पुस्तक के विषय में
बीसवी, सदी मे भारतीय स्वाधीनता से पूर्व और पश्चात कै सामाजिक जीवन एवं सांस्कृतिक विकास के क्षेत्र में कमलादेवी चट्टोपाध्याय का अवदान उल्लेखनीय रहा है। यह संक्षिप्त जीवनी उनके जीवन एवं क्रिया-कलापों पर प्रकाश डालती है। कला-संस्कृति के प्रोन्नयन (वे भारतीय महिला के मनोबल के संवर्द्धन में उनका अभूतपूर्व योगदान है। इस पुस्तक के लेखिका जसलीन धमीजा उनके सान्निध्य में रही हैं, उनके साथ काम कर चुकी हैं। यह पुस्तक कमलादेवी चट्टोपाध्याय के राजनीतिक, सामाजिक, सजनात्मक सरोकारों और इन सबसे बढ़कर मानवीय संवेदना के विभिन्न पहलुओं की जड़ तक पहुंचती है, और स्वाधीनता संग्राम के दोरान और उसके बाद उनकी अग्रणी भूमिका को एक सही दृष्टिकोण देती है। कमलादेवी चट्टोपाध्याय जैसे प्रेरणादायक व्यक्तित्व के जवीन और उपलब्धि पर विश्वस्त दस्तावेज का अभाव, काफी दिनों से महसूस किया जा रहा था, यह जीवनी उस अभाव को दूर करती है, और स्वाधीनता संग्राम, महिला अधिकार, मानवाधिकार, जीवित सांस्कृतिक परंपरा और मंच कलाओं के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान को सामने रखती है ।
जीवंत सांस्कृतिक परंपरा तथा वस्त्र एवं परिधान के इतिहास के क्षेत्र में जसलीन धमीजा अंतराष्ट्रीय ख्याति की विशषज्ञ हैं । उन्होंने सन् 1950 के दशक के महत्वपूर्ण दौर में भारत में हस्तशिल्प के विकास के लिए काम किया । वे सन् 1970 से अतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत हैं । मिनेसोटा विश्वविद्यालय में हिल प्रोफेसर सम्मान सै सम्मानित जसलीन धमीजा आस्ट्रेलिया के तीन अन्य विश्ववद्यिालयों में भी विजिटिंग प्रोफेसर हैं । वे कई महत्वपूर्ण प्रदर्शनियों के आयोजन में तल्लीन रही हैं । कॉमनवेल्थ खेल, मेलबोर्न, 2006 के लिए आयोजित 'टेक्सटाइल्स ऑफ द कॉमनवेल्थ' उनकी नवीनम प्रदर्शनी है । उल्लेखनीय है कि यूनेस्को के साथ गंभीर रूप से जुड़ी जसलीन को शिल्प के क्षेत्र में इस संगठन कै कार्यो कै मूल्यांकन का आग्रह किया गया है । खूब लिखने और खूब छपले वाली जसलीन धमीजा इन दिनों वर्ल्ड इनसइक्लोपीडिया ऑफ ड्रेस एंड एडोर्नमेन्ट के एक खंड का संपादन कर रही हैं ।
अनुवादक श्री विपिन कुमार नेशनल बुक ट्रस्ट, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, सस्ता साहित्य मंडल आदि के लिए अंग्रेजी-हिन्दी और हिन्दी-अंग्रेजी में अनुवाद करते रहे हैं । उनके द्वारा अंग्रेजी मेँ अनूदित जैनेन्द्र कुमार का उपन्यास सुनीता ने.बु ट्रस्ट से शीघ्र प्रकाश्य है ।
भूमिका
कमलादेवी चट्टोपाध्याय का जीवन वृत्तात और राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षैत्रों में उनके संघर्ष की गाथाएं पहले ही कई पुस्तकों, आलेखों और कम-से-कम चार जीवनियों में विस्तार से लिखी जा चुकी हैं । फिर भी उनके बारे में हर महान व्यक्ति की तरह बहुत कुछ जानना बाकी है । हां, इस रचना में उनके जीवन के मौलिक तथ्यों को उनकी विरुदावलियों के देर से सावधानी से छांट कर अलग कर लिया गया है । कमलादेवी की जन्मशती के उपलक्ष्य में 2003 में आयोजित समारोहों में इसका पूरा अवसर मिला कि महिला अधिकार की प्रणेता, धरातल की राजनीतिज्ञ और भारतीय कला एवं शिल्प की संत-संरक्षक कमलादेवी की बहुमुखी भूमिकाओं की अब तक जो भी सराहना की गई; श्रद्धांजलियां दी गई, उसकी पुष्टि हो सके ।
