पुस्तक के विषय में
कथा-सरित्सागर संसार भर के कथा-साहित्य का आदिस्त्रोत है। शेक्सपियर, गेटे बोकेशियो आदि ने जाने कितने सुख्यात विदेशी कथाकारों ने इसी की कथा-कहानियों से अपनी कृतियों की मूल प्रेरणा ग्रहण की है।
और 'सागर' की कथावस्तु भी क्या है! सभी तरह की कथा-कहानियों का एक सागर है, जिसमें छोटी-छोटी कथाओं की न जाने कितनी सरिताएँ और धाराएँ मिलती जाती हैं। इसमें लोककथाएँ हैं, ऐतिहासिक गाथाएँ हैं, पौराणिक वार्ताएँ है, शिक्षा की कहानियाँ हैं, नीति की, बुद्धिमानी की, मूर्खता की, प्रेम की, विरह की, स्त्री-चरित्र की, गृहस्थ-जीवन की भाग्य-चक्र की-संक्षेप में जीवन के हर पहलू से संबंध रखनेवाली कहानियाँ हैं और ऐसी रोचक और मनोरंजक, सरस और मधुर कि एक बार आरंभ करने पर पुस्तक बंद करने को मन नहीं करता।
'कथा-सरित्सागर' संस्कृत के महाकवि सोमदेव भट्ट की अमर कृति है।
प्रस्तुत पुस्तक उसी को हिंदी रूपांतर है।
प्रकाशकीय
भारतीय साहित्य में 'कथा-सरित्सागर' का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, यह कथा-कहानियों का विशाल भडार है और इसकी कहानियाँ भारत के कोने-कोने में फैली हुई हैं, हालाँकि कम ही लोग जानते हैं कि वे कब से प्रचलित हैं और कहाँ से ली गई हैं।
सारी पुस्तक कहानियों से भरी पड़ी हैं और कहानियाँ भी कैसी? एक-से-एक बढ़कर। इतनी रोचक कि एक बार हाथ में उठा लें तो बिना पूरी किए छूटे ही नहीं। कहानियों को पढ़कर मनोरंजन तौ होता ही है, शिक्षाप्रद भी बहुतेरी हैं, साथ ही उनसे तत्कालीन समाज के जन-जीवन कीं-रीति-रिवाजों, प्रथाओं, लोकाचार-तथा किसी हद तक इतिहास की भी, झाँकी मिलती है।
मूल ग्रंथ की रचना ग्यारहवीं शताब्दी में हुई थी । इन नौ सौ वर्षा में अनेक विद्वानों ने इस पर अन्वेषण-कार्य किया है और अंग्रेजी में तो इसका अनुवाद भी दस जिल्दों में कभी का निकल चुका है। प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर द्वारा संपादित यह धरोहर पुस्तक पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है। आशा है इसके पठन-पाठन से पाठकों में मूल ग्रंथ को पढ़ने की जिज्ञासा उत्पन्न होगी।
भूमिका
भारतीय साहित्य की विश्व को जो देन है, उसमें लोकप्रिय-कथा की देन विशेष महत्त्व की है। भारत कथाओं का देश है। विश्व में कहानी का प्रचार यही से हुआ है। ईरानियों ने यही से इस कला को सीखा, सीखकर अरबों को सिखाया। अरब से यह कला तुर्की और रोम होती हुई संसार-भर में फैल गई। शोर के महान् कथाकारों बोकेशियो, गेटे ला फोते, चौसर और शेक्सपियर के साहित्य की प्रेरणा ये ही कथाएँ रही हैं। न जाने कितनी कथाएँ न जाने किस-किस देश में गई और वहाँ-वहाँ के जीवन में समा गई। 