कोशिका जीवन की मूलभूत इकाई है और हमारी पृथ्वी एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन अनगिनत रूपों में देखने को मिलता है। इस पृथ्वी पर जहां एक ओर केवल एक कोशिका से बना हुआ, लगभग अस्तित्व-हीन अतिसूक्ष्म जीव, जीवाणु पाया जाता है, वहीं दूसरी ओर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बने अनेक विकसित प्राणी भी पाये जाते हैं। नाना प्रकार के जटिल अंग-प्रतिअंगों से युक्त दिखने वाला मनुष्य भी एक ऐसा प्राणी है जो एक ही निषेचित कोशिका से विकसित हुआ है।
जीवन का आधा साज-सामान माता से और शेष आधा पिता से लेकर निषेचित कोशिका बनती है। इसके बाद विभाजन की सामान्य प्रक्रिया से एक से दो, दो से चार होते हुये असंख्य कोशिकायें बन जाती हैं। अब इन्हें शरीर की आवश्यकतानुसार अलग-अलग कार्य सौंप दिये जाते हैं। हाथ, पैर, आंख, कान और नाक आदि बाहरी अंगों से लेकर दिल, दिमाग, जिगर और फेफड़ा आदि सभी भीतरी अंग इनके निर्माण और संचालन के विशेष कार्यों में लगी, इन्हीं कोशिकाओं से निर्मित होते हैं और जीवन भर कार्य करते हैं। अलग-अलग कार्य करते हुये भी यह कोशिकायें परस्पर तालमेल के साथ भी कार्य करती हैं तभी तो शरीर के सभी अंग-प्रतिअंग जीव की कार्यप्रणाली के अनुसार एक साथ कार्य कर पाते हैं। यही जीवन है जो विविधता में एकता के मूलमंत्र के साथ चलता है।
यहां यह बात स्पष्ट हो जाती है कि शरीर के सभी अंगों एवं तंत्रों के कार्य चाहे जो भी हों लेकिन उनकी मूल इकाई कोशिका ही होती है। यह सभी कोशिकायें एक तरह से रासायनिक कारखाने की भांति कार्य करती हैं। इनकी सामान्य एवं ऊर्जा आदि की आवश्यकताएं और इनके द्वारा तैयार किये गये पदार्थ अलग हो सकते हैं। लेकिन इनकी मूलभूत रचना एवं कार्यशैली एक समान ही होती है।
प्रारंभिक कोशिका जीव रचना की विविध जटिल प्रक्रियाओं से गुजर कर जिस जीव जैसे सम्पूर्ण मानव, का निर्माण करती है, उसके परिपक्व होने पर फिर से बीज का निर्माण होता है। इस बीज से अपने पूरक विपरीत लिंग से मिल जाने पर, पुनः एक अन्य निषेचित कोशिका बनती है जो विभाजन प्रक्रिया के बाद नये जीव की रचना करती है। इस तरह जीवन एक ऐसी अनंत यात्रा है जो कोशिका से कोशिका तक लगातार चलती रहती है।
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