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कालजयी उज्जयिनी- Kalajai Ujjaini: A Most Comprehensive History of Ujjain (Set of 3 Volumes)

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Item Code: NZF972
Author: Ramesh Nirmal
Publisher: Anvitee Prakashan, Mumbai
Language: Hindi
Edition: 2005
ISBN: 8189190016
Pages: 2937 (B/W Illustrations)
Cover: HARDCOVER
Other Details 9.0 inch X 6.0 inch
Weight 5.05 kg
Book Description
पुस्तक परिचय
उज्जयिनी अनादि है, कालजयी है। अवन्तिका अनादि है, कालजयी है। अनादि होते हुए भी यह कहीं भी मिथकीय मात्र प्रतीत नहीं होती। उसका ऐतिहासिक कालक्रम भी मिलता है। वैदिक, पौराणिक और रामायण काल से लेकर उसकी ऐतिहासिकता जैनों, बौद्धों, मौयों और शुंगों तथा शकों के काल तक यदि प्राचीन इतिहास में मिलती है तो परवर्ती काल में हूणों, यवनों, आभीरों, गुप्तों, मौखरियों और सातवाहनों से लेकर मुगलों और बाद में अंग्रेजों तक के काल में उसकी ऐतिहासिक दीप्ति से इतिहास जगमगाता है। कभी वह अवन्ती है तो कभी उज्जयिनी, अमरावती, भोगवती, विशाला या प्रतिकल्या। उसके अनेकों नाम हैं लेकिन उसकी पहचान नामों के कारण ही नहीं है। उसकी पहचान उसके संस्कारों के कारण है। उसकी पहचान उन महाकाल के कारण है, जो काल के नियामक हैं, जो खण्ड-खण्ड काल में विलय है। उज्जयिनी की इस पहचान को कालिदास ने अमर शब्द दिए हैं।

कालिदास मेघ से भगवान महाकाल की आरती के संदर्भ में आग्रह करते हैं कि आरती की समाप्ति के बाद यह भगवान शंकर के ऊँचे उठे हुए भुजमंडल रूपी वनखण्ड को घेरकर छा जाए। इसका फल यह होगा कि पशुपति शंकर रक्त से भींगे चर्म को ओदने की इच्छा त्याग देंगे और माँ पार्वती भक्तिभाव से उनकी ओर निहारेंगी। कालिदास मेघ को यह राय भी देते हैं कि वह रात्रि के निविड़ अंधकार में राजमार्ग पर अपने अंदर छुपी हुई बिजली को सुवर्णरिखा के समान चमकाएं। कालिदास बार-बार उज्जैन के लोक में लौटते हैं। अवंतिका के लोक व्यापार को बड़ी बारीकी के साथ अपने काव्य में पिरोते हैं। कालिदास का उज्जयिनी से एक भावनात्मक रिश्ता है। इस भावनात्मक रिश्ते की परिभाषा नहीं मिलती। यह मिल भी नहीं सकती, क्योंकि उसे किसी घेरे में बांधा नहीं जा सकता। उसे किसी तिथि से जोड़कर कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता और इसीलिए उज्जयिनी अनादि है, कालजयी है। अवन्तिका अनादि है, कालजयी है।

मुझे यह कहने में कतई अतिशयोक्ति नहीं होती कि श्री रमेश निर्मल ने मनुष्यता के इस महापर्व की पुण्यस्थली को अपनी सघन साधना के माध्यम से 'कालजयी उज्जयिनी' जैसे अप्रतिम ग्रंथ के रूप में बांधने का सार्थक यत्न किया है। मैं हृदय से श्री रमेश निर्मल के द्वारा अपने महनीय श्रम और साधना के द्वारा रचे गए इस ऐतिहासिक ग्रंथ 'कालजयी उज्जयिनी' पर उनका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ और उन्हें यही आशीर्वाद देता हूं कि वे शिप्रा के तट पर सजने वाले विराग के इस मेले की पुण्यस्थली में सदैव मनुष्यता के मधुर राग को तलाशते रहें और उनकी यह तलाश कभी विराम न ले।

लेखक परिचय
डॉ. रमेश निर्मल ऊर्जावात और प्रक्षर पत्रकार हैं। मध्यप्रदेश के देवास जिले के नेवरी ग्राम में २४ जून १९५० को जन्मे। उज्जैन और इंदौर में शिक्षा-दीक्षा तथा शिलांग (मेघालय) में उच्च अनुसंधान कार्य। वाणिज्य और विधि में स्नातक तथा हिन्दी एवं समाज विज्ञान में स्नातकोत्तर । नेहू (मेघालय) से पूर्वोत्तर भारत में अलगाववादी प्रवृत्तियाँ: एक सामाजिक अनुशीलन' विषय पर विख्यात समाज वैज्ञानिक डॉ. श्यामाचरण दुबे के निर्देशन में शोध प्रबंध पर डॉक्टरेट । विविध आयामी रुचियों से सम्पन्न लेखन और अनुसंधान में सक्रिय।

प्रमुख कृतियाँ: आक्रोश, प्रेरणा, दिशा, यात्रा, पश्चिम निमाड़, बस्तर : जैसा मैंने देखा, सोनार बांग्ला, मध्यप्रदेश: एक टूरिस्ट नज़र, सात बहनें, पूर्वोत्तर में अलगाव, अनादि उज्जयिनी। १९९२ में सिंहस्थ महापर्व के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री पी.वी. नरसिम्हराव द्वारा केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री अर्जुन सिंह एवं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री सुन्दरलाल पटवा की उपस्थिति में 'अनादि उज्जयिनी' ग्रन्थ का लोकार्पण। सम्पादन : तीस से अधिक साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक पत्रिकाओं का सम्पादन-प्रकाशन ।

