अपने सुरम्य अद्भुत झील-गीतों की कड़ी में उत्तर आधुनिक कवि, कथाकार, उपन्यासकार और समीक्षक डॉ० राघवेन्द्र नारायण सिंह ने हिन्दी कविता को 'झील के उस पार क्या है' शीर्षक से शोभित यह चतुर्थ झील-गीत संग्रह दिया है। हिन्दी में झील-गीतों को लिखने वाले प्रथम कवि डॉ० सिंह ने अपने झील-गीतों में मनुष्य की धरती पर नियति, स्थिति और गन्तव्य का झील के माध्यम से रोचक वर्णन किया है। कवि एक तरफ धरती की सीमाओं में सीमित होकर धरती से मनुष्य के रिश्तों को परिभाषित करने की कोशिश कर रहा है, तो दूसरी तरफ वह धरती की बंदिशों से दूर सुदूर नक्षत्रों में झील के साथ बसने के स्वप्न भी देख रहा है। वह झील तट पर आकर झील से संवाद स्थापित करता है और दोनों एक-दूसरे की भावनाओं को समझते हुए सुदूर आनन्द के उस लोक में जाने के लिए उत्सुक दीखते हैं जहाँ पर संसार अपनी यातनाओं, पीड़ाओं और अभावों के साथ अनुपस्थित है। इन झील-गीतों को जीवन के गीत कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा। डॉ० राघवेन्द्र नारायण सिंह के झील-गीत दार्शनिक पृष्ठभूमि में सरल-सहज प्रवाहमय भाषा में गीत शैली में अवतरित हुए हैं। डॉ० सिंह के मधुर मनोहर झील-गीत निश्चित रूप से हिन्दी-कविता की अनमोल धरोहर हैं। इन झील-गीतों की जितनी भी प्रशंसा की जाये कम ही है क्योंकि इनकी ताजगी इन्हें अक्षुण्ण रखते हुए हमारे हृदय की समस्त कुण्ठाओं और तनावों को दूर करती है।
'झील के उस पार क्या है' शीर्षक से सुशोभित यह संग्रह झील-गीतों की कड़ी में मेरा चतुर्थ गीत-संग्रह है। इस संकलन में संग्रहित झील-गीतों में मनुष्य की धरती पर स्थिति और उसके हृदय में पृथ्वी से दूर एक सुरम्य आदर्श लोक को पाने की आकांक्षा का सहज ही दर्शन सुलभ है। इन झील गीतों का कवि एक तरफ धरती की सीमाओं में सीमित होकर धरती से अपने रिश्ते को परिभाषित करने का प्रयत्न कर रहा है तो दूसरी तरफ वह इस बंदिश को तोड़कर सुदूर नक्षत्रों में उस लोक में जाकर बसने के स्वप्न भी देख रहा है जहाँ पर कोई अभाव नहीं, कोई व्यग्रता और कुण्ठा नहीं, कोई बेईमानी और धूर्तता नहीं। कवि अपनी इस ख्वाहिश को पूर्ण करने के लिए झील-तट पर आकर झील से बात करता है और उसके साथ सुदूर अन्तरिक्ष की यात्रा करने के लिए उत्सुक है क्योंकि उसकी समस्याओं का समाधान इस धरती पर नहीं वरन् उस दिव्य लोक में है जहाँ के स्वप्न उसे अक्सर आते रहते हैं और जहाँ पर वह कल्पना में ही सही झील के साथ जाता रहता है। उसे मालूम है कि झील धरती से नहीं उत्पन्न हुई है, वह तो अम्बर से धरती पर प्रकट हुई है ताकि पीड़ित मानवता को अपना अमृततुल्य जल पिला सके, बाँट सके, बंजर को उपजाऊ भूमि में परिणत कर सके और मनुष्य के दुःख-दर्द में शरीक हो सके-
नहीं हटना चाहे, कोई मुसाफिर, झील के तट से मगर हटना जब पड़ता है, तो वह मजबूर लगता है कोई कितना निराशा के तिमिर में, घिर कर आया हो छूकर के झील का जल पुनः वह मजबूत लगता है।
(सुबह की झील का)
इस झील की खूबी यही है कि यह दुनियावी नहीं है, इसमें परमार्थ की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है, यह नये मिसाल कायम करते हुए मनुष्य को उसकी क्षुद्रताओं से ऊपर उठने के लिए प्रेरित करती है। झील को फरेब, तिकड़म, अन्याय और झूठ से सख्त नफरत है। वह मोहब्बत से रहने का पैगाम लेकर धरा पर उतरी है, उसका साथी एक फरिश्ता है, उसकी सहेली एक परी है, उसमें औषधीय गुण हैं, वह चमत्कार से भरी हुई है, उससे मिलने वाला उसका ही मुरीद होकर रह जाता है, उसमें सहजता है, सरलता है, उसमें कृत्रिमता और बनावटीपन तथा दिखावे की भावना का सर्वथा लोप है, वह मनुष्य के लिए धरती पर कुदरत का एक अमूल्य वरदान है-
नहीं कोई कृत्रिमता इसमें, रहती सरल कुदरत सी इसके पावन सरस जल में, अमरता की ही बूटी है जिसने भी पी लिया जल झील का, हो गया तब्दील कहा करते, इसकी तासीर ही, औषधि सरीखी है नहीं ताज्जुब कि यह रखती, सरोकार परहित से कभी एक पल नहीं यह झील, निज हित में जीती है मिसालें करती यह कायम, मोहब्बत करती वह निःस्वार्थ, सदा ऊँची सदा अव्वल इसमें तो ऋधि दधीची हैं।
Hindu (हिंदू धर्म) (12761)
Tantra (तन्त्र) (1022)
Vedas (वेद) (707)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1917)
Chaukhamba | चौखंबा (3359)
Jyotish (ज्योतिष) (1476)
Yoga (योग) (1106)
Ramayana (रामायण) (1386)
Gita Press (गीता प्रेस) (729)
Sahitya (साहित्य) (23262)
History (इतिहास) (8320)
Philosophy (दर्शन) (3420)
Santvani (सन्त वाणी) (2588)
Vedanta (वेदांत) (122)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist