अपनी बात
वह एक हजार हाथ वाला अपने किस हाथ से कब क्या करेगा इसे भला कौन जाने? मुझसे ये पुस्तक उसने कैसे लिखाई ये तो मुझे भी नहीं मालूम। शायद तीन दशक पूर्व एक धनी परिवार के बालक को जब अपना बस्ता स्वयं ढोना पड़ा तो समाज में खलबली मची 'बस्तों का बढ़ता बोझ' एक प्रश्न बनकर उभरा। इन तीन दशकों में बहुत कुछ बदल गया।
आज भी 2 वर्ष की आयु पार कर बच्चा स्कूल जाना शुरू करता है तो उसका बचपन, किशोरावस्था तथा यौवन के स्वर्णिम वर्ष शिक्षा संस्थाओं में विद्या अध्ययन करते बीतते हैं। आज शिक्षा शास्त्रियों के सम्मुख प्रमुख समस्या है ''बालकों की बुद्धि का विकास कर उन्हें ऐसी विद्या प्रदान करना जो उनके, समाज के व देश की खुशहाली में महत्त्वपूर्ण योगदान करे।''
आज व्यवसायपरक प्रशिक्षण का महत्त्व, जनसमाज ने समझा है किन्तु, शायद अभी तक गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार तथा आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक अपराधों से लड़ने तथा उन पर विजय पाने के लिए हमारी शिक्षा पूरी तरह सक्षम नहीं है। आज सामान्य व्यक्ति, स्वयं को कभी तो बहुत दुर्बल और असहाय पाता है, तो कभी घर परिवार में सिमटकर अपने सामाजिक कर्तव्य और दायित्व से मुँह मोड़ लेता है।
परिणाम भी सामने है। लोकसभा में अनुशासनहीनता तथा अमर्यादा, या जोड़-तोड़ की राजनीति है। सड्कों पर लगा जाम, बाल वाटिकाओं की दुर्दशा, जहाँ-तहाँ गंदगी के ढेर और पशुओं से भी हीन जीवन गुजारते गरीब परिवार; हमारी स्वतंत्रता व सभ्यता को कलंकित करते हैं। कभी आर्थिक अपराध व करोड़ों रुपये का घोटाला कर समाज में पद प्रतिष्ठा पाने वाले किसी व्यक्ति में, बुद्धि और विद्या को खोजना असाध्य जान पड़ता है। ऋषि मुनियों की पावन धरती पर छल, कपट, प्रपंच और परधन हरण ही मानों आज श्रेष्ठ विद्या बन गई है।
मित्रों का आग्रह था कि ''बुद्धि विद्या'' पर कोई लघु पुस्तिका बने जो माता-पिता को अपने बच्चे में छिपी क्षमता, योग्यता तथा विशिष्ट गुणों की पहचान कर उसे एक गुणी, सक्षम व धनी मानी व्यक्ति बनाने की राह सुझाए। उनका तर्क था कि प्रतिवर्ष लाखों बल्कि शायद करोड़ों किशोर शिक्षा के किस क्षेत्र का चयन करें इस समस्या से गुजरते हैं उनकी मदद करना ज्योतिषियों का कर्त्तव्य ही नहीं शायद एक बड़ी जिम्मेदारी भी है । जब कर्त्तव्यनिष्ठा की बात हो तो कुछ करना आवश्यक हो जाता है । शायद इस प्रयास के बीच यही कुछ कारण थे जिनका जिक्र ऊपर किया। हमारे न्यायमूर्ति श्री एस.एन. कपूर कभी विनोद में कहते हैं कि सभी नेताओं, बड़े अधिकारिगण व नियोजकों को ज्योतिष को थोड़ा ज्ञान तो अवश्य ही होना चाहिए । ज्योतिष शास्त्र भविष्य में झाँकने की योग्यता देता है तथा भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के उपाय भी बताता है। अपने गुरुजन का आशीर्वाद, मित्रों का स्नेहपूर्ण सहयोग तथा परिश्रमी और दैवविद्या के प्रति समर्पित निष्ठावान छात्रों की साझेदारी ने इस पुस्तक का रूप धारण कर लिया जिसे अपनाकर पाठकगण समाज के प्रति दायित्व निर्वाह में अपना योगदान करेंगे । ये एक संकलन है। विद्वानों की गोष्ठी में हुए संवादों का सार है। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त कुंण्डलियो पर चर्चा करना सूत्रों की परीक्षा या जाँच के लिए आवश्यक जान पड़ा सो उसे समेटने का लोभ पुस्तक का आकार बढ़ने का मुख्य कारण है।