१९६७ से पत्रकारिता के क्षेत्र में निरंतर क्रियाशील । 'प्रभात किरण' एवं 'अन्तर्द्वन्द्व' साप्ताहिक के बाद इंदौर के 'नईदुनिया'में संवाददाता। १९७६ में मुंबई से प्रकाशित 'करंट' साप्ताहिक के सहायक सम्पादक। अस्सी के दशक में टाइम्स ऑफ इंडिया प्रकाशन समूह के नवभारत टाइम्स से सम्बद्ध। नवभारत टाइम्स के मुंबई और नई दिल्ली संस्करण के प्रमुख संवाददाता एवं गुवाहाटी से प्रकाशित पूर्वोत्तर भारत संस्करण के प्रमुख रहे। मुंबई से हिन्दी के पहले राष्ट्रीय आर्थिक साप्ताहिक 'अर्थ चेतना' का सम्पादन। के.के.बिड़ला फाउंडेशन (हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन समूह) की प्रतिष्ठित फैलोशिप के अन्तर्गत 'भारतीय पूँजी बाजार में निवेशकों की दशा-दुर्दशा' विषय पर शोध अध्ययन । भारत सहित विदेशी पूँजी बाजार अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, चीन, इटली, मलेशिया, सिंगापुर, हाँगकाँग और थाईलैंड की यात्रा कर वहाँ के स्टॉक एक्सचेंजों का तुलनात्मक अध्ययन । १९९७ में प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी द्वारा 'बनारस बीड्स' की ओर से देश का पहला राष्ट्रीय आर्थिक पत्रकारिता पुरस्कार। काशी विद्यापीठ के कुलपति एवं संस्कृति मर्मज्ञ डॉ. विद्यानिवास मिश्र द्वारा 'सारस्वत सम्मान' से सम्मानित । सम्प्रति : राष्ट्रीय हिन्दी समाचार व फीचर एजेंसी 'करंट समाचार एवं विचार - सीएमजी', 'करंट टीवी न्यूज एंड नेटवर्क' के प्रमुख व 'करंट' पत्रिका के प्रधान सम्पादक ।

प्रकाशकीय
महाकाल की उज्जयिनी कालजयी नगरी है। पौराणिक प्रवाह के अनुसार उज्जयिनी सृष्टि की रचना का केन्द्र है। उज्जयिनी पृथ्वी का भी केंद्र है जो अपने 'प्रतिकल्पा' नाम को सार्थक करती हुई प्रत्येक कल्प में अभिनव स्वरूप ग्रहण कर लेती है। यह पुण्य भूमि प्रागैतिहासिक काल से आज तक विराट सांस्कृतिक प्रवाह की साक्षी रही है। हजारों वर्ष के गौरवशाली इतिहास में न जाने कितना बहुमूल्य शिप्रा की लहरों के साथ बह गया।

बहुत कुछ अभी भी अनुमान, विवाद और अनुसंधान के कुहासे में है। कुछ अल्पज्ञात है और ऐसा भी बहुत कुछ है, जो उज्जैन की लोकप्रसिद्धि का कारण बना हुआ है।

महाकाल, शिप्रा और सिंहस्थ के साथ उज्जैन का फलक बहुत विराट है, जिसका समग्रता में साक्षात्कार कर पाना अत्यंत कठिन है। उज्जैन की महिमा शब्दातीत है, इसीलिए ग्रंथों के माध्यम से उज्जैन को समग्रता के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास बहुत महत्वपूर्ण है।

उज्जैन विषयक अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं तथा पत्र-पत्रिकाओं में भी बहुत सामग्री प्रकाशित है, परंतु उज्जैन के समग्र साक्षात्कार की दिशा में श्री रमेश निर्मल ने नया आयाम उद्घाटित किया है। उनका ग्रंथ 'कालजयी उज्जयिनी' आकार में ही नहीं अपितु सामग्री के वैविध्य और प्रामाणिकता की दृष्टि से भी अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी उपक्रम है जिसमें उज्जैन के अतीत और वर्तमान की सार्थक बानगी मिलती है। इसके साथ ही उज्जैन के अलग-अलग आयामों पर एकाग्र उनके ग्रंथ तत्संबंधी विषय- क्षेत्र के साथ पूरा न्याय करते हैं।

भूमिका
उज्जयिनी अनादि है, कालजयी है। अवन्तिका अनादि है, कालजयी है। अनादि होते हुए भी वह कहीं भी मिथकीय मात्र प्रतीत नहीं होती। उसका ऐतिहासिक कालक्रम भी मिलता है। वैदिक, पौराणिक और रामायण काल से लेकर उसकी ऐतिहासिकता जैनों, बौद्धों, मौयों और शुंगों तथा शकों के काल तक यदि प्राचीन इतिहास में मिलती है तो परवर्ती काल में हूणों, यवनों, आभीरों, गुप्तों, मौखरियों और सातवाहनों से लेकर मुगलों और बाद में अंग्रेजों तक के काल में उसकी ऐतिहासिक दीप्ति से इतिहास जगमगाता है। कभी वह अवन्ती है तो कभी उज्जयिनी, अमरावती, भोगवती, विशाला या प्रतिकल्पा। उसके अनेकों नाम हैं लेकिन उसकी पहचान नामों के कारण ही नहीं है। उसकी पहचान उसके संस्कारों के कारण है। उसकी पहचान उन महाकाल के कारण है, जो काल के नियामक हैं, जो खण्ड- खण्ड काल में विलय है। उज्जयिनी की इस पहचान को कालिदास ने अमर शब्द दिए हैं।








































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