जसलीन धमीजा लिखित यह नई जीवनी कई मायनों में कमलादेवी की जीवन यात्रा पर रोचक एवं मौलिक नजर डालती है । सर्वप्रथम, लेखिका ने कमलादेवी के साथ अपने लंबे संबंध के रंग-बिरंगे माध्यम से स्थापित तथ्यों की व्याख्या को इस पुस्तक का आधार बनाया है । श्रीमती धमीजा ने पुस्तक के परिचय में साफ-साफ लिखा है कि वे 'चंद लोगों में थीं जो कमलादेवी के कदम-से-कदम मिलाकर चल सकीं' और निस्संदेह असंख्य लोगों में एक, जिनके जीवन को कमलादेवी ने संवार दिया।' अंतरंग क्षणों और यादों की एक श्रृंखला के माध्यम से श्रीमती धमीजा ने कमलादेवी का जो चरित्र-चित्रण किया है वह सचमुच उतना वास्तविक और जीवंत है जिसकी अपेक्षा जीवनी लेखन के संसार से आप कर सकते हैं। अत्यधिक भावुक, पर अंतर्मुखी महिला, कमलादेवी के व्यक्तित्व और उनकी अंतर्दृष्टि को जानने के लिए, उनके साथ हुई बातचीत कै संस्मरण का अलग ही महत्व है। 'हमारे साथ यात्रा कर रही एक महिला के साहस का क्या कहिए...उसने कमलादेवी से उनके वैधव्य के अनुभव के बारे में पूछ दिया । एक पल सन्नाटा छाया रहा क्योंकि कमलादेवी कभी भी निजी जीवन के बारे में नहीं बोलतीं । फिर उन्होंने अपना मौन तोड़ा-मेरे लिए तो जिंदगी पूर्ववत चलती रही, पर मेरी मां पर यह भारी पड़ गया ।
महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू और सी. राजगोपालाचारी जैसे राजनीति के पुरोधाओं के साथ कमलादेवी के संपर्क-सरोकार के विवरण, अंतरंग झलकियों से परिपूर्ण हैं, जिन्हें पढ़ना रोचक है। उन प्रसंगों में कमलादेवी द्वारा सविनय अवज्ञा के लिए युवाओं के आवाहन से जुड़ी बात दर्ज है। 'मुझे याद आती है कमलादेवी की शरारत भरी मुस्कान, जब उन्होंने यह कहानी सुनाई कि किस प्रकार गांधीजी भी, जो हमेशा सबसे दस कदम आगे रहते थे, अचंभित रह गए।
श्रीमती धमीजा कमलादेवी को राक सच्चे प्रशंसक की नजर से देखती तो हैं, पर वे व्यक्तिपूजक नहीं हैं, कमलादेवी की ही तरह बेबाकी से बात करती हैं और उनकी असफलताओं को उजागर करने में भी कोई संकोच नहीं करतीं-मामला भले ही बेटे राम से कमलादेवी के संबंध का हो (पूरी तरह राजनीतिक जीवन में खोई कमलादेवी के अभाव में अवश्य ही बच्चे के मन में असुरक्षा की भावना घर कर गई होगी ।) या एक प्रशासक के रूप में उनकी असफलता का, जिसमें कथित रूप से 'अधीनस्थ को अधिकार देने में अक्षमता' ने कमलादेवी के कई प्रबल समर्थकों को उनसे दूर कर दिया ।
कमलादेवी की इस जीवनी की एक अन्य विशिष्टता यह है कि इसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शिल्प (कला) के क्षेत्र में उनके हस्तक्षेप के प्रभाव को विशेष आयाम दिया गया है । राजनीति में उनकी गहरी पैठ के बारे में पहले ही उनकी कई जीवनियों में बहुत कुछ लिखा-पढ़ा गया है पर इस पुस्तक में कमलादेवी का शिल्प (कला) प्रेम और भूले-बिसरे कई अन्य पेशाओं के पुनर्जागरण के प्रति उनके प्रयास को भरपूर अहमियत दी गई है । 