'जीवित रहेगी स्त्री' रेखा राजवंशी द्वारा रचित काव्य संकलन है जिसमें 55 कविताएँ हैं। ये कविताएँ स्त्री विषयक हैं। इसमें स्त्री के भिन्न-भिन्न शेड्स को प्रस्तुत किया गया है। बेटी, पत्नी, माँ, बहन, काम-काजी महिला अनेक-अनेक रूपों में अपने मुखौटे बदलती रहती हैं। इस क्रम में उसे खुशी, दर्द, चिंता, तनाव और गुस्सा जैसी अनेक संवेदनाएँ महसूस होती हैं। इन सभी संवेदनाओं का मिश्रण इस संग्रह की कविताओं में है। कविता का शीर्षक ही आशा का प्रतीक है। विषमताओं के बावजूद भी स्त्रियाँ जीवित रहने के संकल्प के साथ जिंदा हैं। 'स्त्री मरेगी नही, कल सुबह खिलेगी, गुलाबों की तरह महकती रहेगी'। वह भले से परिवार को पालने लगी, बूढ़े माँ-बाप को संभालने लगी पर लड़का न बन सकी, जैसी विडंबना को बार-बार रेखांकित किया है। वे विडंबनाओं, पीड़ा और समस्याओं के मध्य भी जिजीविषा और संभावनाओं का प्रकाश पुंज बनी रहती हैं। हवा बनकर, धारा बनकर अपने विस्तार में बार-बार जन्म लेगी, स्त्री मरेगी नहीं। सच में स्त्री को मरना चाहिए भी नहीं। स्त्री जीवित रहेगी क्योंकि उसे जीवित रहना है, फिर चाहे वह देश में ब्याही जाए या विदेश में। वह अपनी जिजीविषा और अहसास को त्यागती नहीं है, वह घर बसाती है और अपने बूते पर बसाती है। रेखा राजवंशी जी की कविताएँ 'आई ओपनर' हैं। उन्हें बार-बार पढ़ा जाना और गुना जाना आज की आवश्यकता है।
केंद्रीय हिंदी संस्थान से प्रकाशित इस कहानी संग्रह के प्रकाशन पर रचनाकार और प्रकाशन प्रक्रिया से जुड़े सभी सदस्यों को अशेष शुभकामनाएँ और बधाई।
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