे। प्रेम है दूसने व्यक्ति में मिटना, औन मृत्यु है समष्टि में मिठना। किंतु प्रेम आत्यंतिक मिटना नहीं है. तुम उसमें से वापस आ जाते हो। और मृत्यु मी आनिकरी नहीं है क्योंकि तुम पुन जन्मोगे।
ध्यान परम मृत्यु है तथा मृत्यु दोनों के पान है। से वापस नहीं आ सकते। वह प्रेम तुम उसमें.
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