भारतीय सनातन धर्म परम्परा के अनुसार जीवन की सार्थकता जीवन को सुसंयत करके उसे भगवन्मुखी बनाने में है, जिससे इस क्षुद्र अल्पकालस्थायी ससीम भौतिक जीवन से उठकर महान, शाश्वत एवं असीम अनन्त जीवन को प्राप्त किया जा सके। हम भारतीय सनातन धर्मावलम्बियों की दृष्टि में किसी भी ग्रन्थ की उपयोगिता अथवा उपादेयता इस बात पर निर्भर करती है कि वह हमें जीवन के इस चरम और परम लक्ष्य तक पहुँचाने में कहाँ तक सहायक है। इस दृष्टि से विचार करने पर ज्ञात होता है कि कठोपनिषद् का आश्रय (अनुशीलन) मानव मात्र को लक्ष्य की प्राप्ति करा देने में सबसे अधिक सहायक, उपयोगी तथा सर्वार्थ सिद्ध सबल साधन के रूप में कसौटी पर खरा उतरता है। कठोपनिषद् के इस लोक-कल्याणकारी अवदान और उसकी विश्व मान्य महत्ता को दृष्टिपथ में रखकर ही कठोपनिषद् के आत्मोद्धारक अमर संदेश को जन-जन तक पहुँचाने के उद्देश्य से शाश्वत पब्लिकेशन ने कठोपनिषद् के कई छोटे-बडे संस्करण तथा विस्तृत टीकाएँ प्रकाशित की हैं। उनमें परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन डॉ. निवारण महथाजी द्वारा प्रणीत यह छात्रोपयोगी कठोपनिषद् की टीका अन्यतम है। इसमें टीकाकार ने कठोपनिषद् की अन्वय, भावार्थ और शब्दार्थ के साथ छात्रोपयोगी बनाने के लिए सरल, सहज और सुबोध भाषा में उद्घाटित किया है। मुद्रण की आधुनिक प्रविधि द्वारा 5+8 के आकार में मुद्रित, ऑफसेट की स्वच्छ, सुन्दर छपाई से युक्त यह संस्करण पाठकों का ध्यान आकर्षित करते हुए कठोपनिषद् के पठन-पाठन की ओर उन्हें अधिकाधिक प्रवृत्त करेगा, ऐसी आशा है। हमें पुरी विश्वास है कि कठोपनिषद् के प्रेमी पाठक और जिज्ञासुजन इससे विशेष लाभ उठायेंगे।
उपनिषदों के विषय पर व्याख्या प्रस्तुत करना मेरे जैसे किसी सामान्य व्यक्ति के लिय संभव की बात नहीं, फिर भी ईश्वर की अनुकम्पा से और गुरुजनों के आशीर्वाद एवं अंतर्मन की प्रेरणा से प्रस्तुत विषय में अपने विचारों को प्रस्तुत करने का दुःसाहस हमने किया है तथा कठोपनिषद् की ही विशेष प्रेरणा से इस कार्य को परम सत्ता, परम पिता परमेश्वर के प्रति समर्पण भाव से लोक कल्याणार्थ इसे समर्पित करता हूँ। उपनिषदों की वाणी के मूल तत्त्व मेरी रक्षा और मार्गदर्शन करें।
उपनिषद् का शाब्दिक अर्थ होता है समीप बैठना इसी को उपासना भी कहते हैं। इनको उपनिषद् नाम क्यों दिया गया इसके पीछे खास कारण हैं और वो ये हैं कि इनमें जो कुछ लिखा गया है वो क्रिया योग है। यदि कोई व्यक्ति इनकी बातों को ठीक से हृदयंगम अथवा आत्मसात कर ले और उसको अपने आचरण का भाग बना ले तो उसका जीवन धन्य हो जाता है।
उपनिषदों की संख्या 108 है, किन्तु इनमें से प्रमुख सिर्फ 11 उपनिषदों को ही विशेष स्थान दिया गया है। इन सबमें सर्व प्रथम स्थान ईशोपनिषद् का आता है। यजुर्वेद का चालीसवाँ अध्याय जिसे ईशावास्योपनिषद् के नाम से जाना जाता है। कठोपनिषद् भारतीय उपनिषद् साहित्य का अमूल्य रत्न है। कठोपनिषद् कृष्ण यजुर्वेद शाखा का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपनिषदों में से एक है। इस उपनिषद् के रचयिता कठ नामके तपस्वी आचार्य थे। वे मुनि वैशम्पायण के शिष्य तथा यजुर्वेद की कठ शाखा के प्रवर्त्तक थे। इसे कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा से सम्बन्धित होने के कारण 'कठोपनिषद' कहा जाता है। कठोपनिषद् का दूसरा नाम 'नचिकेतोपाख्यान' अथवा 'नचिकेतस उपाख्यान' भी है। कठोपनिषद् संस्कृत भाषा में लिखित नचिकेता और यमाचार्य का संवाद है। इसमें दो अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में तीन-तीन वल्लियां हैं।
उपनिषदों का महत्त्व : उपनिषद् भारतीय वैदिक साहित्य में आध्यात्म विद्या के देदीप्यमान रत्न हैं। उपनिषद् भारतीय आध्यात्मिक चिन्तन के मूलाधार हैं। भारतीय प्राचीन वाङ्मय में वेदों के बाद यदि कोई आध्यात्म विद्या का सबसे उक्त, गम्भीरार्थक, महत्त्वपूर्ण और श्रेष्ठ साहित्य है तो वह उपनिषद् साहित्य ही है। ये उपनिषद् युगों-युगों से न केवल भारतवासियों को अपितु संसार के विभिन्न देशों के लोगों को इस महनीय साहित्य ने प्रभावित और प्रेरित किया है। शाश्वत शान्ति और परमानन्द प्रदान किया है। ये कवि हृदय ऋषियों की काव्यमय आध्यात्मिक रचनाएँ हैं, अज्ञात ब्रह्म के खोज के प्रयास हैं, वर्णनातीत परमशक्ति को शब्दों में बाँधने की कोशिशें हैं और उस निराकार, निर्विकार, असीम, अपार को अन्तर्दृष्टि से समझने और परिभाषित करने की अदम्य आकांक्षा के लेखनबद्ध विवरण हैं। भारतीय ऋषि-मुनियों ने अपनी प्रतिभापूर्ण नेत्रों से जिन आध्यात्मिक तत्त्वों का साक्षात्कार किया था, उन्हीं तत्त्वों को उपनिषद् के माध्यम से संसार के सामने रखा है।
इसलिए साहित्य जगत् में उपनिषदों का महत्त्व सर्वोपरि है। जीवन के सभी आध्यात्मिक, दार्शनिक विचार और चिन्तन उपनिषदों में वर्णित है। उपनिषदों द्वारा प्राप्त ज्ञान सदैव शाश्वत और सनातन है। यह जीवन के लक्ष्य तक पहुँचने का मार्ग है, जिससे हम जीवन के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। जन-जन के लिए उपनिषद् अज्ञानपूर्ण अन्धकार को दूर करने के लिए रचित किया गया ग्रंथ है। इसलिए उपनिषदों का महत्त्व जन-कल्याण का प्रतीक है। उपनिषद् आध्यात्मविद्या के विविध अध्याय हैं जो विभिन्न अन्तः प्रेरित ऋषियों द्वारा लिखे गये हैं
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