'जीवंत संस्कृति के द्रष्टा' के रूप में विश्वविख्यात जसलीन धमीजा ने शिल्प के विकास में अपना लगभग 5० वर्ष न्यौछावर किया है । इस क्षेत्र में कमलादेवी की अग्रणी भूमिका का बखूबी आकलन निस्संदेह वे आधिकारिक रूप से कर सकती हैं, और किया है । मेरी समझ से पुस्तक का यह भाग सर्वाधिक रोचक है। इसमें पिछले दिनों कमलादेवी द्वारा किए गए कई दार्शनिक प्रयासों का जीवंत वैयक्तिक विवरण है अरि आज दुनिया भर में शिल्प के समर्थकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। मेरी इस स्थापना के पीछे मेरी एक वैयक्तिक और व्यावसायजन्य अभिरुचि है। यूनेस्को के शिल्प कार्यक्रमों से बहुत दिनों से मेरा जुड़ाव है। कमलादेवी का यह पूर्वानुमान बिल्कुल सही लगता है कि शिल्प विकास के कार्यक्रमों के लिए सरकारी समर्थन सुनिश्चित करने हेतु शिल्प और शिल्पकारों का सर्वेक्षण अनिवार्य शर्त है । यूनेस्को ने इस पर अमल किया और दुनिया भर में जारी अपने 'शिल्पविकास कार्यक्रम' के सर्वप्रमुख लक्ष्य के रूप में गुणात्मक और परिमाणात्मक आकड़ों के संग्रह को लिखित रूप दिया। दूसरी ओर, कमलादेवी ने बहुत पहले ही यह भांप लिया था कि बदलती मांग के मद्देनजर एक नई रणनीति होनी चाहिए जिसमें डिजाइनरों, दुकानों और शिल्पकारों के बीच परस्पर निकटता हो। यहां उल्लेखनीय है कि कमलादेवी की 'मार्केटिंग क्लिनिक्स' की परिकल्पना ने आज अफ्रीकी एवं लातिन अमेरिकी शिल्प की संपन्न परंपराओं के साथ कई देशों में डिजाइन की प्रयोगाशालाओं का मार्ग प्रशस्त किया है। हम भला यह कैसे भूल सकते कि कमलादेवी के प्रयास से ही सन् 1964 मैं विश्व शिल्प परिषद की स्थापना हुई जो आज भी यूनेस्को के वैश्विक कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण गैर-सरकारी सहयोगी संगठन बना हुआ हें ।
अंत में यह भी उल्लेखनीय है कि कमलादेवी की दूरदृष्टि ने उन्हें 'कलाक्षेत्र' में एक रंग शोध प्रयोगशाला स्थापित करने की प्रेरणा दी । यह उन दिनों की बात है जब पर्यावरण अनुकूल उत्पादों का बोलबाला नहीं था । वर्ष 2006 में यूनेस्को के तत्वावधान में प्राकृतिक रंगों पर प्रथम अंतर्राष्ट्रीय परिसंवाद आयोजित हुई । शिल्पकारों के समर्थन में अडिग इस व्यक्ति को यह परिसंवाद प्राय: सर्वश्रेष्ठ श्रद्धांजलि होगी ।
सन् 1988 में उनकी मृत्यु पर शोकाकुल तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन ने कहा कि उनके लिए कमलादेवी कै नाम कै पीछे 'स्वर्गीय' शब्द लगाना कठिन है क्योंकि 'उनकी उपस्थिति अनुभव की जा सकती थी और सदैव रहेगी। 'जसलीन धमीजा द्वारा लिखी गई यह जीवनी हमे इस बात की याद दिलाती है कि कमलादेवी का मिशन आज न केवल समकालीन भारत बल्कि पूरे विश्व में कितना प्रासंगिक हो उठा है । नारीवाद के प्रति उनकी संतुलित दृष्टि, मंच कलाओं में उनकी अदम्य अभिरुचि या फिर शिल्पों की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक भूमिका के प्रति उनके समग्र दृष्टिकोण में उनका गहरा विश्वास आज कामयाब और उपयोगी साबित हो रहा है। इस जीवनी से हमें कई सीख मिल सकती है। उन सब की ओर बारीकी से इशारा किया गया है। वस्तुत: कमलादेवी चट्टोपाध्याय की शिष्या द्वारा रचित इस पुस्तक से भावभीनी श्रद्धांजलि कुछ और नहीं हो सकती थी ।
विषय-सूची
प्राक्कथन
सात
परिचय
ग्यारह
1
पहला कदम, मंगलोर में बचपन
2
कमलादेवी की युवावस्था
10
3
राजनीतिक जीवन
20
4
स्वतंत्रता और उसके बाद
53
5
हस्तकरघा आंदोलन
60
6
मंच कला
90
7
महिला सशक्तीकरण
100
उपसंहार
109
सदंर्भ ग्रंथ
115
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