'कथा-सरित्सागर' इसी प्रकार की कथाओं का एक अद्भुत और महत्वपूण ग्रथ है। साधारणतया भारतीय साहित्य में दो प्रकार की कथाएँ मिलती हैं-उपदेशात्मक और मनोरंजक ।उपदेशात्मक कथाएँ ब्राह्मणो' जैनियो और बौद्धों ने समान रूप से लिखी हैं। बौद्धो की 'जातक-कथाओं का इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैनियों का भंडार तो अक्षय है अभी तक बहुत कुछ अछूता भी है। वेदी, पुराणों और महाभारत में भी अनेको कथाएँ हैं। 'पचतत्र' का मूल्य तो विश्व-विश्रुत है ही। पशु-पक्षियों के माध्यम से उसमें नीति-शास्त्र की विवेचना की गई है। 'कथा-सरित्सागर' मनोरंजक कहानियों की श्रेणी में आता है। इसमें उपदेशात्मक कथाएँ भी हैं-'पंचतंत्र' के अनेक अश इसका प्रमाण हैं, परतु मुख्यतया इसका लक्ष्य मनुष्य और उसके समाज का चित्रण और मनोरजन करना है। इसलिए साहित्यिक कथाओं में यह बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह ग्रंथ मौलिक नहीं है, बल्कि महाकवि गुणाढ्य द्वारा पैशाची 'भाषा' में लिखी गई एक बहुत प्राचीन और लोकप्रसिद्ध पुस्तक 'बृहत्कथा' का संक्षिप्त रूपातर है।
'बृहत्कथा' आज उपलब्ध नही है। उसके और उसके लेखक के संबंध में पूरी जानकारी भी किसी को नहीं है, परतु वे दोनों थे अवश्य, यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो चुका है। स्वय 'कथा-सरित्सागर' इसका प्रमाण है। इसके प्रथम लवक 'कथा-पीठ' में यह कथा दी हुई है। काश्मीरी संस्करणों में गुणाद्य को गोदावरी तट पर बसे प्रतिष्ठान का निवासी माना है और किसी सातवाहन राजा का कृपा-पात्र बताया है। नेपाली-संस्करण के अनुसार उनका जन्म मथुरा में हुआ और वह उज्जैन के राजा मदन के अश्रित थे। अधिकतर विद्वान् पहली बात को ठीक मानते है। 'बृहत्कथा' के तीन अनुवाद या रूपांतर आज उपलब्ध है।
अनुक्रम
पहला खंड
1
वत्सराज
23
2
वररुचि और काणभूति
24
3
पाटलिपुत्र की कहानी
26
4
पाणिनी और राजा नंद
28
5
शकटाल और चाणक्य
30
6
गुणाढ्य
33
7
नाम का रहस्य
36
8
कथाओं की रक्षा
39
दूसरा खंड
9
सहस्रानीक और मृगावती
40
10
श्रीदत्त की कहानी
42
11
राजा उदयन
47
12
चंडमहासेन और वासवदत्ता
49
13
उदयन की मुक्ति
53
14
उदयन और वासवदत्ता
58
तीसरा खंड
15
लावणक की कहानी
61
16
अवंतिका की कहानी
65
17
उर्वशी और अहिल्या की कहानी
68
18
विदूषक की कथा
72
19
दिग्विजय की यात्रा
79
20
कार्तिकेय और मंत्र सिद्ध करने की कथा
82
चौथा खंड
21
देवदत्त की कहानी
89
22
जीमूतवाहन और गरुड़ की कथा
92
नरवाहनदत्त का जन्म
96
पाँचवाँ खंड
दो भूतों की कहानी
98
25
कनकपुरी और शक्तिदेव
101
विद्याधर शक्तिदेव
104
छठा खंड
27
मदनमंचुका
109
कलिंगसेना
112
29
सोमप्रभा
114
मदनवेग और कलिंगसेना
116
31
कलिंगसेना और उदयन
118
32
कदलीगर्भा की कहानी