कहीं पुनरुक्ति दोष भी है। कुछ कुण्डलियाँ शायद अनेक बार दोहरायी गई हैं। पाठकगण जानते हैं सभी अच्छी पुस्तकों में एक मानक कुण्डली पर विभिन्न दृष्टिकोण से विचार कर विषय को स्पष्ट किया जाता है। यहाँ भी जाने पहचाने लोकप्रिय व्यक्तियों का चयन करना आवश्यक जान पड़ा। इसी कारण कभी अष्टक वर्ग में तो कभी बुध या गुरु का बल निकालते समय, इन गणमान्य व्यक्तियों की ओर पाठक का ध्यान केन्द्रित करने के लिए ऐसा करना जरूरी था। आशा है सहृदय पाठक क्षमा करेंगे।
सदा की भांति श्री अमृतलाल जैन, उनके पुत्र श्री देवेन्द्र जैन, मेरे पड़ौसी और विज्ञ ज्योतिषी श्री संजय शास्त्री, श्री हरीश आद्या तथा श्री राजेश वढेरा ने पुस्तक के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने और उसका वर्गीकरण करने का काम सम्भाला ।
मेरे गुरुजन आदरणीय श्री जे. एन. शर्मा, श्री ए.बी. शुक्ला, श्री रोहित बेदी, डॉ० श्रीमती निर्मल जिन्दल, श्री एस. एस. रस्तोगी, श्री महेन्द्र नाथ केदार, श्री के. रंगाचारी और श्री विनय आदित्य ने मेरा मनोबल बढ़ाया तथा लेखन में आने वाले विघ्नों से निबटने में सहायता की । मैं इनका कृतज्ञ हूं।
सुश्री करुणा भाटिया ने पांडुलिपि शोधन व रूपसज्जा का दायित्व निभाया, मैं इन सबका हृदय से आभारी हूं।
अपने मित्र, छात्र तथा प्रशंसक पाठकों के कृपापूर्ण सहयोग और सक्रिय योगदान के बिना, पुस्तक को ये रूप और आकार मिलना असम्भव था। मेरे गुरुदेव एक बात कहते हैं गोपाल की करि सब होइ, जो अपना पुसषारथ मानै अति झूठी है सोई। आशा है पाठकों को ये पुस्तक पसन्द आएगी तथा वे अपने बच्चों का भविष्य संवारने में इसे उपयोगी पाएंगे।
विषय-सूची
1
विद्या बुद्धि विचार
1-20
2
वाणी बुद्धि तथा ज्ञान का संबंध
21-39
3
विद्या प्राप्ति में चतुर्थ भाव का योगदान
40-53
4
बुद्धि और विद्या का प्रतीक पंचम भाव
54-70
5
बुद्धि में कमी मंदबुद्धि होने के योग
71-95
6
शिक्षा प्राप्ति में चंद्रमा का महत्त्व
96-121
7
बुद्धि का कारक बुध
122-147
8
ज्ञान और विवेक का कारक गुरू
148-172
9
विद्या प्राप्ति में अष्टक वर्ग का महत्त्व
173-191
10
विभिन्न क्षेत्रों में सफलता पाने के योग
192-219
11
प्रबन्ध,प्रकासन तथा कंप्यूटर क्षेत्र में सफलता के योग
220-248
12
कला के क्षेत्रों में सफलता के योग
249-265
13
साहित्य क्षेत्र में सफलता के योग
266-284
14
घूत आसत्ति योग
285-299
15
चतुर्विशांश कुंडली से बुद्धि विचार
300-312
16
वर्ष कुंडली में विद्या विचार
313-327
17
प्रश्न कुंडली में परीक्षा की सफलता का विचार
328-338
18
सा विद्या या विभुत्तये
339-362
19
आजीविका और ज्योतिष
363-414
20
बुद्धि व विद्या प्राप्ति के विविध योग
415-442
21
अरिष्ट नाश के उपाय
443-456
परिशिष्ट सूची
मन पर राशियों का प्रभाव
पूर्ण परमात्मांश ग्रह से स्वतंत्र व्यवसाय
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