इस देश में राजनीतिक और सामाजिक बदलाव का श्रेय कई विभूतियों को २ दिया जाता है। किसी ने छोटे स्तर पर तो किसी ने बड़े स्तर पर कामयाबी हासिल की है। सभी की प्रतिभा एवं कर्मठता की अपनी उलब्धियाँ रही हैं। सभी ने कामयाबी का इतिहास रचा है। झारखंड राज्य के पलामू प्रमंडल की धरती भी प्रतिभासंपन्न रही है। उन्हीं में से एक हैं- रामचंद्र चंद्रवंशी। पलामू प्रमंडल को मौखिक रूप से झारखंड की राजनीतिक राजधानी कहा जाता है। पलामू में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदरसिंह नामधारी, पूर्व मंत्री राधाकृष्ण किशोर, पूर्व मंत्री स्व. पूरनचंद, पूर्व मंत्री ईश्वरचंद पांडेय, स्व, गिरिवर पांडेय, स्व. भुवनेश्वर चौबे, पूर्व मंत्री स्व. मधु सिंह, पूर्व मंत्री गिरिनाथ सिंह, उनके पिता स्व. गोपीनाथ सिंह, पूर्व मंत्री रामचंद्र केसरी, नगरऊँटारी गढ़ परिवार के राजा राजेंद्र प्रताप देव, शंकर प्रताप देव, कांग्रेस के दिग्गज नेता स्व. जगनारायण पाठक, श्रमिक नेता सह-विधायक रहे चंद्रशेखर दुबे उर्फ ददई दुबे, स्व. अवधेश सिंह, दशरथ सिंह, संजय कुमार सिंह यादव, कृष्णदेव सिंह, स्व. यमुना सिंह, दीनानाथ तिवारी आदि कई बड़े राजनीतिज्ञ हुए। इस क्षेत्र के लिए ये सभी अपने-आप में ऐसे पात्र हुए, जिनकी सामाजिक एवं राजनीतिक भूमिका की अलग-अलग कहानियाँ हैं। इनमें कई ने एकीकृत बिहार में राजधानी पटना समेत पूरे राज्य में अपना सिक्का जमाया, तो कई ने अलग झारखंड राज्य बनने के बाद अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। कई नेता ऐसे हुए, जो विधायक या सांसद नहीं बन पाए, लेकिन पलामू प्रमंडल में राजनीतिक स्तंभ के रूप में स्थापित हुए। इन सभी की राजनीतिक भूमिकाओं के कारण ही पलामू प्रमंडल को झारखंड की राजनीतिक राजधानी की संज्ञा दी गई। पलामू का इलाका भौगोलिक रूप से वृष्टिछाया वाला क्षेत्र है, जहाँ की गरीबी और कृषि मजदूरों का पलायन पूरे देश में विख्यात हैं। यह इलाका कभी नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था। एकीकृत बिहार में मध्य बिहार के बाद 'पलामू' ही वह इलाका रहा, जहाँ से नक्सलियों ने अपने आंदोलन की शुरुआत की। देश के 10 सबसे गरीब जिलों में 'पलामू' का नाम आता है। इस अति पिछड़े इलाके में सक्रिय इन राजनीतिक धुरंधरों ने 'पलामू' को एक नई पहचान भी दी। इलाके की दिशा बदलने में अपनी भूमिका निभाई और धीरे-धीरे पलामू जिले के दामन पर लगे पिछड़ेपन के दाग को मिटाने की कोशिश की।
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