पुस्तक परिचय
यह पुस्तक सामन्ती व्यवस्था के विरूद्ध विद्रोह करने वाले मानवीय आदर्शो के जन कवि कबीर के रचना कर्म को प्रस्तुत करती है, जो व्यवस्था से सीधे जिरह करता है, भविष्य की सम्भावनाओं को देखते हुए
अपने समय के सच को लिखता है, शास्त्रीय ज्ञान के में अनुभवमूलक ज्ञान को सहास बनाता है। वह जिस खींच को कहने और गहने की घोषणा करता है वह मानुष सत्य है। एक ऐसा कवि जिस के रूदन, दुख, पीडा और सवेदना का सम्बन्ध जागरण से है, सुषुप्ति से नहीं। वह मनुष्य की आत्मा का कवि है, अस्तित्व के कुछ बुनियादी प्रश्नों का कवि। उसने लो कछ भी कहा अपने व्यापक लोकानुभव के आधार पर कहा। कवि का कर्म मार्ग उस समय के सामान्य जन की कर्मण्य वास्तविकता से प्रसूत है, जो अपने समय की व्यवस्था को न जाने कितने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सत्रासों की पीडा से निकला है। उसके पीछे शास्त्रीय चिन्तन की अक्षरीय पीडा का बोध नहीं है। वह जीवन की साक्षात पीडा की उपज है।
लेखक परिचय
कवि और आलोचक के रूप में कुमार कृष्ण का नाम हिन्दी-पाठकों के लिए सुपरिचित है। इस पुस्तक से पुर्व इन की सात कविता पुस्तकें डरी हुई जमीन, पहाड़ पर बदलता मौसम, खुरों की तकलीफ घमर, चुनी हुई कविताओं का संग्रह मेरी कविताएं
गजल संग्रह काठ पर चढा लोहा, तथा सम्पूर्ण
कविताओं का संग्रह गाँव का बीजगणित, चार
आलोचनात्कम पुस्तकें समकालीन साहित्य विविध संदर्भ कविता की सार्थकता, हिन्दी कथासाहित्य परख और पहचान, दुसरे प्रजातन्त्र की तलाश में धुमिल प्रकाशित हो चुकी हैं । इनके अतिरिक्त ताजा कविताओं की पुस्तक पहाड़ पर नदियों के घर तथा आलोचनात्कम पुस्तक समकालीन कविता का बीजगणित यंत्रस्थ हैं । भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान की पत्रिका चेतनाके अतिरिक्त हाँक तथा वर्णमाला जैसी पत्रिकाओं का सम्पादन किया है। आजकल आप हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला के हिन्दी विभाग में आचार्य हैं ।
आमुख
कबीर के व्यक्तित्व एव कृतित्व की विवेचना उनके प्रामाणिक कृतित्व के आधार पर करना एक महत्प्रयास है। कबीर युग पुरुष थे। उनके कृतित्व के विविध आयाम हैं-दर्शन, रहस्यवाद, निर्गुणभक्ति और समाज सुधार। कबीर की अन्तर्यात्रा इन विविध सामाजिक और आध्यात्मिक पक्षों से होती हुई निर्गुण ब्रह्म से साक्षात्कार तक पहुँचती है। यद्यपि कबीर की प्रामाणिक रचनाओं के विषय में कुछ विद्वानों में मतभेद है तथापि प्रामाणिक सग्रहों तथा समीक्षा के आधारपर किये गये अध्ययनों में उनके कृतित्व के विविध पक्ष इस पुस्तक में प्रस्तुत किये गये हैं। आलोचकों ने अपने अनुभवों एव दृष्टि के आधार पर कवि की कविता को नये सदर्भ एव अर्थ देने के प्रयास किये हैं। नयी सामाजिक एव राजनीतिक व्यवस्थाओं से प्रेरित आलोचकों ने पूर्व व्याख्याओं में उन आलोचकों के जातिगत एव धर्मगत पूर्वग्रहोंको खोजने के उत्साह में आरोप प्रत्यारोप भी प्रस्तुत किये हैं। इन व्याख्याओं से कवि के कृतित्च के पुनरालोचन की प्रेरणा एव आवश्यकता अवश्य प्रतीत होती है। यह जानना आवश्यक है कि कवि की दृष्टि और उसके आलोचक द्वारा आरोपित अर्थ में कहाँ अनार है इस दृष्टि से आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री का आलेख कबीर के कृतित्व के मूलस्वर को प्रस्तुत करने का प्रामाणिक प्रयास है। यही प्रस्तुत पुस्तक का मूल अभिप्रेत भी है।
