ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति या जीव हो जो अपने जीवन में कभी न कभी रोगग्रस्त हुआ हो और उनको उनके रोग से रोग मुक्ति दिलाना विश्व की सभी सभ्यताओं में पली बढ़ी चिकित्सा पद्धतियों का ही कर्म बना। चाहे मिश्र हो या ग्रीक या कोई और किन्तु आज के समय में चिकित्सा विज्ञान का जो प्राचीनतम् ज्ञान उपलब्ध है वह वेदों से निसृत आयुर्वेद ही है।
यह भी सत्य है, कि जीव मर्त्य है किन्तु जितने भी दिन की आयु भोगना उसके हिस्से में आता है वह आयु निरोगी रहकर ही वह धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। अतः स्वास्थ्य संरक्षण एवं रोग मुक्ति हेतु चिकित्सक को रोग व उसकी चिकित्सा का ज्ञान होना परम आवश्यक है।
'शरीरं व्याधि मंदिरम्'
ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति या जीव हो जो अपने जीवन में कभी न कभी रोगग्रस्त न हुआ हो और उनको उनके रोग से रोग मुक्ति दिलाना विश्व की सभी सभ्यताओं में पली बढ़ी चिकित्सा पद्धतियों का ही कर्म बना। चाहे मिश्र हो या ग्रीक या कोई और किन्तु आज के समय में चिकित्सा विज्ञान का जो प्राचीनतम् ज्ञान उपलब्ध है वह वेदों से निसृत आयुर्वेद ही है।
व्याधेस्तत्वपरिज्ञानंवेदनायाश्च निग्रहः ।
एतत्वैयद्यस्यवैद्यत्वं न वैद्यःप्रभुरायुषः ।।
इस प्रयास में मैंने मेरे गुरुजनों व विभिन्न शास्त्रीय ग्रन्थों से प्राप्त ज्ञान को आधार मानते हुए विषय का प्रस्तुतीकरण किया है जिनके आशीष व कृपा से ऋिण नहीं हो सकती। सम्भव है इस प्रयास में कुछ त्रुटियां भी हों, विद्वतजन कृपया क्षमा करते हुए मेरा पथ प्रशस्त करें ऐसी प्रार्थना।
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