पुस्तक के विषय में
'शब्दों का सफर' शब्दों के जन्मसूत्रों की तलाश है । यह तलाश भारोपीय परिवार के व्यापक पटल पर की गई है, जो पूर्व में भारत से लेकर पश्चिम में यूरोपीय देशों तक व्याप्त है । इतना ही नहीं, अपनी खोज में लेखक ने सेमेटिक परिवार का दरवाजा भी खटखटाया और जरूरत पड़ने पर चीनी एकाक्षर परिवार की देहलीज को भी स्पर्श किया । उनका सबसे बड़ा प्रदेय यह है कि उन्होंने शब्दों के माध्यम से एक अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी का धरातल तैयार किया, जिस पर विभिन्न देशों के निवासी अपनी भाषाओं के शब्दों में ध्वनि और अर्थ की विरासत सँजोकर एक साथ खड़े हो सकें । पूर्व और पश्चिम को ऐसी ही किसी साझा धरातल की तलाश थी ।
त्युत्पत्ति-विज्ञानी विवेच्य शब्द तक ही अपने को सीमित रखता है । वह शब्द के मूल तक पहुँचकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता है । अजित वडनेरकर के व्युत्पत्ति-विश्लेषण का दायरा बहुत व्यापक है । वे भाषाविज्ञान की समस्त शाखाओं का आधार लेकर ध्वन्यात्मक परिणमन और अर्थान्तर की क्रमिक सीढ़ियाँ चढ़ते हुए शब्द के विकास की सारी सम्भावनाओं तक पहुँचते हैं । उन्होंने आवश्यकतानुसार धर्म, इतिहास, समाजशास्त्र, नृतत्वशास्त्र आदि के अन्तर्तत्वों को कभी आधारभूत सामग्री के रूप में, तो कहीं मापदंडों के रूप में इस्तेमाल किया । उनकी एक विशिष्ट शैली है । अजित वडनेरकर के इस विवेचन में विश्वकोश-लेखन की झलक मिलती है । उन्होंने एक शब्द के 'प्रिव्यू' में सम्बन्धित विभिन्न देशों के इतिहास और उनकी जातीय संस्कृति की बहुरंगी झलक दिखलाई है । यह विश्वकोश लेखन का एक लक्षण है कि किसी शब्द या संज्ञा को उसके समस्त संज्ञात सन्दर्भों के साथ निरूपित किया जाए । अजित वडनेरकर ने इस लक्षण को तरह देते हुए व्याख्येय शब्दों को यथोचित ऐतिहासिक भूमिका और सामाजिक परिदृश्य में, सभी सम्भव कोणों के साथ संदर्भित किया है ।
ग्रन्थ में शब्दों के चयन का क्षेत्र बहुत व्यापक है । जीवन के प्राय: हर कार्य-क्षेत्र तक लेखक की खोजी दृष्टि पहुँची है । तिल से लेकर तिलोत्तमा तक, जनपद से लेकर राष्ट्र तक, सिपाही से लेकर सम्राट तक, वरुण से लेकर बूरनेई तक, और भी यहाँ से वही तक, जहाँ कहीं उन्हें लगा कि किन्हीं शब्दों के जन्मसूत्र दूर-दूर तक बिखर गए हैं, उन्होंने इन शब्दों को अपने विदग्ध अन्वीक्षण के दायरे में समेट लिया और उन बिखरे सूत्रों के बीच यथोचित तर्कणा के साथ सामंजस्य बिठाने की कोशिश की ।
लेखक के विषय में
अजित वडनेरकर
जन्म : 10 जनवरी, 1962 को सीहोर, मध्यप्रदेश में । मध्यप्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में एक बारह हजार की आबादी वाले जिला मुख्यालय राजगढ़ (ब्यावरा) में संस्थागत शिक्षा प्राप्त की । विक्रम विश्वविद्यालय की सम्बद्धता वाले राजगढ़ के शासकीय डिग्री कॉलेज से हिन्दी साहित्य में एम.ए. । इसी दौरान प्रसिद्ध कथाकार शानी के साहित्य पर लघुशोध प्रबन्ध की रचना ।