वर्तमान सदर्भ मे विद्वानों के एक वर्ग पर दलित साहित्य या दलित चेतना का परिप्रेक्ष्य हावी प्रतीत होता है। इसी परिप्रेक्ष्य में कुछ विद्वानों ने कबीर के कृतित्व को देखने के उत्साह में कबीर के उस मूल उत्स को अनदेखा कर दिया जो मानव मात्र को धर्म, जाति, सम्प्रदाय से ऊपर मानवता के सदर्भ में देखता हुआ जीवन का लक्ष्य आत्म साक्षात्कार निर्धारित करता है। आलोचकों का यह वर्ग जाति, धर्म व सम्प्रदाय के सकीर्ण बंधनों में ही घूमते हुए कबीर के विवेचनों को भी ब्राह्मणवादी, दलित साहित्य आदि सफा में बाँटकर देखता है, जबकि कबीर स्वय जातिगत, कुलगत, धर्मगत आदि बन्धनों से ऊपर उठने की ही बात करते हैं, कवि की विकसित मानवतावादी वृष्टिका स्तर प्राप्त करना ही कबीर को समझने का सफल प्रयास हो सकता है। अत उनकी रचनाओं के माध्यम से उन्हें देखने का प्रयास आवश्यक है न कि आलोचकों की आरोपित मान्यताओं के परिप्रेक्ष्य मे कबीर को यथावत् समझने के लिए उन्हें पुरानी सिद्ध सन्त परम्परा, निर्गुण उपासना की परम्परा और पारमार्थिक प्रेम की परम्परा से जोड़ना आवश्यक है। यह परम्परा अत्यन्त प्राचीन उपनिषदों गीता और भागवत से लेख लेकर सिद्धों तक विस्तृत है। यह भी स्मरणीय है कि कबीर सिर्फ ज्ञानी नहीं सिर्फ भक्त नही एक महाकवि हैं। उनकी कविता सत्य की कविता है। ऐसे सत्य की जो मार्मिक है। समाजसुधार का पक्ष सकीर्ण रूढियों का ज्ञान के आलोक मेंपरित्याग हे। वह किसी सामाजिक वर्ग के स्वार्थ सघर्ष का पक्ष नहीं है बुद्ध और महावीर से लेकर दयानन्द और गाँधी तक सभी ज्ञानियों ने आध्यात्मिकता के अनुरोध से समाज सुधार का पक्ष ग्रहण किया। इसी परम्परा में नानक और कबीर आते हैं।
अनुक्रम
vii
यह पुस्तक मनुष्य की आत्मा और भविष्य की उम्मीद का कवि कबीर
1
कबीर साहित्यिक विवेचन और विविध दृष्टियां
कबीर के मूल स्वरूप पर पड़े आवरण
7
2
कबीर और हमारा समय
23
3
कबीर साहित्य की वर्तमान अर्थवत्ता
29
4
कबीर का आत्मविश्वास
36
कवि के रूप में कबीर
5
कवि कबीर
45
6
कबीर और उनका समय
52
पायो राम रतनधन
60
8
कबीर के मस्तक पर मोरपंख
67
कबीर रहस्यवाद तथा आध्यात्मिक आभिव्यक्ति
9
रहस्यानुभूति के विविध आयाम और कबीर
79
10
कबीर और रहस्यवाद
94
11
भारत की आचार्य परम्परा के सदर्भ में कबीर और कबीर पंथ
103
12
ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया
109
कबीर लोक सवेदना और मानव धर्म की अभिव्यक्ति
13
कबीर की लोक संवेदना
119
14
कबीर की भक्ति एक नयी सास्कृतिक सरचना का आयोजन
131
152
Hindu (हिंदू धर्म) (12670)
Tantra ( तन्त्र ) (1020)
Vedas ( वेद ) (706)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1905)
Chaukhamba | चौखंबा (3356)
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