परम पूज्य गुरुदेव स्वामी चिन्मयानन्द जी ने सर्वप्रथम पुणे में 'उपनिषद् ज्ञान यज्ञ' किया था जो लगातार १०० दिनों तक चला। इसमें स्वामी जी ने केनोपनिषद् व कठोपनिषद् की विस्तृत व्याख्या की। वे प्रातःकालीन सत्र में श्री शंकरभाष्य को समझाते थे और सायंकालीन सत्र में उपनिषद् मंत्रों पर सर्वसाधारण की दृष्टि से दो घण्टे प्रवचन देते थे। उनके व्याख्यानों में प्राचीन परम्परा व वर्तमान जीवन स्थिति की आवश्यकता का इतना सुन्दर समन्वय होता था कि धीरे-धीरे अनेकों लोग इन प्रवचनों में नियमित रूप से आने लगे। श्रोताओं में पंडित व उच्च शिक्षित वर्ग के लोग भी बड़ी संख्या में आते थे। स्वामी जी का यह अभिनव प्रयोग था। यह इतना आकर्षक व प्रभावशाली था कि स्वामीजी ने पूरे जीवन इसी के माध्यम से वेदान्त ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया।
स्वामी जी के प्रतिदिन होने वाले प्रवचन शार्टहैण्ड पद्धति से नोट किए जाते थे और फिर सम्पादित करके प्रति सप्ताह "यज्ञ प्रसाद" के रूप में बाँटे जाते थे। यह वितरण निःशुल्क होता था। प्रति सप्ताह लगभग १२०० प्रतियाँ अध्यात्मिक साधकों व जिज्ञासुओं के बीच वितरित की जाती थीं। इस क्रम में सात अंक प्रकाशित किए गये जिनमें केनोपनिषद् के सम्पूर्ण प्रवचन संकलित थे। किन्तु बाद में धनाभाव के कारण यह प्रकाशन रोकना पड़ा। स्वामी जी ने इसके लिए लोगों से सहायता माँगना उचित नहीं समझा। उनका मत था कि यह ईश्वरीय कार्य है और उसी की इच्छानुरूप इसे चलना चाहिए। यदि ईश्वर की इच्छा होगी तो निश्चित ही कहीं न कहीं से कोई दाता स्वप्रेरणा से अवश्य आयेगा। सच पूछो तो "ईश्वर इच्छा के प्रति सर्मपण" यह हम सभी के लिए स्वामीजी द्वारा किन्डर गार्टेन की तरह दिया गया पहला पाठ था।
संत ज्ञानेश्वर व संत तुकाराम जैसे महान ऋषियों की जन्म स्थली इस पुण्य-भूमि (पुणे) में स्वामी चिन्मयानन्द जी केवल साढ़े चार आना लेकर १०० दिनों का ज्ञानयज्ञ करने आये थे। यहाँ एक-दो परिवारों को छोड़कर उनका कोई परचित नहीं था। आश्चर्य की बात है कि जो परिचित थे वे पहले ही स्वामी जी को लिख चुके थे कि इतने लम्बे समय का ज्ञान यज्ञ आयोजित करना संभव नहीं है। किन्तु फिर भी स्वामी दृढ़ निश्चय के साथ पुणे पहुँचे और ज्ञान-यज्ञ की अभूतपूर्व सफलता हमारी आँखों के सामने है। यह ईश्वरीय कृपा का अद्भुत चमत्कार था जो स्वामीजी के कार्य में प्रकट हुआ।
आधुनिक भारत के इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब सार्वजनिक रूप से वेदान्त ज्ञान इतने प्रभावशाली ढंग से और स्पष्टता के साथ लोगों को समझाया गया। हम पुणे के निवासी इसे अपना सौभाग्य मानते हैं कि हमें यह प्रथम ज्ञान यज्ञ करने का अवसर मिला, स्वामीजी का सानिध्य प्राप्त हुआ और उनके ज्ञान से हम सब लाभान्वित भी हुए।
स्वामी जी बहुत प्रभावी ढंग से तथा तेजी से प्रवचन देते थे जिसे नोट करना किसी कुशल स्टेनोग्राफर के लिए भी कठिन था। किन्तु स्वामीजी के चुम्बकीय और ऊर्जावान व्यक्तित्व से हम सभी इतने आवेशित थे कि असंभव से लगने वाले कार्य भी सहजता से होते चले गये। अब हमारे सामने जीवन का एक उद्देश्य था, एक दृष्टि थी। प्रवचन में श्रोताओं की संख्या प्रतिदिन बढ़ती ही चली गई। कई श्रोता जो केवल उपहास के इरादे से आये, स्वामी जी के प्रवचन सुनकर ऐसे मुग्ध हुए कि फिर नियमित आने लगे और उनके प्रति समर्पित भी हो गये। जो श्रोता बाद के दिनों में आये वे पश्चाताप करने लगे कि उन्होंने एक सुनहरा अवसर खो दिया।
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