119
कलिंगसेना का विवाह
121
34
नरवाहनदत्त और मदनमंचुका
124
सातवाँ खंड
35
रत्नप्रभा की कहानी
128
सती-धर्म की कहानी
130
37
स्त्री-चरित्र
132
38
शीलवती वेश्या की कथा
1326
गुणवरा और रूपशिखा
139
पूर्वजन्म का संस्कार
142
41
चिरायु और नागार्जुन
144
नरवाहनदत्त की आखेट-यात्रा
146
43
राजकुमारी कर्पूरिका
149
आठवाँ खंड
44
सूर्यप्रभ की कथा
153
45
असुर और देवता
154
46
युद्ध की तैयारी
159
युद्ध का आरंभ
166
48
विजय के लक्षण
167
गुणशर्मा की कथा
168
50
चक्रवर्ती-पद की प्राप्ति
173
नवाँ खंड
51
अलंकारवती
177
52
दिव्य नारियों का दुराचरण
स्वामिभक्त सेवक
188
54
सुकर्म और पुरुषार्थ की महिमा
191
55
राजा कनकवर्ष की कथा
196
56
नल-दमयंती की कथा
199
दसवाँ खंड
57
शक्तियशा
208
212
59
शास्त्रगंज तोते की कथा
216
60
बुद्धिमानों की कथाएँ
222
मूर्खों की कथाएँ
231
62
बुद्धिमानी की कथाएँ
234
63
मूर्खों की कुछ और कथाएँ
238
64
बुद्धिमान पक्षी और मूर्ख मनुष्य
245
मनोविनोद की कथाएँ
254
66
और मनोरंजनकारी कथाएँ
260
67
कुछ और कथाएँ
262
शक्तियशा का विवाह
270
ग्यारहवाँ खंड
69
बेला
276
बारहवाँ खंड
70
ललितलोचना
279
अनगवती और विनयवती
281
74
मृगांकदत्त का देश-निकाला
287
76
भीम पराक्रम की मुक्ति
291
78
विनीतमति की कथा
299
80
मंत्री विचित्रकथ का वृत्तांत
309
शीलधर की कथा
317
84
बेताल-पच्चीसी : पहला बेताल
323
86
दूसरा बेताल
327
88
तीसरा बेताल
329
90
चौथा बेताल
331
पाँचवाँ बेताल
332
94
छठा बेताल
334
सातवाँ बेताल
335
आठवाँ बेताल
337
100
नवाँ बेताल
339
102
दसवाँ बेताल
ग्यारहवाँ बेताल
341
106
बारहवाँ बेताल
342
108
तेरहवाँ बेताल
345
110
चौदहवाँ बेताल
346
पंद्रहवाँ बेताल
348
सोलहवाँ बेताल
351
सत्रहवाँ बेताल
अठारहवाँ बेताल
352
120
उन्नीसवाँ बेताल
354
122
बीसवाँ बेताल
356
इक्कीसवाँ बेताल
358
126
बाईसवाँ बेताल
360
तेईसवाँ बेताल
361
चौबीसवाँ बेताल
362
पच्चीसवाँ बेताल
364
134
मंत्रियों से मिलन
365
136
व्याघ्रसेन की कथा
366
138
दूत-कार्य
371
140
युद्ध और विवाह
373
तेरहवाँ खंड
141
मदिरावती
377
चौदहवाँ खंड
वेगवती
381
143
मानसवेग से युद्ध
383
शिव का वरदान
386
145
मानसवेग और गौरिमुंड की पराजय
388
पंद्रहवाँ खंड
महाभिषेक
394
सोलहवाँ खंड
147
सुरतमंजरी
399
148
सुरतमंजरी का हरण
401
तारावलोक
406
सत्रहवाँ खंड
150
पद्यावती
409
151
मुक्ताफलकेतु
412
152
विद्युद्ध्वज की मृत्यु
415
मुक्ताफललकेतु को शाप
417
मुक्ताफलकेतु मनुष्य-रूप में
419
155
शाप-मुकिा
421
अठारहवाँ खंड
156
विषमशील
426
157
मदनमंजरी की कथा
428
158
मलयवती का विवाह
435
धनदत्त वैश्य की कथा
438
160
पूर्णाहुति
447
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