हम कौन हैं, इसे समझने की दिशा में ओशो ने जो अद्वितीय योगदान दिया है उसे किसी श्रेणी में नहीं बांधा। वे एक रहस्यवादी, अंतर-जगत के वैज्ञानिक और विद्रोही चेतना हैं। उनकी संपूर्ण रुचि इस बात में है कि मानवता को तत्काल एक नई जीवन-शैली खोज निकालने की। आवश्यकता के प्रति कैसे सजग किया जाए। अतीत का अनुसरण किए जाना इस अद्वितीय और अति सुंदर ग्रह के अस्तित्व को ही संकट में डाल देने के लिए आमंत्रण देना है।
ओशो की बातों का सार-निचोड़ यह है कि केवल स्वयं को बदलने, एक-एक व्यक्ति के बदलने, के परिणामस्वरूप हमारा संपूर्ण "स्व"-- हमारा समाज, हमारी संस्कृति, हमारे विश्वास, हमारा संसार--सभी कुछ बदल जाता है। और इस बदलाव का द्वार है--ध्यान।
ओशो ने एक वैज्ञानिक की तरह अतीत के सारे दृष्टिकोणों पर समीक्षा और प्रयोग किए हैं और आधुनिक मनुष्य पर उनके प्रभाव का परीक्षण किया है, तथा उनकी कमियों को दूर करते हुए इक्कीसवीं सदी के अतिक्रियाशील मन के लिए एक नवीन प्रारंभ बिंदुः 'ओशो सक्रिय ध्यानों' का आविष्कार किया है।
एक बार जब आधुनिक जीवन की आपाधापी थमना शुरू हुई, तो "सक्रियता" "निष्क्रियता" में परिवर्तित होने लगती है, यही वास्तविक ध्यान की शुरुआत का प्रारंभ बिंदु है। इसे सहयोग देने के लिए, अगले कदम के रूप में ओशो ने प्राचीन 'सुनने की कला' को सूक्ष्म समकालीन विधि के रूप में रूपांतरित किया है, वही हैं 'OSHO Talks।' यहां शब्द संगीत हो जाते हैं, और श्रोता खोज पाता है उसे जो सुन रहा है, और व्यक्ति का ध्यान जो सुना जा रहा है उसके साथ-साथ सुनने वाले पर भी बना रहता है। जैसे-जैसे मौन उतरता है, वैसे-वैसे जो भी सुनने योग्य है वह जैसे किसी जादुई ढंग से सीधे-सीधे समझ लिया जाता है, मन के बिना किसी अवरोध के जो कि इस सूक्ष्म प्रक्रिया में केवल हस्तक्षेप और बाधा भर डाल सकता है।
ये हजारों OSHO Talks अर्थवत्ता की व्यक्तिगत तलाश से लेकर आज समाज के समक्ष उपस्थित सर्वाधिक ज्वलंत सामाजिक व राजनैतिक समस्याओं तक सब कुछ पर प्रकाश डालते हैं। ओशो की पुस्तकें लिखी नहीं गई हैं, अपितु अंतर्राष्ट्रीय श्रोताओं के समक्ष तत्क्षण दी गई ध्वनिमुद्रित ऑडियो/वीडियो OSHO Talks के संकलन हैं। जैसा कि वे कहते हैं: "तो याद रहे, मैं जो भी कह रहा हूं वह केवल तुम्हारे लिए ही नहीं... मैं भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी बोल रहा हूं।"
ओशो को लंदन के द संडे टाइम्स ने "बीसवीं सदी के १००० निर्माताओं में से एक कह कर वर्णित किया है। सुप्रसिद्ध अमरीकी लेखक टॉम राबिन्स ने लिखा है कि ओशो "जीसस क्राइस्ट के बाद सर्वाधिक खतरनाक व्यक्ति हैं।" भारत के संडे मिड-डे ने ओशो को गांधी, नेहरू और बुद्ध के साथ उन दस लोगों में चुना है जिन्होंने भारत का भाग्य बदल दिया।
अपने कार्य के बारे में ओशो ने कहा है कि वे एक नये मनुष्य के जन्म के लिए परिस्थितियां तैयार कर रहे हैं। इस नये मनुष्य को वे 'ज़ोरबा दि बुद्धा' कहते हैं जो 'ज़ोरबा दि ग्रीक' की तरह पृथ्वी के समस्त सुखों को भोगने की क्षमता रखता हो और गौतम बुद्ध की तरह मौन स्थिरता में जीता हो।
ओशो के हर आयाम में एक धारा की तरह बहता हुआ वह जीवन-दर्शन है जो पूरब की समयातीत प्रज्ञा और पश्चिम के विज्ञान और तकनीकी की सर्वोच्च संभावनाओं को एक साथ समाहित करता है।
ओशो आंतरिक रूपांतरण के विज्ञान में अपने क्रांतिकारी योगदान के लिए जाने जाते हैं और ध्यान की उन विधियों के प्रस्तोता हैं जो आज के गतिशील जीवन को ध्यान में रख कर रची गई हैं। उनके अनूठे ओशो सक्रिय ध्यान इस तरह रचे गए हैं कि पहले शरीर और मन में एकत्रित तनावों का रेचन हो सके, जिससे रोजमर्रा के जीवन में सहज स्थिरता फलित हो व विचार-रहित विश्रांति अनुभव की जा सके.
कैवल्य उपनिषद !
कैवल्य उपनिषद एक आकांक्षा है, परम स्वतंत्रता की। कैवल्य का अर्थ है: ऐसा क्षण आ जाए चेतना में, जब मैं पूर्णतया अकेला रह जाऊं, लेकिन मुझे अकेलापन न लगे। एकाकी हो जाऊं, फिर भी मुझे दूसरे की अनुपस्थिति पता न चले। अकेला ही बचें, तो भी ऐसा पूर्ण हो जाऊं कि दूसरा मुझे पूरा करे, इसकी पीड़ा न रहे। कैवल्य का अर्थ है: केवल मात्र मैं ही रह जाऊं। लेकिन इस भांति हो जाऊं कि मेरे होने में ही सब समा जाए। मेरा होना ही पूर्ण हो जाए। अभीप्सा है यह मनुष्य की, गहनतम प्राणों में छिपी।
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