इन्दौर से प्रकाशित हिन्दी के प्रतिष्ठित अखबार 'नई दुनिया' में सम्पादक के नाम पत्रों वाले स्तम्भ में नियमित लेखन । 'नई दुनिया' में कुछ लेखों का प्रकाशन जिनका उद्देश्य जेबखर्च की राशि जुटाना था । 1983-85 के दौरान ख्यात शिक्षाविद्-लेखक डी. विश्वनाथ मिश्र के साथ उनके पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च के लिए बतौर जूनियर रिसर्च फेलो कार्य । डी. साहब के मार्गदर्शन में ही प्रसिद्ध नाटककार शंकर शेष के नाटकों पर पी-एच.डी. हेतु शोध । 1985 में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के हिन्दी दैनिक नवभारत टाइम्स में उपसम्पादक के रूप में पत्रकारीय जीवन की शुरुआत । दूरदर्शन और आकाशवाणी के लिए भी काम किया । कल्चरल रिपोर्टिग में विशेष रुचि। 1996 से 2000 तक विभिन्न टीवी चैनलों के लिए मध्यप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र से रिपोर्टिग । 2000 में दैनिक भास्कर के न्यूजरूम में । 2003-2004 के बीच दिल्ली में रहकर स्टार न्यूज से सम्बद्ध ।
2004 से लगातार दैनिक भास्कर में । 2005 में 'शब्दों का सफर' नाम से दैनिक भास्कर में शब्द व्युत्पत्ति आधारित एक साप्ताहिक कॉलम का निरन्तर लेखन । 2006 में इसी नाम से इटरनेट पर ब्लॉग का प्रकाशन जिसका शुमार हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय ब्लॉग्स में होता है ।
अनुक्रम
कृति सम्मान के निर्णायकों की राय
7
अपनी बात
11
पहले पड़ाव की भूमिका-शब्दों के झरोखे से
19
सफर के पड़ाव
आश्रय-स्थान-भूगोल
1
कसूर किसका कसूरवार कौन
41
2
कस्वे का कसाई और खटीक
43
3
कारवाँ में वैन और सराय की तलाश
45
4
केरल, नारियल और खोपड़ी
48
5
कोलतार पर ऊँटों की कतार
50
6
कौन धाम, कहीं के वासी
52
गंज-नामा और गंजहे
54
8
जड़ता है मन्दिर में
56
9
तौरतरीका और कार्यप्रणाली
58
10
पतली गली से गुजरना
60
पिट्सबर्ग से रामू का पुरवा तक
61
12
मंडी, महिमामंडन और महामंडलेश्वर
64
13
मेहरौली, मुंगावली, दानाऔली, दीपावली
67
14
मोहल्ले में हल्ला
68
15
मौसम आएँगे-जाएँगे
71
16
दर्रों-दरवाजों की बातें
73
17
रेखा का लेखा-जोखा
76
18
रोड इंस्पेक्टर और रहनुमा
77
लाइन खींचना, लाइन मारना
79
20
लीक छोड़ तीनौं चले, सायर, सिंध, सपूत
81
21
सूत्रपात, रेशम और धागा
83
22
शहर का सपना और शहर में खेत रहना
85
23
सब ठाठ धरा रह जाएगा
87
24
सराए-फानी का मुकाम
89
25
सिक्किम यानी नया घर
91
निर्माण-उपकरण-पदार्थ
26
कनस्तर और पीपे में समाती थी गृहस्थी
95
27
किमख्वाब, अलकैमी और कीमियागरी
97
28
किरमिज, कीड़ा और लाल रंग
99
29
कैंची, सीजर और कैसल
100
30
गँदगी और गंधर्व विवाह
102
31
घासलेटी साहित्य और मिट्टी का तेल
104
32
ममी की रिश्तेदारी भी केरोसिन से
105
33
जबान को लगाम या मुँह पर ताला
107
34
जोड़-तोड़ में लगा जुगाड़ी
109
35
तालमेल और ताले की बातें
112
36
जुबानदराज, ड्रॉअर और दीर्घदर्शी
114
37
दियासलाई और शल्य चिकित्सा
116
38
नहर, नेहरू और सुपरफास्ट चैनल
117
39
पेजों और पन्नों की बातें
119
40
बंदूक अरब की, कारतूस पुर्तगाल का
121
मर्तबान यानी अचार और मिट्टी
123
42
माँझे की सुताई
125
लंगर में लंगर की छलाँग
126
44
लाउडस्पीकर और रावण
128
लिफाफेबाजी और उधार की रिकवरी
129
46
वाट लगा दी, बत्ती बुझा दी
131
47
साँकल और चेन का सीरियल
133
सुरंग में सुर और धमाका
134
49
सुलझाने-सँवारने की बातें
137
आईने में तोताचश्मी
138
खान-पान-रहन-सहन-व्यापार
51
गमछा-गाथा
143
आज ही घर में बोरिया न हुआ
144
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